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आदिवासी अंचल से नहीं मिट रहा कुपोषण, जागरूकता लाने में असफल रहा प्रशासन - Malnutrition is not eradicating

कुपोषण का दंश पूरा मध्य प्रदेश झेल रहा है. वहीं खरगोन में भी कुपोषित बच्चों की संख्या कम नहीं हो रही है. आदिवासी अंचल के पोषण पुनर्वास केंद्र में पिछले 7 महीने का आंकड़ा देखें तो 10 बेड के हिसाब से 140 बच्चे भर्ती होना चाहिए थे, लेकिन 178 बच्चे भर्ती हुए.

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Published : Nov 26, 2019, 10:46 PM IST

खरगोन। मध्यप्रदेश शासन के तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदेश में कुपोषित बच्चों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है. जिले के आदिवासी अंचल के पोषण पुनर्वास केंद्र में पिछले 7 महीने का आंकड़ा देखें तो 10 बेड के हिसाब से 140 बच्चे भर्ती होना चाहिए थे, लेकिन 178 बच्चे भर्ती हुए. यह आंकड़ा आदिवासी अंचल में शिक्षा के आभाव में चलते कुपोषण की स्थिति को दर्शा रहा है.

खरगोन से नहीं मिट रहा कुपोषण

पोषण पुनर्वास प्रभारी ने बताया कि हमारे यहां 10 बेड का वार्ड है. जिसमें सात महीने में 140 बच्चों को भर्ती किया जाना था, लेकिन कोई भी बच्चा इलाज लिए बिना ना जाए इसलिए चार बेड अलग से लगाकर 178 बच्चों को भर्ती किया है. सीमित साधनों जितना अच्छा कर सकते थे हमने किया है.

आखिर क्या है कुपोषण बढ़ने की वजह

लेकिन चिंता का विषय तो कुपोषित बच्चों की बढ़ती संख्या है. जब इस बारे में ईटीवी भारत ने महिला एवं बाल विकास अधिकारी योजना जिंसीवाले से बात की तो उन्होंने बताया कि यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है. आदिवासी समुदाय में जागरूकता की कमी है. इसी के साथ पलायन बड़ी समस्या है. मजदूरी के लिए आदिवासी समाज के लोग गुजरात और अन्य जगह जाते है, वहां से कुपोषित होकर ही आते हैं.

जिससे भगवानपुरा में जुलाई महीने में 754 बच्चे थे, जिनमें से बीते तीन माह में दो सौ से अधिक बच्चे का इलाज और पोषण आहार के माध्यम से कुपोषण से बाहर कर दिया है. अभी 524 कुपोषित बच्चे हैं. जिन्हें कार्यकर्ता और सहायिकाओं के माध्यम से थर्ड मिल और अंडे घर घर जाकर खिलाकर और पोषण पुनर्वास केंद्र पर नियमित ले जाकर कुपोषण मुक्त करने के प्रयास जारी हैं.

भले ही महिला एवं बाल विकास अधिकारी पलायन और आदिवासियों में जागरूकता की कमी को दोष दे रहे हों, लेकिन लोगों को जागरूक करने का काम भी आखिर प्रशासन का ही है. ऐसे में सवाल उठता है कि अधिकारी कब तक अपनी लापरवाहीयों को छिपाने के लिए लोगों को दोष देते रहेंगे.

खरगोन। मध्यप्रदेश शासन के तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदेश में कुपोषित बच्चों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है. जिले के आदिवासी अंचल के पोषण पुनर्वास केंद्र में पिछले 7 महीने का आंकड़ा देखें तो 10 बेड के हिसाब से 140 बच्चे भर्ती होना चाहिए थे, लेकिन 178 बच्चे भर्ती हुए. यह आंकड़ा आदिवासी अंचल में शिक्षा के आभाव में चलते कुपोषण की स्थिति को दर्शा रहा है.

खरगोन से नहीं मिट रहा कुपोषण

पोषण पुनर्वास प्रभारी ने बताया कि हमारे यहां 10 बेड का वार्ड है. जिसमें सात महीने में 140 बच्चों को भर्ती किया जाना था, लेकिन कोई भी बच्चा इलाज लिए बिना ना जाए इसलिए चार बेड अलग से लगाकर 178 बच्चों को भर्ती किया है. सीमित साधनों जितना अच्छा कर सकते थे हमने किया है.

