खंडवा। कई सालों के बाद आखिरकार वह घड़ी आ ही गई जिसका इंतजार देशभर में लाखों राम भक्तों को था, 5 अगस्त को अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर के लिए भूमि पूजन करेंगे. हर कोई इस पल का साक्षी बनना चाहता है. राम मंदिर आंदोलन में देशभर से कार सेवकों ने अपना योगदान दिया. उन्हीं में एक खंडवा जिले के कार सेवक राजेश डोंगरे हैं. अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन से डोंगरे बेहद खुश हैं और अपने आपको बहुत सौभाग्यशाली मानते हैं कि आखिरकार इतने सालों की मेहनत आज रंग लाई है और राम जन्मभूमि में रामलला विराजमान होंगे.
कारसेवक राजेश डोंगरे उन पलों को याद करते हुए बताते हैं कि जब 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया गया था. भगवान राम की जन्मभूमि पर भव्य राम का मंदिर बनाने की मांग को लेकर देशभर के लाखों कारसेवक राम मंदिर आंदोलन से जुड़े थे. उसमें विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, सहित कई हिंदूवादी संगठन शामिल थे. खंडवा जिले से भी कारसेवकों का एक बड़ा जत्था अयोध्या पहुंचा था.
राम जन्मभूमि पर मस्जिद के लिए लोगों में बहुत रोष था
डोंगरे बतातें है कि जब मुलायम सिंह की सरकार थी तो हम कार सेवा के लिए गए थे, अडवाणी जी की रथ यात्रा को बिहार में रोक लिया गया, उस वक्त खंडवा से गए कारसवेकों के जत्थे को झांसी में रोक लिया गया और गिरफ्तार कर हमें स्कूल में बंदी बनाकर रखा गया.
इस बात को देखकर झांसी के लोग जमा हो गए, इसके बाद हमने झांसी में जुलूस निकाला. जिसके बाद वहां कर्फ्यू लग गया और उसके बाद पुलिस ने हमे वहां से वापस लौटा दिया. उसके बाद हमने दोबारा अयोध्या के लिए प्रस्थान किया.
उस समय तत्कालीन खंडवा लोकसभा के सांसद अमृतलाल तारवाला के नेतृत्व में फिर दोबारा 3 दिसंबर 1992 को अयोध्या गए. वहां देश के विभिन्न राज्यों से विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लाखों कार्यकर्ता पहुंचे थे. उस समय राम जन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद के खिलाफ लोगों में खासा रोष था और राम जन्मभूमि पर राम मंदिर बनाने के लिए एक जबरदस्त माहौल बना था.
जब लगाया था नारा... 'मिट्टी नहीं सरकायेंगे, ढांचा तोड़कर जाएंगे'
5 दिसंबर को कारसेवकों को आह्वान किया गया कि सरयू नदी का एक मुट्ठी रेत लेकर मंदिर में डालना है और वहां से चले जाना है, इससे हमें बहुत बुरा लगा और तभी नारा लगाया कि मिट्टी नहीं सरकायेंगे, ढांचा तोड़कर जाएंगे.
उसके बाद सभी कारसेवकों ने ढांचे को तोड़कर नेस्तनाबूद कर दिया और वहां ईंट का एक मंदिर बना दिया गया. उस वक्त उमा भारती ने कहा था कि ये काले-काले ढांचे हमारी गुलामी के प्रतीक हैं और इनको तोड़ना हमारे लिए आजादी के सामान है. उसके बाद बहुत लंबी लड़ाई चली और सुप्रीम कोर्ट से होते हुए रास्ता साफ हुआ, नतीजा अब मंदिर बनने जा रहा है, इससे ज्यादा खूबसूरत पल कोई हो नहीं सकता.