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खरगोन की सियासी पिच पर बीजेपी लगाएंगी हेट्रिक, या कांग्रेस करेगी क्लीन बोल्ड - खरगोन

निमाड़ अंचल की खरगोन लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. इस बार इस सीट पर बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसद सुभाष पटेल की जगह गजेंद्र पटेल को उतारा है. जबकि कांग्रेस ने डॉ. गोविंद मुजाल्दा पर भरोसा जताया है. जहां दोनों की किस्मत का फैसला जनता 19 मई को ईवीएम में केद कर देगी.

बीजेपी प्रत्याशी गजेंद्र पटेल, कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. गोविंद मुजाल्दा
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Published : May 18, 2019, 12:19 AM IST

खरगोन/बड़वानी। महाराष्ट्र की सीमा से सटा और नर्मदा की गोद में बसा पश्चिमी निमाड़ का केंद्र माना जाने वाला खरगोन शहर प्रदेश के महत्वपूर्ण शहरों में गिना जाता है. सूबे का मशहूर पर्यटन केंद्र महेश्वर इसी जिले में स्थित है. 2008 के परिसीमन के बाद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित खरगोन संसदीय क्षेत्र में बीजेपी का दबदबा माना जाता है क्योंकि यहां संघ का सीधा प्रभाव नजर आता है. यहां इस बार बीजेपी के गजेंद्र पटेल का मुकाबला कांग्रेस के डॉक्टर गोविंद मुजाल्दा से है.

1962 से अब तक इस सीट पर सात बार बीजेपी को जीत मिली है, जबकि पांच बार कांग्रेस ने अपना परचम लहराया है. वहीं, दो बार जन संघ और एक बार जनता पार्टी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी. 2007 के उपचुनाव में इस सीट पर कांग्रेस को आखिरी बार जीत मिली थी. तब दिग्गज नेता अरुण यादव ने बीजेपी के कृष्णमुरारी मोघे को हराया था. तब से यहां कांग्रेस का सूखा नजर आ रहा है. रामेश्वर पाटीदार इस सीट से सबसे ज्यादा पांच बार सांसद रहे हैं.

खरगोन लोकसभा सीट

खरगोन-बड़वानी संसदीय क्षेत्र में इस बार 23 लाख 74 हजार 980 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. जिनमें 11 लाख 83 हजार 342 पुरुष मतदाता हैं, जबकि 11 लाख 90 हजार 509 महिला मतदाता शामिल हैं. इस क्षेत्र में अबकी बार कुल 2350 मतदान केंद्र बनाए गए हैं, जिनमें 438 अतिसंवेदनशील हैं.

आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित खरगोन सीट के सियासी समीकरण जातिगत आधार पर बनते बिगड़ते हैं. खरगोन में 55 फीसदी और बड़वानी में 75 प्रतिशत आदिवासी आबादी निवास करती है. जिनमें सबसे ज्यादा संख्या भिलाला मतदातओं की है, यही वजह है कि दोनों पार्टियों ने इसी जाति से आने वाले उम्मीदवारों पर दांव लगाया है.

खरगोन-बड़वानी जिले की विधानसभा सीटों से मिलकर बने इस संसदीय क्षेत्र में खरगोन, महेश्वर, कसरावद, भगवानपुरा, बड़वानी, राजपुर, पानसेमल, और सेंधवा सीटें आती हैं. विधानसभा चुनाव में इन आठ सीटों में से 7 पर कांग्रेस और एक पर बीजेपी को जीत मिली थी. इस क्षेत्र से प्रदेश की कांग्रेस सरकार में तीन बड़े मंत्री शामिल हैं. जिनके ऊपर कांग्रेस प्रत्याशी को जिताने की जिम्मेदारी है तो वहीं बीजेपी ने वर्तमान सांसद सुभाष पटेल का टिकट काटकर गजेंद्र पटेल को उम्मीदवार बनाया है, जो संगठन के सहारे चुनावी मैदान में हैं. 2014 में बीजेपी के सुभाष पटेल ने कांग्रेस के रमेश पटेल को हराया था.

अधिकतर ग्रामीण आबादी वाले इस संसदीय क्षेत्र का मतदाता बेरोजगारी, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन जैसी समस्या प्रमुख हैं, जबकि सफेद सोने यानी कपास की खेती के लिए मशहूर यहां के किसान भी पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलने से परेशान हैं. ऐसे में 19 मई को यहां का मतदाता किसको दिल्ली की सैर कराता है. ये देखने वाली बात होगी.

खरगोन/बड़वानी। महाराष्ट्र की सीमा से सटा और नर्मदा की गोद में बसा पश्चिमी निमाड़ का केंद्र माना जाने वाला खरगोन शहर प्रदेश के महत्वपूर्ण शहरों में गिना जाता है. सूबे का मशहूर पर्यटन केंद्र महेश्वर इसी जिले में स्थित है. 2008 के परिसीमन के बाद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित खरगोन संसदीय क्षेत्र में बीजेपी का दबदबा माना जाता है क्योंकि यहां संघ का सीधा प्रभाव नजर आता है. यहां इस बार बीजेपी के गजेंद्र पटेल का मुकाबला कांग्रेस के डॉक्टर गोविंद मुजाल्दा से है.

1962 से अब तक इस सीट पर सात बार बीजेपी को जीत मिली है, जबकि पांच बार कांग्रेस ने अपना परचम लहराया है. वहीं, दो बार जन संघ और एक बार जनता पार्टी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी. 2007 के उपचुनाव में इस सीट पर कांग्रेस को आखिरी बार जीत मिली थी. तब दिग्गज नेता अरुण यादव ने बीजेपी के कृष्णमुरारी मोघे को हराया था. तब से यहां कांग्रेस का सूखा नजर आ रहा है. रामेश्वर पाटीदार इस सीट से सबसे ज्यादा पांच बार सांसद रहे हैं.

खरगोन लोकसभा सीट

खरगोन-बड़वानी संसदीय क्षेत्र में इस बार 23 लाख 74 हजार 980 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. जिनमें 11 लाख 83 हजार 342 पुरुष मतदाता हैं, जबकि 11 लाख 90 हजार 509 महिला मतदाता शामिल हैं. इस क्षेत्र में अबकी बार कुल 2350 मतदान केंद्र बनाए गए हैं, जिनमें 438 अतिसंवेदनशील हैं.

आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित खरगोन सीट के सियासी समीकरण जातिगत आधार पर बनते बिगड़ते हैं. खरगोन में 55 फीसदी और बड़वानी में 75 प्रतिशत आदिवासी आबादी निवास करती है. जिनमें सबसे ज्यादा संख्या भिलाला मतदातओं की है, यही वजह है कि दोनों पार्टियों ने इसी जाति से आने वाले उम्मीदवारों पर दांव लगाया है.

खरगोन-बड़वानी जिले की विधानसभा सीटों से मिलकर बने इस संसदीय क्षेत्र में खरगोन, महेश्वर, कसरावद, भगवानपुरा, बड़वानी, राजपुर, पानसेमल, और सेंधवा सीटें आती हैं. विधानसभा चुनाव में इन आठ सीटों में से 7 पर कांग्रेस और एक पर बीजेपी को जीत मिली थी. इस क्षेत्र से प्रदेश की कांग्रेस सरकार में तीन बड़े मंत्री शामिल हैं. जिनके ऊपर कांग्रेस प्रत्याशी को जिताने की जिम्मेदारी है तो वहीं बीजेपी ने वर्तमान सांसद सुभाष पटेल का टिकट काटकर गजेंद्र पटेल को उम्मीदवार बनाया है, जो संगठन के सहारे चुनावी मैदान में हैं. 2014 में बीजेपी के सुभाष पटेल ने कांग्रेस के रमेश पटेल को हराया था.

अधिकतर ग्रामीण आबादी वाले इस संसदीय क्षेत्र का मतदाता बेरोजगारी, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन जैसी समस्या प्रमुख हैं, जबकि सफेद सोने यानी कपास की खेती के लिए मशहूर यहां के किसान भी पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलने से परेशान हैं. ऐसे में 19 मई को यहां का मतदाता किसको दिल्ली की सैर कराता है. ये देखने वाली बात होगी.

