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खरगोन: पर्यटन की अपार संभावनाओं के बावजूद मण्डलेश्वर को आखिर क्यों नहीं मिली पहचान ? - mandleshwar-did-not-get-any-achievement

पर्यटन नगरी महेश्वर के पास बसी नगरी मण्डलेश्वर को पर्यटन के नाम पर आज तक कोई उपलब्धि नहीं मिली. ऐतिहासिक स्थलों को व्यवस्थित तरीके से प्रचारित किया जाए, तो आपार पर्यटन की संभावनाएं बन सकतीं हैं.

mandleshwar-did-not-get-any-achievement-in-the-name-of-tourism
पर्यटन की अपार संभावनाओं के बावजूद मण्डलेश्वर नगर पिछड़ा
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Published : Aug 18, 2020, 12:24 PM IST

खरगोन। मध्यप्रदेश शासन के द्वारा घोषित जिले के दो पवित्र नगरों में से एक मण्डलेश्वर, ऐतिहासिक, धार्मिक एवं संस्कृति की आपार विरासत को अपने अंदर समेटे बैठा है. 1952 से लेकर आज तक महेश्वर विधानसभा का नेतृत्व मंडलेश्वर के पास ही रहा है, बावजूद इसके नगर की ऐतिहासिक एवं धार्मिक विरासतों को आज तक प्रदेश के पर्यटन पटल पर पहचान नहीं मिली.

Mandleshwar did not get any achievement in the name of tourism
मण्डलेश्वर को पर्यटन के नाम पर नहीं मिली कोई उपलब्धि नहीं

नगर के धार्मिक स्थल नर्मदा घाट, गुप्तेश्वर महादेव मंदिर, मंडनेश्वर (56 देव) शिवालय, काशी विश्वनाथ शिवालय, ऐतिहासिक स्थल फांसी बेड़ी, घंटाघर (महारानी लक्ष्मीबाई टावर) जैसे कई स्थान बरसों से अपनी पहचान को लेकर संघर्षरत है. पर्यटन नगरी महेश्वर के पास बसी मण्डलेश्वर को पर्यटन के नाम पर आज तक कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं हो पाई. जबकि उक्त धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों को यदि व्यवस्थित तरीके से प्रचारित किया जाए, तो नगर में आपार पर्यटन की संभावनाएं निर्मित हो सकती हैं.

गुप्तेश्वर महादेव एवं 56 देव शिवालय का है धार्मिक महत्व

नर्मदा पुराण में उल्लेखित गुप्तेश्वर महादेव मंदिर मंडन मिश्र एवं आदिगुरु शंकराचार्य की शास्त्रार्थ स्थली के नाम से प्रसिद्ध है. वही मंडनेश्वर (56 देव) शिवालय का स्थापना काल भी 8वीं शताब्दी का है, जिसे आदि शंकराचार्य ने मंडन मिश्र की स्मृति में स्थापित किया था. इसका प्रचार- प्रसार न हो पाने के कारण से महेश्वर तक आने वाले सैलानी मण्डलेश्वर के इन पवित्र क्षेत्र का भ्रमण करने से चूक जाते हैं.

फांसी बेड़ी एवं घंटाघर का है ऐतिहासिक महत्व

1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी भीमा नायक के 150 से अधिक सैनिकों को अंग्रेजों ने सूली पर चढ़ा दिया था. जिसके बाद उनके मृत शरीरों को मगर डाब में पाले हुए भूखे मगरमच्छ को डाल दिया गया था, वहीं 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय निमाड़ के प्रसिद्ध तीन नाथ की जेल तोड़कर महात्मा गांधी का जन्मदिवस मनाने का स्थान झंडा चौक, जिस पर महारानी लक्ष्मीबाई टावर निर्मित है, जिसे घंटाघर कहा जाता है. ऐसे ऐतिहासिक महत्व के स्थानों की उपेक्षा होने से पर्यटन की आपार संभावना के बावजूद नगर पर्यटन के पटल पर अपनी पहचान तलाश रहा है.

स्थानीय नगर परिषद के पास नहीं कोई योजना

गुप्तेश्वर महादेव, 56 देव मंदिर, फांसी बेड़ी को पर्यटन के नक्शे पर उचित स्थान दिलाने के लिए नगर परिषद के पास कोई ठोस योजना नहीं है. जबकि वर्तमान नगर परिषद अध्यक्ष मनीषा शर्मा के पति मनोज शर्मा स्वयं गुप्तेश्वर मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हैं, उनके तीन वर्षीय कार्यकाल में नगर के विकास हेतु कोई उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं है और न ही भविष्य की योजना दिखाई देती है.

क्या कहना है नागरिकों का ?

