झाबुआ : प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के माध्यम से प्रदेश के 1 करोड़ 16 लाख परिवारों को प्रतिमाह 1 किलो चना दाल देने की घोषणा केंद्र सरकार ने की थी. प्रदेश के साथ झाबुआ जिले के लाखों परिवारों को अप्रैल, मई और जून माह में शासकीय उचित मूल्य की दुकानों से चना दाल का निशुल्क वितरण होना था. लेकिन केंद्र के दावे और राज्य की तत्परता दोनों ही जमीनी धरातल पर खरे नहीं उतर पाए और इसी के चलते गरीब की थाली में सरकारी दाल पहुंच नहीं पाई. आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में मई माह बीत जाने के बाद भी आदिवासियों को मोदी की चना दाल नसीब नहीं हो रही.
झोपड़ियों और कच्चे मकानों में रहने वाले आदिवासी मजदूरों के लिए प्रधानमंत्री की घोषणा काफी मायने रखती है लेकिन सरकारी वादे के बाद भी पात्र हितग्राहियों को दाल मिलने से भारत सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं, आखिर क्यों वादों के बाद गरीबों के साथ छलावा किया जा रहा है.
झाबुआ जिले में 2 लाख 28 हजार पात्रता पर्ची धारक हैं, जिन्हें इस योजना का हितग्राही माना गया है. जिले के लाखों आदिवासियों के साथ गैर आदिवासी गरीब वर्ग भी केंद्र सरकार की सस्ती दाल का इंतजार कर रहे हैं. कोरोना के चलते एक ओर गरीबों का रोजगार जाता रहा तो दूसरी ओर सस्ता खाद्यान्न ना मिलने से उन्हें महंगे भाव से बाजारों से दाल खरीदना पड़ रही है. सरकार से दी जाने वाली दाल कब मिलेगी इसका अभी तक कोई ठिकाना नहीं, जिसके चलते लोगों को बाजार से 80 से 100 प्रति किलो भाव से चना दाल खरीदकर खाना पड़ रही है.
जिन राशन दुकानों को दाल वितरण के लिए केंद्र बनाया गया है वहां तैनात कर्मचारियों को भी इसकी जानकारी नहीं कि सरकार द्वारा भेजी जाने वाली दाल आखिर कब गरीबों की थाली में पहुंचेगी, लिहाजा लोग रोज इन राशन दुकानों के चक्कर काट रहे हैं. दाल वितरण ना होने के इस मामले में जिला खाद्य अधिकारी जल्द दाल वितरण की बात तो कह रहे हैं, मगर कब वितरित की जाएगी इसकी कोई तारीख नहीं बता रहा है। जिले में दाल न पहुचने से प्रधानमंत्री मोदी की इस घोषणा पर कांग्रेस नेताओ न कटाक्ष करना भी शुरु कर दिया है.
एक मशहूर कहावत जिसे गड़बड़ होने की आशंका पर अक्सर कहा जाता है कि दाल में कुछ काला है लेकिन झाबुआ के आदिवासियों की थाली से दाल ही गायब है तो काला होने का सवाल ही नहीं उठता.