कटनी। आज प्रदेश के सीट विश्लेषण की सीरिज में बात कटनी की विजयराघवगढ़ की. यहां पर पिछले 15 सालों से एक ही विधायक काबिज है. ये सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि यहां से भाजपा के चर्चित नेता और अमीर विधायक संजय पाठक चुनाव लड़ते हैं और विजय पताका लहराते हैं. संजय पाठक ने शुरुआत में विधायकी का चुनाव कांग्रेस से लड़ा था. इसके बाद उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली, और उपचुनाव भी जीत लिया. इलाके में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है. इस बार विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने एक सर्वे कराया था, जिसमें उनके पक्ष में 75 प्रतिशत जनता अपना विश्वास जताया. वे प्रदेश के राज्य मंत्री भी रह चुके हैं. आइए जानते हैं, इस बार विजयराघवगढ़ सीट पर क्या सियासी समीकरण बनते बिगड़ते दिखाई दे रहे हैं.
क्या है विजयराघवगढ़ के सियासी समीकरण: इस बार प्रदेश में कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ रही है. इसका प्रभाव भी देखने को मिल रहा है. यहां एक तरफ बीजेपी के नेता संजय पाठक चुनावी मैदान में हैं, तो वहीं कांग्रेस के कुंवर ध्रुव प्रताव सिंह, पद्मा शुक्ला सहित नीरज सिंह बघेल सियासी बिछात बिछा रहे हैं. साथ ही अपनी दावेदारी भी कांग्रेस से पेश कर रहे हैं. साल 1967 में विजयराघवगढ़ विधानसभा बनने के बाद से यहां कांग्रेस ने 7 बार चुनाव जीता है. इसमें एक उपचुनाव भी शामिल था. इधर, 6 बार बीजेपी को जनता ने चुनकर विधायक की कुर्सी थमाई है. इस सीट पर सबसे ज्यादा विजयराघवगढ़ विधानसभा में सबसे ज्यादा राज पाठक परिवार ने सत्ता को अपने हाथ में रखा है. अब पार्टी चाहे कांग्रेस रही हो, या बीजेपी. इस सीट से 1993 से 2003 तक स्व. सत्येंद्र पाठक कांग्रेस से विधायक रहे. वे कैबिनेट का हिस्सा भी रहे. उनकी आलाकमान में अच्छी खासी पकड़ है. इसके बाद बीजेपी प्रत्याशी कुंवर ध्रुव प्रताप सिंह ने मंत्री सत्येंद्र पाठक को चुनाव में हराया और बीजेपी की झोली में इस सीट को डाल दिया. हालांकि, 2008 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से सत्येंद्र पाठक के बेटे संजय पाठक चुनावी मैदान में उतरे, और जीत हासिल की. लेकिन, उनका नाता कांग्रेस से ज्यादा नहीं निभ पाया और साढ़े छ: साल बाद पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए. इसके बाद वे बीजेपी से चुनाव लड़े और उपचुनाव में जीत भी हासिल की.
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खनिज संपदा से परिपूर्ण है विजयराघवगढ़ सीट: मध्यप्रदेश की ये विधानसभा सीट खनिज संपदा से परिपूर्ण है. इस वजह से यहां रोजगार की कमी नहीं है. हाल ही में वर्तमान विधायक ने यहां हरिहर तीर्थ बनाने का फैसला किया. हालांकि, कुछ प्रतिशत जनता का मोह विधायक संजय पाठक से उठा है. इसका उनके लंबे वक्त से विधायक रहना. इसके अलावा यहां रेत अवैध खनन का भी मुद्दा बना रहता है. इसका असर किसानों के आम जीवन पर भी देखने को मिला है. इनके अलावा उनके कुछ साथी जिनमें ध्रुव प्रताप सिंह, करीबी संदीप उर्फ पप्पू वाजपेयी, ब्राह्मण समाज से जुड़े छेदीलाल ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस का दामन थाम लिया है. इस वजह से भी सीट पर समीकरण 50% - 50% का रह गया है.
विजयराघवगढ़ पर कितने मतदाता: इधर, सरकारी रिकॉर्ड्स की बात करें, तो विजयराघवगढ़ विधानसभा में 2 लाख 30 हजार 887 वोटर्स हैं. इनमें 1,11,021 महिला और 1,19,866 मतदाता शामिल हैं. इसके अलावा अन्य वोटर्स कुल 4 हैं. ये सभी आगामी विधानसभा चुनाव में अपना अगला विधायक चुनेंगे.
अगर जातिगत समीकरण की बात करें, तो यहां ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा है. यहां ब्राह्मणों की संख्या 58 हजार से 64 हजार रही है. ठाकुर यहां 30से 35 हजार हैं, इसके अलावा कोल (आदिवासी) 42 से 46 हजार की संख्या में हैं. इनके अलावा अल्पसंख्या भी 24 से 27 हजार की तदाद में हैं.
इधर कांग्रेस ने भी पिछले कुछ वक्त से यहां सक्रिय बढ़ाते हुए, राजनीतिक चालें चलते हुए, जातिगत समीकरण का खेल खेलना शुरु कर दिया है. उन्होंने विधायक के लोगों को ही अपने पाले में लाना शुरु कर दिया, जिससे संजय पाठक का पक्ष इस चुनाव कमजोर नजर आता है. फिलहाल, सीट किस के पाले में आएगी, ये वक्त बताएगा.