यशवंत तवर (पूर्व अध्यक्ष, नगर व्यापारी संघ) नगर में पर्यटन की आपार संभावनाओं के बावजूद नगर पर्यटन के नक्शे पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाया है. पर्यटन बढ़ने से नगर का व्यापार भी बढ़ेगा, जिससे स्थानीय व्यापारियों को भी लाभ होगा. पुरषोत्तम पवार नगर में भी पर्यटन की आपार संभावनाएं हैं. समय-समय पर जनप्रतिनिधियों को अवगत भी कराया गया है और कुछ योजनाएं भी बनाई गई हैं, जो सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई हैं. भविष्य में नगर के बुद्धिजीवियों से चर्चा कर नई योजनाओं का प्रकल्लन तैयार कर तेज गति से प्रयास करने की आवश्यकता है.

क्या कहना है जनप्रतिनिधियों का ?

डॉ विजयलक्ष्मी साधौ ने 14 माह के कांग्रेस शासनकाल में नगर में पर्यटन बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए थे. 5 साल के शासनकाल में संभव था की योजनाएं सफल हो जाएं, गुप्तेश्वर मंदिर के इतिहास के मद्देनजर संस्कृति विभाग से 15 करोड़ की राशि का ऑडिटोरियम निर्माण की योजना प्रस्तावित है, जो जल्द ही आकार लेगी. वहीं 56 देव मंदिर को पुरातत्व विभाग के संरक्षण में लाने का प्रयास भी किया जा रहा है, नर्मदा नदी पर बने घाटों को आकर्षक बनाने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं.

वही पूर्व के राज्यसभा सांसद के कार्यकाल में घंटाघर पर बरसों से बंद पड़ी घड़ी को शुरू करवाया. स्थानीय मुक्तिधाम को भव्य और सुंदर बनाने के लिए तत्कालीन सांसद ने अपनी निधि और वर्तमान विधायक निधि से लगभग 50 लाख रुपए की स्वीकृति से निर्माण कार्य कराए गए हैं. विधायक निधि से नर्मदा परिक्रमा के लिए 20 लाख रुपए की लागत से आश्रय स्थल का निर्माण नर्मदा घाट पर किया गया है.

मनीषा शर्मा (अध्यक्षा, नगर परिषद) ने पर्यटन को लेकर नगर परिषद ने 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को नर्मदा के बीच स्थित टापू पर मण्डन मिश्र की मूर्ति लगाने का प्रस्ताव भेजा था. जिससे नर्मदा घाट का सौंदर्यीकरण के साथ- साथ केवट समाज के रोजगार में भी इजाफा होता, लेकिन इस योजना का क्रियान्वयन नहीं हो सका, जिसके लिए फिर से प्रस्ताव भेजा जाएगा.

खरगोन। मध्यप्रदेश शासन के द्वारा घोषित जिले के दो पवित्र नगरों में से एक मण्डलेश्वर, ऐतिहासिक, धार्मिक एवं संस्कृति की आपार विरासत को अपने अंदर समेटे बैठा है. 1952 से लेकर आज तक महेश्वर विधानसभा का नेतृत्व मंडलेश्वर के पास ही रहा है, बावजूद इसके नगर की ऐतिहासिक एवं धार्मिक विरासतों को आज तक प्रदेश के पर्यटन पटल पर पहचान नहीं मिली.

Mandleshwar did not get any achievement in the name of tourism
मण्डलेश्वर को पर्यटन के नाम पर नहीं मिली कोई उपलब्धि नहीं

नगर के धार्मिक स्थल नर्मदा घाट, गुप्तेश्वर महादेव मंदिर, मंडनेश्वर (56 देव) शिवालय, काशी विश्वनाथ शिवालय, ऐतिहासिक स्थल फांसी बेड़ी, घंटाघर (महारानी लक्ष्मीबाई टावर) जैसे कई स्थान बरसों से अपनी पहचान को लेकर संघर्षरत है. पर्यटन नगरी महेश्वर के पास बसी मण्डलेश्वर को पर्यटन के नाम पर आज तक कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं हो पाई. जबकि उक्त धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों को यदि व्यवस्थित तरीके से प्रचारित किया जाए, तो नगर में आपार पर्यटन की संभावनाएं निर्मित हो सकती हैं.

गुप्तेश्वर महादेव एवं 56 देव शिवालय का है धार्मिक महत्व

नर्मदा पुराण में उल्लेखित गुप्तेश्वर महादेव मंदिर मंडन मिश्र एवं आदिगुरु शंकराचार्य की शास्त्रार्थ स्थली के नाम से प्रसिद्ध है. वही मंडनेश्वर (56 देव) शिवालय का स्थापना काल भी 8वीं शताब्दी का है, जिसे आदि शंकराचार्य ने मंडन मिश्र की स्मृति में स्थापित किया था. इसका प्रचार- प्रसार न हो पाने के कारण से महेश्वर तक आने वाले सैलानी मण्डलेश्वर के इन पवित्र क्षेत्र का भ्रमण करने से चूक जाते हैं.

