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इलाज के नाम पर अंधविश्वास का खेल ! - mp news

झाबुआ में कोरोना महामारी से लड़ने के लिए अब गांव के लोग ने झाड़-फूंक का सहारा ले रहे हैं. कोरोना के डर में ग्रामीण अंधविश्वासी होते जा रहे हैं.

fear of Corona
ये कैसा अंधविश्वास!
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Published : Apr 19, 2021, 1:09 PM IST

झाबुआ। जिस कोविड़-19 कोरोना महामारी से इस समय पुरा विश्व लड़ रहा है उससे लड़ने के लिए झाबुआ के ग्रामीण अंधविश्वास का सहारा ले रहे हैं. जिस कोरोना बीमारी की जांच के लिए अस्पतालों में कतारें लग रहीं हैं, जिसके इलाज के लिए गांवों से लेकर शहरों के सभी सरकारी और प्राइवेट अस्पलातों में बिस्तर तक मिल नहीं रहे, उसी कोरोना महामारी से ठीक होने के लिए आदिवासी जिले झाबुआ के ग्रामीण अब जड़ी-बुटी और अंधविश्वास का सहारा लेने लगे हैं. अशिक्षा के चलते हॉस्पिटलों में उपचार कराने की बजाए ले लोग अपने ही घरों में रहकर ठीक होने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं.

अंधविश्वास
  • ग्रामीणों में इलाज को लेकर अंधविश्वास

कोरोना महामारी के चलते जहां एक ओर अस्पतालों में सांसे ऑक्सीजन की कर्जदार बनी हुई है. उसी के ईलाज के लिए झाबुआ के ग्रामीण आदिवासी सतावरी नामक जड़ से इलाज करा रहे हैं. जिसे ग्रामीण भाषा में सफेद सेवरा कहते हैं. ग्रामीणजन बुखार-सर्दी-खासी ( कोरोना लक्षण होने) पर हॉस्पिटल में जाने की बजाए बड़वे और पंडों के चक्कर लगा रहे हैं. जिले के थांदला, मेघनगर और झाबुआ के आसपास के कई गावों में कोरोना से ठीक होने की मालाएं बनाई जा रही है. अंधविश्वास इतना है कि इन माला बनाने वालों के घरों पर स ग्रामीणों की भीड़ जमा हो रही है.

  • टाइफाइड में भी पहनते है इसकी माला

सतावरी (सफेद सेवरा) एक तरह की जड़ होती है. जिसे कुछ लोग विशेष तरिके से अभिमंत्रित करके माला बनाते हैं. टाइफाइड की बीमारी में ग्रामीणों के साथ-साथ पढ़े-लिखें लोग भी इसकी माला गले में डालते हैं और कहते है जैसे-जैसे बीमारी का असर खत्म होता है वैसे-वैसे माला बढ़ी यानी उसकी लम्बाई बढ़ती जाती है. इन दिनों ग्रामीण क्षेत्रों में बुखार से पीड़ित मरीज इसी तरह की मालाएं पहन कर ठीक होने का प्रयास कर रहे हैं.

आस्था या अंधविश्वास! अजीबो-गरीब मान्यता से पूरी करते हैं मुराद

  • ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रहा संक्रमण

कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते शहरी क्षेत्रों के बाद अब ग्रामीण इलाकों में भी लोग इसकी चपेट में आने लगे हैं. अंधविश्वास के चलते बड़ी संख्या में ग्रामीण हॉस्पिटलों की बजाए परम्परागत देशी मान्यता के चलते जड़ी-बूटी की माला पहनने और इसके सेवन कर ठीक होने की बात कह रहे है. झाबुआ के ग्रामीणों में कोरोना के इलाज को लेकर फैल रहे इस अंधविश्वास के प्रति प्रशासन को भी जागरूकता लानी होगी वरना संक्रमण का खतरा विकराल रूप ले धारण कर लेगा.

  • डाक्टरों ने कहा ना बरते लापरवाही

केरोना को लेकर ग्रामीणों की इस लापरवाही पर डाक्टरों का कहना है कि वे इस तरह के अंधविश्वास में अपनी और अपना की जान खतरे में न डालें. कोरोना के लक्षण दिखने पर तुरंत अस्पताल पहुंच कर जांच कराएं, न कि किसी अंधविश्वास के सहारे रहें. कोरोना होने और बीमारी छुपाने पर उपचार में काफी देर हो जाती है और कई बार मरीज की मौत भी हो जाती है.

