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आजादी के 73 साल बाद भी पगडंडी पर जिंदगी, MP में बह रही विकास की गंगा या बह गया विकास

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Published : Jun 22, 2020, 5:25 PM IST

Updated : Jun 22, 2020, 6:29 PM IST

आजादी के 73 साल बाद भी निपानिया गांव के लोगों को सड़क मार्ग तक पहुंचने के लिए जोखिम भरे रास्तों से 10 से 12 किमी तक सफर तय करना पड़ता है. बीमारी की हालत में तो ये परेशानी और भी बढ़ जाती है क्योंकि मरीज को रोड तक ले जाने के बाद ही एंबुलेंस मिलती है.

katni road
डिजाइन फोटो

कटनी। आजादी के 73 साल बाद भी गांव के लोगों को आवागमन के लिए एक सड़क तक मयस्सर नहीं हुई. ये हकीकत है कटनी जिले के गौरीगंज विधानसभा क्षेत्र के निपानिया गांव की, जहां आदिवासी समाज के लोगों को गांव से मुख्य सड़क तक आने-जाने के लिए जोखिम उठाना पड़ता है, जो बारिश के दिनों में और भी बढ़ जाता है.

मजबूरी का सफर

गांव के लोग कई बार अपनी इस समस्या को लेकर जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन किसी ने उनकी इस समस्या का समाधान नहीं किया. यहां तक कि इस गांव में अगर कोई बीमार हो जाए तो उन्हें बिना सड़क के 14 किलोमीटर लंबा सफर तय कर एल्बम तहसील पहुंचते हैं. फिर वहां से 108 को कॉल करते हैं क्योंकि एंबुलेंस ड्राइवर इससे आगे जाने से मना कर देता है.

पगडंडी पर जिंदगी

सरकारी योजनाओं की हकीकत

यहां शिवराज सरकार के 15 साल और कमलनाथ सरकार के 15 महीनों के विकास के दावों की पोल खुलती नजर आ रही है. बीजेपी के मुताबिक शिवराज सरकार में पूरे प्रदेश में विकास की गंगा बही है, इधर बची-खुची कसर कांग्रेस सरकार ने 15 महीने में पूरी कर दी है. साल 2009-2010 में इस गांव के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत सड़क प्रस्तावित किया गया था, लेकिन आज तक पूरा नहीं हुआ है. सड़क बनाने के लिए कुछ जगह मुरम डाली गई, लेकिन सड़क बीते 10 साल में भी नहीं बन पाई. सड़क की समस्या को लेकर अधिकारियों के साथ ही जनप्रतिनिधियों से भी शिकायत की गई, जहां आश्वासन तो बहुत मिले, लेकिन आज तक कोई परिणाम नहीं निकला है.

महज वोट मांगने पहुंचते हैं नेता
यहां आदिवासी समाज के लोगों को किसी भी कार्य के लिए दो से 3 मील की दूरी तय कर जंगल में बड़े-बड़े पत्थरों वाले सड़क से गुजर कर मुख्य सड़क तक पहुंचना पड़ता है. ग्रामीणों की मानें तो इनका कहना है कि गांव में तीन पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं. इन्होंने सिर्फ अधिकारियों व नेताओं को चुनाव के समय ही अपने गांव में वोट मांगने आते देखा है.

आखिर कब बनेगी सड़क ?
कलेक्टर शशि भूषण सिंह सिंह का कहना है कि निर्माण एजेंसी पर कार्रवाई करते हुए दोबारा से सड़क निर्माण का काम कराया जाएगा. बहरहाल देखना ये है कि जिले के आला अधिकारी क्या इन आदिवासी समाज की समस्याओं का निराकरण करते हैं या नहीं, इन दावों की जमीनी हकीकत आप खुद ये तस्वीरें देखकर तय कीजिए कि विकास की गंगा बह रही है या फिर प्रदेश से विकास ही बह गया है.

कटनी। आजादी के 73 साल बाद भी गांव के लोगों को आवागमन के लिए एक सड़क तक मयस्सर नहीं हुई. ये हकीकत है कटनी जिले के गौरीगंज विधानसभा क्षेत्र के निपानिया गांव की, जहां आदिवासी समाज के लोगों को गांव से मुख्य सड़क तक आने-जाने के लिए जोखिम उठाना पड़ता है, जो बारिश के दिनों में और भी बढ़ जाता है.

मजबूरी का सफर

गांव के लोग कई बार अपनी इस समस्या को लेकर जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन किसी ने उनकी इस समस्या का समाधान नहीं किया. यहां तक कि इस गांव में अगर कोई बीमार हो जाए तो उन्हें बिना सड़क के 14 किलोमीटर लंबा सफर तय कर एल्बम तहसील पहुंचते हैं. फिर वहां से 108 को कॉल करते हैं क्योंकि एंबुलेंस ड्राइवर इससे आगे जाने से मना कर देता है.

पगडंडी पर जिंदगी

सरकारी योजनाओं की हकीकत

यहां शिवराज सरकार के 15 साल और कमलनाथ सरकार के 15 महीनों के विकास के दावों की पोल खुलती नजर आ रही है. बीजेपी के मुताबिक शिवराज सरकार में पूरे प्रदेश में विकास की गंगा बही है, इधर बची-खुची कसर कांग्रेस सरकार ने 15 महीने में पूरी कर दी है. साल 2009-2010 में इस गांव के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत सड़क प्रस्तावित किया गया था, लेकिन आज तक पूरा नहीं हुआ है. सड़क बनाने के लिए कुछ जगह मुरम डाली गई, लेकिन सड़क बीते 10 साल में भी नहीं बन पाई. सड़क की समस्या को लेकर अधिकारियों के साथ ही जनप्रतिनिधियों से भी शिकायत की गई, जहां आश्वासन तो बहुत मिले, लेकिन आज तक कोई परिणाम नहीं निकला है.

महज वोट मांगने पहुंचते हैं नेता
यहां आदिवासी समाज के लोगों को किसी भी कार्य के लिए दो से 3 मील की दूरी तय कर जंगल में बड़े-बड़े पत्थरों वाले सड़क से गुजर कर मुख्य सड़क तक पहुंचना पड़ता है. ग्रामीणों की मानें तो इनका कहना है कि गांव में तीन पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं. इन्होंने सिर्फ अधिकारियों व नेताओं को चुनाव के समय ही अपने गांव में वोट मांगने आते देखा है.

आखिर कब बनेगी सड़क ?
कलेक्टर शशि भूषण सिंह सिंह का कहना है कि निर्माण एजेंसी पर कार्रवाई करते हुए दोबारा से सड़क निर्माण का काम कराया जाएगा. बहरहाल देखना ये है कि जिले के आला अधिकारी क्या इन आदिवासी समाज की समस्याओं का निराकरण करते हैं या नहीं, इन दावों की जमीनी हकीकत आप खुद ये तस्वीरें देखकर तय कीजिए कि विकास की गंगा बह रही है या फिर प्रदेश से विकास ही बह गया है.

Last Updated : Jun 22, 2020, 6:29 PM IST
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