खरगोन। आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी खंडवा-दाहोद रेल मार्ग की मांग चली आ रही है, लेकिन राजनीतिक उपेक्षा के कारण अब तक यह योजना मूर्त रूप नहीं ले पाई है. अब एक बार फिर शहरवासियों ने रेल मार्ग को लेकर आंदोलन करने की रणनीति बनाई है.
केंद्र सरकार द्वारा इस दिशा में अभी तक कोई सार्थक कदम नहीं उठाए गए है. वहीं खरगोन सहित बुरहानपुर, बड़वानी और आलीराजपुर जिले के लोगों ने ताप्ती-नर्मदा रेलवे लाइन निर्माण समिति का गठन किया है. उक्त समिति द्वारा पिछले डेढ़ साल से भुसावल से खरगोन वाया, अंजड़, बड़वानी और छोटा उदयपुर रेलवे लाइन प्रोजेक्ट को मंजूरी दिलाने के लिए आंदोलन कर रही है. इसी तारतम्य में मंगलवार को समिति सदस्यों की बैठक हुई. इस बैठक में समाजसेवी दामोदर अग्रवाल, दीपक कानूनगो सम्मिलित हुए. सदस्यों ने आगामी आंदोलन की रुपरेखा बनाई. इसमें गांव-गांव फ्लेक्स लगाकर प्रचार-प्रसार करने और हस्ताक्षर अभियान के माध्यम से जनमत तैयार किया जाएगा.
समिति से जुड़े दामोदर अग्रवाल ने बताया कि आजादी के बाद से पश्चिम निमाड़ के प्रमुख जिले खरगोन और बड़वानी को रेलवे की सुविधा नहीं मिली है. क्षेत्र की लगातार उपेक्षा हो रही है. ताप्ती-नर्मदा रेलवे लाइन निर्माण समिति का गठन इसी मुद्दे को लेकर किया गया है, जिसके माध्यम से हर जिले में काम किया जा रहा है. कुल 13 समितियां बनाई गई है. मार्च माह में समिति द्वारा रेलवे लाइन को मंजूरी दिलाने के लिए सांसदों को ज्ञापन सौंपा जाएगा. इसके अतिरिक्त कलेक्टर और डीएफओ को भी ज्ञापन प्रेषित किया जाएगा.
यह मामला बजट और चुनाव में अहम
ऐसा नहीं है कि यह मामला सियासी गलियारों से न गुजरा हों. लोकसभा चुनाव के दौरान खंडवा से लेकर बड़वानी तक जगह-जगह बिजली के खंभे लगाकर खरगोन का एक बार भी रुख नहीं किया गया. इसके बाद वर्ष 1984 में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं तत्कालीन सांसद सुभाष यादव ने रेल लाइन का नारा दिया, लेकिन वह भी रेल लाइन नहीं ला पाए. इसके बाद मनमोहन सरकार में रेल मंत्री रहे लालू प्रसाद यादव ने बजट सत्र के दौरान सर्वे की अनुमति ले ली, लेकिन यह मामला भी आगे नहीं बड़ सका.
चेम्बर ऑफ कामर्स के अनुसार, जिले में कपास ओर मिर्च की अच्छी पैदावार होती है, जिससे उद्योगों को बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन रेल मार्ग के नहीं होने से आजादी के 70 साल बाद भी पिछड़े जिलों की सूची से बाहर नहीं आ सका है.