खंडवा। शनिवार को शनिश्चरी और सत्तू अमावस्या पर श्रद्धालुओं ने मां नर्मदा में स्नान और सत्तू का दान कर पुण्य लाभ लिया. सुबह से चला स्नान करने का दौर शाम तक चलता रहा. नगर सहित आसपास और दूरदराज क्षेत्रों से आए हजारों श्रद्धालुओं ने नर्मदा नदी में स्नान कर नगर के प्रसिद्ध देवालयों और शिवालयों में दर्शन लाभ भी लिया. ओंकारेश्वर तीर्थ नगरी में शनिश्चरी और सत्तू अमावस्या एक ही दिन होने से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती रही. (sattu Amavasya 2022)
भक्तों ने शनि ग्रह संबंधी वस्तुओं का दान किया: ओंकारेश्वर में भीषण गर्मी के बावजूद श्रद्धालु की आस्था और संख्या में कोई कमी नहीं दिखी. सुबह से ही नर्मदा कावेरी संगम घाट, नागर घाट, गोमुख घाट, सहित अन्य प्रमुख घाटों पर लोग स्नान करने पहुंचे. सुबह से लेकर शाम तक 20 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने स्नान और दर्शन किया. ओंकारेश्वर के अलावा मोरटक्का स्थित खेड़ीघाट पर भी सुबह से नर्मदा स्नान का दौर चलता रहा. शहर के प्रसिद्ध खेड़ापति हनुमान मंदिर और भवानी माता मंदिर परिसर में शनि देव की प्रतिमा पर श्रद्धालुओं ने पूजा किया. सुबह से लेकर शाम तक पूजन अर्चन कर शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए भक्तों ने शनि ग्रह संबंधी वस्तुओं का दान भी किया.
सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद: थाना प्रभारी बलराम सिंह राठौर ने कहा, 'भक्तों की भीड़ को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्थाओं के साथ-साथ यातायात व्यवस्था भी की गई थी. थाना परिसर स्थित कंट्रोल रूम से पुलिस द्वारा सतत निगरानी रखी जा रही थी. अमावस्या के अलावा शनिवार और रविवार अवकाश के चलते भी शुक्रवार शाम से ही श्रद्धालुओं का ओंकारेश्वर पहुंचना शुरू हो गया था. (devotees in khandwa donated sattu)
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सत्तू अमावस्या पर दान पूर्ण का महत्व: चने की दाल, गेहूं और जौ तीन वस्तुओं को मिलाकर बनने वाले सत्तू का सत्तू अमावस्या पर विशेष महत्व होता है. मंदिर ट्रस्ट के सहायक कार्यपालन अधिकारी अशोक महाजन ने कहा, सत्तू अमावस्या पर दान पूर्ण का महत्व होने से ट्रस्ट की ओर से हर साल परंपरा का निर्वाह किया जाता है. चने की दाल गेहूं और जौ इन तीन प्रकार के धान की सिकाई कर पत्थर की घट्टी या चक्की में पीसकर खाद्य पदार्थ सत्तू तैयार किया जाता है. जिसे गुड़ या चीनी के पानी में मिलाकर स्वाद अनुसार लोग खाते हैं.