Intro:खरगोन-बड़वानी लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है , 2009 में परिसीमन के बाद यह लोकसभा अस्तित्व में आई है जब से इस लोकसभा पर लगातार दो बार भाजपा का कब्जा रहा है। परिसीमन से पहले दोनो जिलों की बात करें तो 1952 से 2009 तक खरगोन जिले की 6 विधानसभा खरगोन लोकसभा सामान्य आरक्षित सीट में शामिल थी वही बड़वानी जिले की 4 विधानसभा है जो 2009 के पहले खरगोन लोकसभा में 2 विधानसभा तथा 2 विधानसभा धार - बड़वानी लोकसभा में शामिल थी जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी किन्तु बदली हुई परिस्थितियों में परिसीमन के खरगोन जिले की 4 और बड़वानी जिले की 4 विधानसभाओं को मिलाकर खरगोन-बड़वानी लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। वहीं खरगोन जिले की 2 विधानसभा खण्डवा लोकसभा में शामिल की गई है। 19952 से अब तक लोकसभा चुनाव तथा उपचुनाव की कुल संख्या 17 है इस बार 18 वें सांसद के रूप में कौन दिल्ली जाएगा देखना दिलचस्प होगा। भाजपा और कांग्रेस ने इस लोकसभा पर हुए 17 चुनावों में से 7-7 बार जीत हासिल की है, इसके अलावा जनसंघ ने 2 बार तथा जनता पार्टी का उम्मीदवार भी एक बार जीत दर्ज करा चुका है। गत 10 चुनावो में 7 बार जीत दर्ज कर भाजपा ने अपना दबदबा कायम रखते हुए 2014 के चुनाव में सुभाष पटेल ने कांग्रेस के रमेश पटेल को 2 लाख 57 हजार 879 रिकॉर्ड मतों से हराया था।
1951 -52 में हुए पहले चुनाव में मध्य भारत मे यह लोकसभा निमाड़ के रूप में ख्यात थी तब कांग्रेस के बैजनाथ ने सामाजिक कार्यकर्ता दत्तात्रेय भोपे को 39367 मतों से हराया था वही 1956 में मप्र के गठन के बाद 1957 के आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर श्रमिक नेता रामसिंह वर्मा ने जनसंघ के रामचन्द्र विट्ठल पर 10627 मतों से जीत दर्ज की इसके बाद 1962 में रामचन्द्र बड़े ने इंदौर के कांग्रेसी नेता तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल खादिवाला को 35914 मतों के अंतर से हराकर पहली जीत दर्ज की । पेशे से वकालात करने वाले रामचंद्र विट्ठल उर्फ बड़े 1962 के चुनाव में लोकसभा जितने वाले अटलबिहारी वाजपेयी के बाद एकमात्र दूसरे जनसंघीय नेता थे । 1967 में कांग्रेस से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दिल्ली निवासी शशिभूषण वाजपेई ने रामचन्द्र बड़े से पुनः यह सीट छीन ली और 9164 मतों से पराजित किया इसके बाद रामचन्द्र बड़े ने कांग्रेस के अमोलकचन्द्र छाजेड़ को 35621 में हराकर फिर कब्जा कर लिया।
इस लोकसभा सीट से इमरजेंसी लगने के बाद विपक्ष की और से संयुक्त उम्मीदवार रामेश्वर पाटीदार को जनता पार्टी ने टिकट दिया जिन्होंने कांग्रेस के किसान नेता सुभाष यादव को 35858 मतों से शिकस्त देते हुए 1989,91,96 और 98 के चुनावों में लगातार चार बार जीत कर इतिहास रच दिया। रामेश्वर पाटीदार खरगोन से 7 बार चुनाव लड़े व 5 बार विजयी रहे वही कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री सुभाष यादव यहाँ से 5 बार चुनाव लड़े और दो बार सांसद निर्वाचित हुए है। वर्ष 1999 में कांग्रेस के ताराचंद पटेल ने भाजपा के बालकृष्ण पाटीदार को 38146 मतों से हराकर तिलस्म तोड़ दिया लेकिन 2004 में भाजपा ने इंदौरी नेता कृष्णमुरारी मोघे को मैदान में उतरकर ताराचंद पटेल को 58617 मतों से हराकर पुनः यह सीट अपने नाम कर ली लेकिन ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मसले पर अयोग्य घोषित हुए मोघे को यह सीट छोड़ना पड़ी जिसके चलते हुए 2007 के उपचुनाव में कांग्रेस से सुभाष यादव के पुत्र अरुण यादव ने कृष्णमुरारी मोघे को करीब 1लाख 20 हजार मतों से पराजित कर दिया। 2009 से सामान्य रही यह सीट बडवांनी जिले की चारो विधानसभा को मिलाकर अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हुए और भाजपा के मकनसिंह ने कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश के गृहमंत्री बालाराम बच्चन को 34175 मतों से हराया वहीं पिछले 2014 के चुनाव में मोदी लहर में भाजपा के सुभाष पटेल ने कांग्रेस विधायक रमेश पटेल को करारी शिकस्त देते हुए करीब ढाई लाख से अधिक मतों से जीत दर्ज की थी किन्तु 2019 के चुनाव में भाजपा ने चेहरा बदलते हुए गजेंद्र पटेल को मैदान में उतारा है वही कांग्रेस ने डॉ गोविंद मुझालदा को अपना उम्मीदवार बनाया है ।



