खंडवा। मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी के तट पर बना यह मंदिर भगवान शंकर के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक ओंकारेश्वर है, इस शिवलिंग की अपनी ही अलग महिमा है, ओंकारेश्वर अन्य ज्योतिर्लिंगों से अलग हैं, क्योंकि यहां भगवान शिव दो रूपों में विराजमान है, पहला ओंकारेश्वर और दूसरे ममलेश्वर, ओंकार पर्वत और मां नर्मदा के तट पर बसा शिव का यह धाम मोक्ष का द्वार माना जाता है, जहां भोलेनाथ के दर्शन मात्र से भक्तों के हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है.
मान्यता है कि जब ब्रह्राजी ने सृष्टि की रचना की, तब पूरे ब्राह्रांड में यही एक ऐसी जगह बनी जहां, ब्रह्रा, विष्णु और महेश का वास एक साथ हुआ, और जहां इन तीनों देवाताओं का वास होता है वहां ऊं का आकार बनता है, जिसके चलते इस पर्वत का नाम ओंकार पड़ा, ओंकार पर्वत पर ब्रह्मपुरी, विष्णुपुरी और शिवपुरी तीनों देवताओं के दर्शन एक साथ होते हैं.
मंदिर से जुड़ी एक और लोककथा प्रचलित है, कि यहां के राजा मंधाता ने अपनी प्रजा के हित के लिए तपस्या कर भगवान शिव से यही विराजमान होने का वरदान मांगा था. भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर यहा विराजमान हो गए. अमरकंठक से निकली मां नर्मदा भी शिव का जालभिषेक करते हुए यहीं से निकली, यही वजह है कि नर्मदा का जल भगवान ओंकारेश्वर पर चढ़ाया जाता है, तो वो वापस सीधा मां नर्मदा में ही मिल जाता है.
उज्जैन में जहां भगवान शंकर महाकाल से रुप में विराजमान हैं, तो यहां भगवान शंकर का भोलेनाथ रुप है, जहां वे भक्तों के जल चढ़ाए जाने मात्र से इतने प्रसन्न होते हैं, कि भक्तों की सारी मनोकामानाएं पूरी हो जाती हैं, महाशिवरात्रि पर भगवान ओंकारेश्वर के दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है, क्योंकि यहां शिव की बारात में शामिल होने, तीनों लोकों के देवता आते हैं.
मां नर्मदा और भगवान भोले के संगम का क्षेत्र ओंकारेश्वर भोले के भक्तों की आस्था का केंद्र है, ॐ आकार से बने इस तीर्थ की परिक्रमा करने पर अत्यंत लाभदायक फल तथा मोक्ष की प्राप्ति होती हैं. दर्शन मात्र से मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं.