झाबुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु बढ़ाने के संकेत दिए हैं. जिसके बाद इस मुद्दे पर बहस शुरू हो गई है. मध्य प्रदेश के पश्चिमी छोर पर बसे आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की महिलाओं ने इसे सकारात्मक पहल बताया है. वर्तमान में लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 और लड़कों के लिए 21 साल है. लेकिन क्या हमेशा से शादी की उम्र यही थी. आइए जानते हैं शादी की उम्र में कब-कब बदलाव हुए.
विवाह की आयु का ऐतिहासिक और कानूनी दृष्टिकोण
- साल 1860 में अधिनियमित हुई भारतीय दंड संहिता (IPC) में 10 साल से कम उम्र की लड़की के साथ किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध को अपराध की श्रेणी में शामिल कर दिया गया था. इसके बाद साल 1927 में ब्रिटिश सरकार ने कानून के माध्यम से 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के साथ विवाह को अमान्य घोषित कर दिया.
- साल 1929 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम के माध्यम से महिलाओं और पुरुषों के विवाह की न्यूनतम आयु 14 और 18 साल निर्धारित कर दी गई. साल 1949 में संशोधन के माध्यम से महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाकर 15 वर्ष कर दी गई.
- 1978 में इस कानून में एक बार फिर संशोधन किया गया और महिलाओं और पुरुषों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को 18 वर्ष और 21 वर्ष कर दिया गया. स्पेशल मेरिज एक्ट 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 भी महिलाओं और पुरुषों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 और 21 वर्ष निर्धारित करते हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में हालात खराब
इन कानूनों के चलते समाज में काफी बदलाव देखने को मिला है. लिहाजा देश और प्रदेश में बाल विवाहों में कमी देखने को मिली है. लेकिन शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में हालात अभी भी खराब हैं.
आदिवासी बाहुल्य जिला झाबुआ की बात की जाए तो यहां की कुल आबादी करीब 11 लाख है. लिंगानुपात 990 है. यानी हजार पुरूष पर 990 महिलाएं. जो कई बड़े महानगरों की तुलना में ठीक-ठाक स्थिति है.
लेकिन ये क्षेत्र शिक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी पिछड़ा है. यहां की साक्षरता दर 45 फीसदी से भी कम है. जिसमें महिला साक्षरता दर महज 34 फीसदी ही है. साथ ही क्षेत्र में कुपोषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हैं.
ये फैसला महिलाओं के हक में
इन तमाम बातों को लड़कियों की शादी की उम्र से जोड़कर देखा जा सकता है. समाजसेवी संस्थाओं का मानना है कि अगर सरकार लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने का फैसला लेती है, तो उनका सर्वांगीण विकास हो सकेगा. महिलाओं को शिक्षा के अवसर मिल सकेंगे. जिससे आगे चलकर वे अपने पांव पर खड़ीं हो सकेंगी. इसके अलावा कम उम्र में शादी और फिर बच्चों के चलते महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. लिहाजा अगर केंद्र सरकार ये फैसला लेती है तो ये महिलाओं के हक में ही होगा.
कई कानूनी उलझनें हैं मौजूद
हालांकि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाए जाने को लेकर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं. जैसे अगर कोई वयस्क जोड़ा विवाह करना चाहता है और इसमें उनके परिजनों की सहमति नहीं है तो इस कानून के दुरुपयोग होने की संभावना भी है.
क्योंकि अक्सर देखा गया है कि घर से भागे हुए प्रेमी जोड़ों के केस में अपहरण, दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के तहत भी मामले दर्ज हुए हैं. जिसके तहत कम से कम सजा ही 20 साल है. वहीं अगर कोई अभिभावक नाबालिग लड़की शादी करवाते हैं, तो बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत दो साल तक की ही सजा हो सकती है.
क्या कर सकती है सरकार
ऐसे में सवाल खड़ा होता कि आगे सरकार क्या कर सकती है. सरकार या तो लड़कों की शादी की उम्र 21 साल से घटाकर 18 साल कर सकती है. इससे समानता के अधिकार को लेकर हो रही बहस शांत हो सकेगी. दूसरा ये कि लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल कर दी जाए. जिससे उन्हें आगे बढ़ने के अवसर मिल सकें. हालांकि इसके लिए सरकार को वर्तमान में मौजूद विवाह संबंधी कानूनी विसंगतियों को दूर करने की जरूरत है.