खरगोन/बड़वानी। महाराष्ट्र की सीमा से सटा और नर्मदा की गोद में बसा पश्चिमी निमाड़ का केंद्र माना जाने वाला खरगोन शहर प्रदेश के महत्वपूर्ण शहरों में गिना जाता है. सूबे का मशहूर पर्यटन केंद्र महेश्वर इसी जिले में स्थित है. 2008 के परिसीमन के बाद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित खरगोन संसदीय क्षेत्र में बीजेपी का दबदबा माना जाता है क्योंकि यहां संघ का सीधा प्रभाव नजर आता है. यहां इस बार बीजेपी के गजेंद्र पटेल का मुकाबला कांग्रेस के डॉक्टर गोविंद मुजाल्दा से है.
1962 से अब तक इस सीट पर सात बार बीजेपी को जीत मिली है, जबकि पांच बार कांग्रेस ने अपना परचम लहराया है. वहीं, दो बार जन संघ और एक बार जनता पार्टी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी. 2007 के उपचुनाव में इस सीट पर कांग्रेस को आखिरी बार जीत मिली थी. तब दिग्गज नेता अरुण यादव ने बीजेपी के कृष्णमुरारी मोघे को हराया था. तब से यहां कांग्रेस का सूखा नजर आ रहा है. रामेश्वर पाटीदार इस सीट से सबसे ज्यादा पांच बार सांसद रहे हैं.
खरगोन-बड़वानी संसदीय क्षेत्र में इस बार 23 लाख 74 हजार 980 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. जिनमें 11 लाख 83 हजार 342 पुरुष मतदाता हैं, जबकि 11 लाख 90 हजार 509 महिला मतदाता शामिल हैं. इस क्षेत्र में अबकी बार कुल 2350 मतदान केंद्र बनाए गए हैं, जिनमें 438 अतिसंवेदनशील हैं.
आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित खरगोन सीट के सियासी समीकरण जातिगत आधार पर बनते बिगड़ते हैं. खरगोन में 55 फीसदी और बड़वानी में 75 प्रतिशत आदिवासी आबादी निवास करती है. जिनमें सबसे ज्यादा संख्या भिलाला मतदातओं की है, यही वजह है कि दोनों पार्टियों ने इसी जाति से आने वाले उम्मीदवारों पर दांव लगाया है.
खरगोन-बड़वानी जिले की विधानसभा सीटों से मिलकर बने इस संसदीय क्षेत्र में खरगोन, महेश्वर, कसरावद, भगवानपुरा, बड़वानी, राजपुर, पानसेमल, और सेंधवा सीटें आती हैं. विधानसभा चुनाव में इन आठ सीटों में से 7 पर कांग्रेस और एक पर बीजेपी को जीत मिली थी. इस क्षेत्र से प्रदेश की कांग्रेस सरकार में तीन बड़े मंत्री शामिल हैं. जिनके ऊपर कांग्रेस प्रत्याशी को जिताने की जिम्मेदारी है तो वहीं बीजेपी ने वर्तमान सांसद सुभाष पटेल का टिकट काटकर गजेंद्र पटेल को उम्मीदवार बनाया है, जो संगठन के सहारे चुनावी मैदान में हैं. 2014 में बीजेपी के सुभाष पटेल ने कांग्रेस के रमेश पटेल को हराया था.
अधिकतर ग्रामीण आबादी वाले इस संसदीय क्षेत्र का मतदाता बेरोजगारी, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन जैसी समस्या प्रमुख हैं, जबकि सफेद सोने यानी कपास की खेती के लिए मशहूर यहां के किसान भी पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलने से परेशान हैं. ऐसे में 19 मई को यहां का मतदाता किसको दिल्ली की सैर कराता है. ये देखने वाली बात होगी.