फांसी बेड़ी एवं घंटाघर का है ऐतिहासिक महत्व

1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी भीमा नायक के 150 से अधिक सैनिकों को अंग्रेजों ने सूली पर चढ़ा दिया था. जिसके बाद उनके मृत शरीरों को मगर डाब में पाले हुए भूखे मगरमच्छ को डाल दिया गया था, वहीं 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय निमाड़ के प्रसिद्ध तीन नाथ की जेल तोड़कर महात्मा गांधी का जन्मदिवस मनाने का स्थान झंडा चौक, जिस पर महारानी लक्ष्मीबाई टावर निर्मित है, जिसे घंटाघर कहा जाता है. ऐसे ऐतिहासिक महत्व के स्थानों की उपेक्षा होने से पर्यटन की आपार संभावना के बावजूद नगर पर्यटन के पटल पर अपनी पहचान तलाश रहा है.

स्थानीय नगर परिषद के पास नहीं कोई योजना

गुप्तेश्वर महादेव, 56 देव मंदिर, फांसी बेड़ी को पर्यटन के नक्शे पर उचित स्थान दिलाने के लिए नगर परिषद के पास कोई ठोस योजना नहीं है. जबकि वर्तमान नगर परिषद अध्यक्ष मनीषा शर्मा के पति मनोज शर्मा स्वयं गुप्तेश्वर मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हैं, उनके तीन वर्षीय कार्यकाल में नगर के विकास हेतु कोई उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं है और न ही भविष्य की योजना दिखाई देती है.

क्या कहना है नागरिकों का ?

यशवंत तवर (पूर्व अध्यक्ष, नगर व्यापारी संघ) नगर में पर्यटन की आपार संभावनाओं के बावजूद नगर पर्यटन के नक्शे पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाया है. पर्यटन बढ़ने से नगर का व्यापार भी बढ़ेगा, जिससे स्थानीय व्यापारियों को भी लाभ होगा. पुरषोत्तम पवार नगर में भी पर्यटन की आपार संभावनाएं हैं. समय-समय पर जनप्रतिनिधियों को अवगत भी कराया गया है और कुछ योजनाएं भी बनाई गई हैं, जो सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई हैं. भविष्य में नगर के बुद्धिजीवियों से चर्चा कर नई योजनाओं का प्रकल्लन तैयार कर तेज गति से प्रयास करने की आवश्यकता है.

क्या कहना है जनप्रतिनिधियों का ?

डॉ विजयलक्ष्मी साधौ ने 14 माह के कांग्रेस शासनकाल में नगर में पर्यटन बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए थे. 5 साल के शासनकाल में संभव था की योजनाएं सफल हो जाएं, गुप्तेश्वर मंदिर के इतिहास के मद्देनजर संस्कृति विभाग से 15 करोड़ की राशि का ऑडिटोरियम निर्माण की योजना प्रस्तावित है, जो जल्द ही आकार लेगी. वहीं 56 देव मंदिर को पुरातत्व विभाग के संरक्षण में लाने का प्रयास भी किया जा रहा है, नर्मदा नदी पर बने घाटों को आकर्षक बनाने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं.

वही पूर्व के राज्यसभा सांसद के कार्यकाल में घंटाघर पर बरसों से बंद पड़ी घड़ी को शुरू करवाया. स्थानीय मुक्तिधाम को भव्य और सुंदर बनाने के लिए तत्कालीन सांसद ने अपनी निधि और वर्तमान विधायक निधि से लगभग 50 लाख रुपए की स्वीकृति से निर्माण कार्य कराए गए हैं. विधायक निधि से नर्मदा परिक्रमा के लिए 20 लाख रुपए की लागत से आश्रय स्थल का निर्माण नर्मदा घाट पर किया गया है.

मनीषा शर्मा (अध्यक्षा, नगर परिषद) ने पर्यटन को लेकर नगर परिषद ने 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को नर्मदा के बीच स्थित टापू पर मण्डन मिश्र की मूर्ति लगाने का प्रस्ताव भेजा था. जिससे नर्मदा घाट का सौंदर्यीकरण के साथ- साथ केवट समाज के रोजगार में भी इजाफा होता, लेकिन इस योजना का क्रियान्वयन नहीं हो सका, जिसके लिए फिर से प्रस्ताव भेजा जाएगा.

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