आखिर क्या है कुपोषण बढ़ने की वजह

लेकिन चिंता का विषय तो कुपोषित बच्चों की बढ़ती संख्या है. जब इस बारे में ईटीवी भारत ने महिला एवं बाल विकास अधिकारी योजना जिंसीवाले से बात की तो उन्होंने बताया कि यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है. आदिवासी समुदाय में जागरूकता की कमी है. इसी के साथ पलायन बड़ी समस्या है. मजदूरी के लिए आदिवासी समाज के लोग गुजरात और अन्य जगह जाते है, वहां से कुपोषित होकर ही आते हैं.

जिससे भगवानपुरा में जुलाई महीने में 754 बच्चे थे, जिनमें से बीते तीन माह में दो सौ से अधिक बच्चे का इलाज और पोषण आहार के माध्यम से कुपोषण से बाहर कर दिया है. अभी 524 कुपोषित बच्चे हैं. जिन्हें कार्यकर्ता और सहायिकाओं के माध्यम से थर्ड मिल और अंडे घर घर जाकर खिलाकर और पोषण पुनर्वास केंद्र पर नियमित ले जाकर कुपोषण मुक्त करने के प्रयास जारी हैं.

भले ही महिला एवं बाल विकास अधिकारी पलायन और आदिवासियों में जागरूकता की कमी को दोष दे रहे हों, लेकिन लोगों को जागरूक करने का काम भी आखिर प्रशासन का ही है. ऐसे में सवाल उठता है कि अधिकारी कब तक अपनी लापरवाहीयों को छिपाने के लिए लोगों को दोष देते रहेंगे.

Intro:मध्यप्रदेश शासन के तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदेश में में कुपोषित बच्चों की कम होने का नाम नहीं ले रही है। जिले के आदिवासी अंचल के पोषण पुनर्वास केंद्र का जायजा लेने पर 7 माह का आंकड़ा देखें तो 10 बेड के हिसाब से 140 बच्चे भर्ती होना चाहिए थे। परंतु 178 बच्चे भर्ती होना आदिवासी अंचल शिक्षा के आभाव में कुपोषण की स्थिति को दर्शाता नजर आ रहा है।



Body:खरगोन जिले के आदिवासी विकास खंड भगवानपुरा के पोषण पुनर्वास केंद्र पर जायजा लेने पर कुछ इस तरह नजारा सामने आया। जहां वार्ड में जगह कम होने के बावजूद 10 बेड पर 7 माह में 178 बच्चों को भर्ती किया गया। पोषण पुनर्वास प्रभारी ने बताया कि हमारे यहां 10 बेड का वार्ड है। जिसमे सात माह में 140 बच्चों को भर्ती किया जाना था। परंतु कोई भी बच्चा इलाज लिए बिना न जाए इसलिए चार बेडअलग से लगाकर 178 बच्चों को भर्ती किया है। सीमित साधनों जितना अच्छा कर सकते है किया है।
बाइट श्रद्धा दोबिया प्रभारी
पोषण पुनर्वास केंद्र
वही महिला एवं बाल विकास अधिकारी योजना जिंसीवाले ने बताया कि यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है। आदिवासी समुदाय में जागरूकता की कमी है। इसी के साथ पलायन बड़ी समस्या है। मजदूरी के लिए आदिवासी समाज के लोग गुजरात और अन्य जगह जाते है। वहां से कुपोषित हो कर ही आते है। जिससे भगवानपुरा में जुलाई माह में 754 बच्चे थे। जिनमें से बीते तीन माह में दो सौ से अधिक बच्चे का इलाज और पोषण आहार के माध्यम से कुपोषण से बाहर कर दिया है। अभी 524 कुपोषित बच्चे है। जिन्हें कार्यकर्ता ओर सहायिकाओं के माध्यम थर्ड मिल और अंडे घर घर जाकर खिलाकर और पोषण पुनर्वास केंद्र पर नियमित ले जाकर कुपोषण मुक्त करने के प्रयास जारी है।
बाइट योजना जिंसीवाले महिला बाल विकास अधिकारी


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