Body:पश्चिम निमाड़ की लोकसभा सीट जिसमें खरगोन और बड़वानी जिलों को मिलाकर लोकसभा क्षेत्र क्रमांक 27 बनाया गया है। इससे पहले बड़वानी जिला खरगोन जिले का ही अंग था। बात करें खरगोन बड़वानी लोकसभा पर मतदाताओं की तो खरगोन जिले की चार विधानसभा जिसमे भगवानपुरा, कसरावद, महेश्वर और खरगोन शामिल है जिनमे कुल 14,29,863 मतदाता है जिनमें 7,23,111 महिला तथा 7,06,176 पुरूष तथा अन्य है वही बड़वानी जिले में राजपुर, सेंधवा,पानसेमल और बड़वानी है जिनमें 9,45,117मतदाता है जहाँ 4,67,398महिला तथा 4,77,166 पुरुष तथा अन्य मतदाता है । लोकसभा क्षेत्र में कुल 2,350 मतदान केंद्र है जिनमे संवेदनशील 438 अतिसंवेदनशील 15 तथा 29 पिंक बूथ शामिल है। खरगोन बड़वानी लोकसभा सीट के तहत खरगोन, बड़वानी, कसरावद,महेश्वर, भगवानपुरा, राजपुर,सेंधवा और पानसेमल सहित कुल 8 विधानसभा में इस समय 7 विधानसभा कांग्रेस के पास और एक पर बीजेपी का कब्जा है, वहीं 3 प्रदेश सरकार में मंत्री है। इस लोकसभा पर जातिगत समीकरण राजनीति के आधार पर ही तय होते है क्योकि खरगोन जिले में 55% और बड़वानी जिले में 75% अजजा मतदाता शामिल है किंतु पिछली बार मोदी लहर में जातिवाद का गणित हावी नही रह सका था लेकिन इस बार भाजपा ने गजेंद्र पटेल को कांग्रेस के गोविंद मुझालदा के सामने मैदान में उतारा है ,दोनो नए चेहरे होकर भिलाला बहुल मतदाता जाति से आते है, हालांकि भाजपा ने अजजा प्रदेशाध्यक्ष को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने राजनीति का ककहरा भी नही जानने वाले को उम्मीदवार बनाया है। भितरघात से दोनो दल अछूते नही है इसलिए 23 मई के परिणाम दिलचस्प होंगे। इस लोकसभा को कभी सफेद सोने यानी कपास उत्पादन के लिए जाना जाता था लेकिन वर्तमान में बेरोजगारी, पानी,शिक्षा,स्वास्थ्य और पलायन समस्याओं से मतदाता परेशान है।


Conclusion:खरगोन बड़वानी लोकसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण इस बार बड़े मायने रखने वाले है क्योंकि दोनों पार्टियों के उम्मीदवार भिलाला जाति से होकर लोकसभा में बहुतायत में मतदाता है। देखना होगा कि सामाजिक ताना बाना बुनकर कौन दिल्ली पहुचता है।
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