खंडवा। 21वीं सदी में दुनिया पहली बार ऐसी त्रासदी देख रही है, जब हर कोई खुद को लाचार और असहाय महसूस कर रहा है, कोरोना वायरस का अब तक कोई इलाज नहीं मिल पाया है, लेकिन कोरोना संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया है, जिसके चलते सड़कें सूनी पड़ी हैं, बाजारों में सन्नाटा पसरा है, न आरती-अजान की आवाज सुनाई पड़ रही है और न ही घंटों की गूंज. जिसके चलते मंदिरों के दान पत्र भी खाली हो गए हैं, जिससे पंडे-पुजारी तक परेशान हैं क्योंकि मंदिर से होने वाली कमाई से ही उनका परिवार चलता है. जब भगवान ही मंदिरों में कैद हैं तो ऐसे में पुजारियों को कहां से यजमान मिलेंगे और जब यजमान ही नहीं मिलेंगे तो कैसे इनकी जीविका चलेगी.
खंडवा की तीर्थनगरी और देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर है, लेकिन लॉकडाउन में मंदिर बंद होने के चलते पुजारियों की आजीविका पर काले बादल मंडराने लगे हैं, दो जून की रोटी के लाले पड़ गए हैं. एक ओर जहां ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में सामान्य दिनों में 25-30 लाख रूपए मासिक आय होती थी, इस क्षेत्र में बने मंदिरों में सैकड़ों पंडे, पुजारी पूजा पाठ, अभिषेक अनुष्ठान कराते हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते 2 महीनों में मंदिर बंद हैं, जिसका खामियाजा पुजारियों को भुगतना पड़ रहा है.
पंडे-पुजारी अब प्रदेश सरकार से आर्थिक मदद की गुहार लगा रहे हैं, ओंकारेश्वर में छोटे-बड़े कई मंदिर हैं, जिसमें पूजा,अभिषेक और अनुष्ठान कराने हजारों श्रद्धालु आते हैं. लॉकडाउन में श्रद्धालुओं का आना बंद हो गया है, जिसके बाद मंदिर सूने हो गए और इन पुजारियों के घरों की खुशियां भी मंद पड़ गई हैं. पंडित रत्नाकर पाराशर ने कहा कि लॉकडाउन में मंदिर बंद हैं, लेकिन भगवान की पूजा तो हो रही है, पर कोई भी यजमान मंदिर नहीं आ रहा है. अब देखना होगा कि आखिर भगवान ओंकारेश्वर की आमदनी तो बंद है, लेकिन इन पंडे-पुजारियों को कब तक यजमान मिलते हैं.