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ओंकारेश्वर में सुलवेद माता की चौखट तक पहुंचने के लिए भक्तों को उठाना पड़ता है जोखिम - etv bharat mp news

तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर में प्राचीन सुलवेद बावड़ी माता का मंदिर है. जहां पंहुचने के लिये व्यवस्थित मार्ग नहीं है. जिसकी वजह से सैकड़ों श्रद्धालु जान जोखिम में डालकर मंदिर में पहुंचते हैं, लेकिन प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है.

ओंकारेश्वर नगरी में स्थित है माता का मंदिर
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Published : Oct 6, 2019, 11:05 PM IST

खंड़वा। रहस्यमयी नगरी ओंकारेश्वर में प्रसिद्ध प्राचीन सुलवेद माता का मंदिर है. इस मंदिर और कुंड के बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं. मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अगर असाध्य चर्म रोगों से ग्रसित व्यक्ति मंगलवार के दिन स्नान करें तो उसका चर्म रोग धीरे-धीरे खत्म हो जाता है. हर मंगलवार को पड़ने वाली अमावस्या और पूर्णिमा को दूर-दराज से सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु स्नान और दर्शन के लिए आते हैं, जबकि इस प्राचीन मंदिर तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम है. पुजारी और श्रद्धालुओं ने कई बार प्रशासन से इसे ठीक करने की मांग की है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है.

ओंकारेश्वर नगरी में स्थित है माता का मंदिर

परिक्रमा क्षेत्र में आने वाले तीन विशिष्ट जंगलों में से एक ओंकारेश्वर के जंगलों में पड़ने वाले इस प्राचीन मंदिर और कुंड दोनों अद्भुत आभा लिए हुए हैं. ये मंदिर पहाड़ों के मध्य स्थित है. चारों ओर वन क्षेत्र होने से यहां हरियाली बनी रहती है. गर्मी के मौसम में भी इस मंदिर के आस पास हराभरा वातावरण रहता है. यहां बने कुंड का जल हमेशा स्वच्छ रहता है और एक समान जलस्तर बना रहता है. कुंड के जल को श्रद्धालु भरकर मंदिर प्रांगण के समीप स्नान कर मंदिर में देवी पूजन करते हैं.

मंदिर के पुजारी दादुराम वर्मा ने बताया कि मंदिर पहुंचने में श्रद्धालुओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जिसकी शिकायत लिखित में प्रशासन को कई बार की जा चुकी है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

खंड़वा। रहस्यमयी नगरी ओंकारेश्वर में प्रसिद्ध प्राचीन सुलवेद माता का मंदिर है. इस मंदिर और कुंड के बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं. मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अगर असाध्य चर्म रोगों से ग्रसित व्यक्ति मंगलवार के दिन स्नान करें तो उसका चर्म रोग धीरे-धीरे खत्म हो जाता है. हर मंगलवार को पड़ने वाली अमावस्या और पूर्णिमा को दूर-दराज से सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु स्नान और दर्शन के लिए आते हैं, जबकि इस प्राचीन मंदिर तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम है. पुजारी और श्रद्धालुओं ने कई बार प्रशासन से इसे ठीक करने की मांग की है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है.

ओंकारेश्वर नगरी में स्थित है माता का मंदिर

परिक्रमा क्षेत्र में आने वाले तीन विशिष्ट जंगलों में से एक ओंकारेश्वर के जंगलों में पड़ने वाले इस प्राचीन मंदिर और कुंड दोनों अद्भुत आभा लिए हुए हैं. ये मंदिर पहाड़ों के मध्य स्थित है. चारों ओर वन क्षेत्र होने से यहां हरियाली बनी रहती है. गर्मी के मौसम में भी इस मंदिर के आस पास हराभरा वातावरण रहता है. यहां बने कुंड का जल हमेशा स्वच्छ रहता है और एक समान जलस्तर बना रहता है. कुंड के जल को श्रद्धालु भरकर मंदिर प्रांगण के समीप स्नान कर मंदिर में देवी पूजन करते हैं.

मंदिर के पुजारी दादुराम वर्मा ने बताया कि मंदिर पहुंचने में श्रद्धालुओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जिसकी शिकायत लिखित में प्रशासन को कई बार की जा चुकी है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

Intro:खंडवा - ओंकारेश्वर एक रहस्यमयी नगरी हैं यहां माँ नर्मदा पैदल परिक्रमा में आने वाला मंदिर है. सुलवेद माता मंदिर जिसे शूल भेद बावडी भी कहते हैं. जो की परिक्रमा में आने वाले तीन विशिष्ट जंगलो में से एक ओंकारेश्वर के जंगलों में आता है. माँ नर्मदा के दक्षिण तट पर स्थित यह मंदिर विशिष्ट आभा लिए हुए हैं. इस मंदिर और कुंड के बारे में कई किवदंतिया हैं. कहते हैं यदि असाध्य चर्म रोग सहित अन्य रोगों से ग्रसित व्यक्ति मंगलवार के दिन स्नान करे तो उसका चर्म रोग धीरे धीरे खत्म हो जाता है. प्रत्येक मंगलवार के दिन और अमावस्या , पूर्णिमा को यहा दूर दराज से सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु स्नान दर्शन को आते है। इस प्राचीन मंदिर पहुंच का रास्ता दुर्गम हैं पुजारी और श्रद्धालुओं ने कई बार प्रशासन से इसे ठीक करने की मांग की हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हैं.


Body:परिक्रमा क्षेत्र में आने वाले तीन विशिष्ट जंगलो में से एक ओंकारेश्वर के जंगलों में पड़ने वाले इस प्राचीन मंदिर और कुंड दोनों अद्भुत आभा लिए हुए हैं. यह मंदिर पहाड़ों के मध्य में स्थित हैं. चारों ओर वन क्षेत्र होने से यहां हरियाली बनी रहती हैं इससे गर्मी के मौसम में भी इस मंदिर के आस पास हराभरा वातावरण रहता हैं. पक्षी यहां स्वच्छंद विचरण करते हैं बहुत सुंदर और अद्भुत वातावरण हैं. यहां बने कुंड का जल हमेशा स्वच्छ रहता है. और एकसमान जल स्तर बना रहता हैं. कुंड के जल को श्रद्धालु भरकर मंदिर प्रागंण के समीप स्नान कर मंदिर में देवी पूजन करते हैं. मंदिर के पुजारी दादूराम वर्मा करते हैं. जिनकी कई पीढ़ियां मंदिर और कुंड की देखभाल करते आये हैं. और बहुत कुछ रहस्य एवं चमत्कार लिए विराजित है यह माता का मंदिर है.
Byte - श्रद्धालु Conclusion:मंदिर के पुजारी दादुराम वर्मा ने बताया कि मंदिर पहुंचने में श्रद्धालुओं की कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं जिसकी शिकायत लिखित में मेरे द्वारा स्थानीय प्रशासन को कई बार अवगत करा चुका हूँ.
Byte - दादुराम वर्मा , पुजारी
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