झाबुआ। कोरोना के संकट काल में देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज का ऐलान किया था. इस पैकेज को 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' का नाम दिया गया है. PM मोदी के इस अभियान के बड़े राहत पैकेज के तहत देश में लोगों को काम करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी और कोशिश की जाएगी कि आने वाले कुछ सालों में भारत अपनी जरूरत की अधिकतर चीजों के लिए खुद पर निर्भर हो. इस बात को ध्यान में रखते हुए अभियान का नाम आत्मनिर्भर भारत अभियान रखा गया है. PM मोदी के इस अभियान को झाबुआ में आदिवासी बच्चे और युवा साकार कर रहे हैं. यहां बच्चों को स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा है.
सीख रहे रोजगार के साधन के लिए हुनर
कोरोना संकट के चलते जहां देशभर में तमाम शैक्षणिक संस्थान बंद हैं, ऐसे में मेघनगर विकासखंड के ग्राम बड़ा घोसलिया में सेवा भारती द्वारा संचालित वनवासी सशक्तिकरण में ग्रामीण युवाओं और बच्चों को मूर्ति बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं युवा और बच्चे ईको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का निर्माण कर रहे हैं.
हालांकि, प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे प्रशिक्षणार्थियों की संख्या बहुत कम है. बावजूद इस काम को सीख रहे वनांचल के इन बच्चों में उत्साह देखने को मिल रहा है. एक ओर ये युवा नई कला का हुनर आत्मसात कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर यही कला इन के लिए रोजगार का साधन भी बन रहीं है.
ईको-फ्रेंडली मूर्ति से नहीं होगें नदी-तालाब प्रदूषित
आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में गणेश उत्सव का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. यहां घर-घर में गणेश प्रतिमाओं की घट स्थापना होती है, यही वजह है कि हर साल जिले में बड़े स्तर पर गणेश प्रतिमाओं की मांग रहती है.
अब तक हर साल जिले में गणेश प्रतिमाएं गुजरात या दूसरे राज्यों से आती थी. जिसमें से ज्यादातर POP (प्लास्टिक ऑफ पेरिस) की बनी होती थी. इन POP की मूर्तियों के विसर्जन से नदी-तालाब का पानी प्रदूषित होता हैं. ऐसे में सेवा भारती द्वारा इस साल पर्यावरण संरक्षण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए आत्मनिर्भर भारत के मंत्र को ध्यान में रखकर इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का निर्माण कराया जा रहा है.
5000 मूर्ति का है लक्ष्य
झाबुआ में मिट्टी और देसी गाय के गोबर से पांच हजार ईको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है. जानकारी के मुताबिक इनमें से दो हजार से ज्यादा प्रतिमाओं का निर्माण किया जा चुका है.
इसके अलावा गणेश प्रतिमाओं को बनाने के लिए जिन रंगों का उपयोग किया जा रहा है, वह भी प्राकृतिक रंग हैं. इस तरह से ये मूर्तियां पूरी तरह से ईको-फ्रेंडली हैं ओर इनसे पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होगा.
वनवासी सशक्तिकरण केंद्र के आसपास रहने वाले करीब 12 बच्चे इस काम में सहयोग कर रहे हैं. साथ ही प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं ताकि आने वाले सालों में वे स्वयं इस तरह का व्यवसाय कर लाभ अर्जित कर सकें.
बता दें, गणेश प्रतिमाओं में केमिकल और प्लास्टिक ऑफ पेरिस (POP) का उपयोग बिलकुल नहीं किया जा रहा है, जिससे ये प्रतिमाएं पर्यावरण के संरक्षण के लिहाज से काफी उपयोगी मानी जा रही हैं. संस्था इन ईको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं को अपने कार्यकर्ताओं के जरिए जिले के गांव-गांव और घर-घर तक बांटेगी. वहीं बांटी गई गणेश प्रतिमाओं से मिलने वाली राशि में से मूर्ति निर्माण का खर्च निकाल कर बची हुई राशि को इन बच्चों को दिया जाएगा.
घर में विराजित होने वाली मूर्तियों का किया जा रहा निर्माण
इस केंद्र पर बनाई जा रही मूर्तियां दो फीट से छोटी हैं क्योंकि कोरोना संकट के चलते सरकारी निर्देश पर बड़े गणेश पंडालों में इस बार घटस्थापना मुश्किल होगी. लिहाजा केंद्र पर घरों में विराजित होने वाली गणेश प्रतिमाओं का ही निर्माण किया जा रहा है.