झाबुआ। जिस कोविड़-19 कोरोना महामारी से इस समय पुरा विश्व लड़ रहा है उससे लड़ने के लिए झाबुआ के ग्रामीण अंधविश्वास का सहारा ले रहे हैं. जिस कोरोना बीमारी की जांच के लिए अस्पतालों में कतारें लग रहीं हैं, जिसके इलाज के लिए गांवों से लेकर शहरों के सभी सरकारी और प्राइवेट अस्पलातों में बिस्तर तक मिल नहीं रहे, उसी कोरोना महामारी से ठीक होने के लिए आदिवासी जिले झाबुआ के ग्रामीण अब जड़ी-बुटी और अंधविश्वास का सहारा लेने लगे हैं. अशिक्षा के चलते हॉस्पिटलों में उपचार कराने की बजाए ले लोग अपने ही घरों में रहकर ठीक होने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं.

अंधविश्वास
  • ग्रामीणों में इलाज को लेकर अंधविश्वास

कोरोना महामारी के चलते जहां एक ओर अस्पतालों में सांसे ऑक्सीजन की कर्जदार बनी हुई है. उसी के ईलाज के लिए झाबुआ के ग्रामीण आदिवासी सतावरी नामक जड़ से इलाज करा रहे हैं. जिसे ग्रामीण भाषा में सफेद सेवरा कहते हैं. ग्रामीणजन बुखार-सर्दी-खासी ( कोरोना लक्षण होने) पर हॉस्पिटल में जाने की बजाए बड़वे और पंडों के चक्कर लगा रहे हैं. जिले के थांदला, मेघनगर और झाबुआ के आसपास के कई गावों में कोरोना से ठीक होने की मालाएं बनाई जा रही है. अंधविश्वास इतना है कि इन माला बनाने वालों के घरों पर स ग्रामीणों की भीड़ जमा हो रही है.

  • टाइफाइड में भी पहनते है इसकी माला

सतावरी (सफेद सेवरा) एक तरह की जड़ होती है. जिसे कुछ लोग विशेष तरिके से अभिमंत्रित करके माला बनाते हैं. टाइफाइड की बीमारी में ग्रामीणों के साथ-साथ पढ़े-लिखें लोग भी इसकी माला गले में डालते हैं और कहते है जैसे-जैसे बीमारी का असर खत्म होता है वैसे-वैसे माला बढ़ी यानी उसकी लम्बाई बढ़ती जाती है. इन दिनों ग्रामीण क्षेत्रों में बुखार से पीड़ित मरीज इसी तरह की मालाएं पहन कर ठीक होने का प्रयास कर रहे हैं.

आस्था या अंधविश्वास! अजीबो-गरीब मान्यता से पूरी करते हैं मुराद

  • ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रहा संक्रमण

कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते शहरी क्षेत्रों के बाद अब ग्रामीण इलाकों में भी लोग इसकी चपेट में आने लगे हैं. अंधविश्वास के चलते बड़ी संख्या में ग्रामीण हॉस्पिटलों की बजाए परम्परागत देशी मान्यता के चलते जड़ी-बूटी की माला पहनने और इसके सेवन कर ठीक होने की बात कह रहे है. झाबुआ के ग्रामीणों में कोरोना के इलाज को लेकर फैल रहे इस अंधविश्वास के प्रति प्रशासन को भी जागरूकता लानी होगी वरना संक्रमण का खतरा विकराल रूप ले धारण कर लेगा.

  • डाक्टरों ने कहा ना बरते लापरवाही

केरोना को लेकर ग्रामीणों की इस लापरवाही पर डाक्टरों का कहना है कि वे इस तरह के अंधविश्वास में अपनी और अपना की जान खतरे में न डालें. कोरोना के लक्षण दिखने पर तुरंत अस्पताल पहुंच कर जांच कराएं, न कि किसी अंधविश्वास के सहारे रहें. कोरोना होने और बीमारी छुपाने पर उपचार में काफी देर हो जाती है और कई बार मरीज की मौत भी हो जाती है.

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