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अफसरों के ढुलमुल रवैये से रॉक फॉस्फेट की खदान बंद, सरकार को लगी करोड़ों की चपत - Rock phosphate mines closed

रॉक फॉस्फेट की खदान के बंद होने से उस पर आधारित बीआरपी प्लांट, ग्राइंडिंग यूनिट बंद हो चुकी है. कारखाने बंद होने से ना सिर्फ व्यापार-व्यवसाय प्रभावित हुआ, बल्कि रोजगार का संकट भी लोगों के लिए पैदा हो गया है.

रॉक फास्फेट की खदान बंद
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Published : Nov 12, 2019, 11:08 AM IST

झाबुआ। जिले में 1980 के दशक में शुरू हुई रॉक फॉस्फेट की खदान पिछले पांच सालों से बंद पड़ी है. इस खदान को चलाने का जिम्मा सरकार ने एमपी स्टेट माइनिंग कॉरपोरेशन के हाथों सौंपा हुआ है, लेकिन अफसरशाहों के ढुलमुल रवैये के चलते ये खदान बदहाल हो चुके हैं.

1980 के दशक में जिले में रॉक फॉस्फेट की खदान शुरू हुई थी. इन खदानों के जरिए प्राकृतिक संसाधनों और खनिज का दोहन कर आदिवासी बहुल क्षेत्र के आर्थिक विकास के सपने बुने गए थे, लेकिन महज 30 सालों के भीतर इस खदान की हालत बदहाल हो चुकी है.

रॉक फास्फेट की खदान बंद

खदान के संचालन में डीजीएमएस की आपत्ति के बाद फर्स्ट क्लास इंजीनियर की डिमांड उठी. जिसके चलते खदान में उत्पादन को प्रतिबंधित कर दिया गया. अफसरों के आपसी झगड़ों और ढुलमुल नीतियों का खमियाजा सरकार को उठाना पड़ रहा है. पिछले 6 सालों से करोड़ों रुपए की राशि खदान में काम करने वाले मजदूरों और उप कार्यालय के कर्मचारियों के वेतन पर खर्च कर चुका है, लेकिन खदान से प्रॉफिट के नाम पर सरकार को कोई राजस्व नहीं मिल पाया है. जिसके चलते सरकार के खजाने पर भारी-भरकम बोझ बढ़ता गया.

रॉक फॉस्फेट की खदान के बंद होने से उस पर आधारित बीआरपी प्लांट, ग्राइंडिंग यूनिट बंद हो चुकी है. कारखाने बंद होने से ना सिर्फ व्यापार-व्यवसाय प्रभावित हुआ है, बल्कि रोजगार का संकट भी लोगों के लिए पैदा हो गया. इसके साथ ही औद्योगिक विकास की रफ्तार पर भी ब्रेक लग गया है. वहीं निगम एमडीओपी के माध्यम से इस खदान को चालू करने की बात कह रहा है, तो सरकार के नुमाइंदे भी सरकार बदलने के बाद जरूरी कार्रवाई करने की बात कह रहे हैं.

झाबुआ। जिले में 1980 के दशक में शुरू हुई रॉक फॉस्फेट की खदान पिछले पांच सालों से बंद पड़ी है. इस खदान को चलाने का जिम्मा सरकार ने एमपी स्टेट माइनिंग कॉरपोरेशन के हाथों सौंपा हुआ है, लेकिन अफसरशाहों के ढुलमुल रवैये के चलते ये खदान बदहाल हो चुके हैं.

1980 के दशक में जिले में रॉक फॉस्फेट की खदान शुरू हुई थी. इन खदानों के जरिए प्राकृतिक संसाधनों और खनिज का दोहन कर आदिवासी बहुल क्षेत्र के आर्थिक विकास के सपने बुने गए थे, लेकिन महज 30 सालों के भीतर इस खदान की हालत बदहाल हो चुकी है.

रॉक फास्फेट की खदान बंद

खदान के संचालन में डीजीएमएस की आपत्ति के बाद फर्स्ट क्लास इंजीनियर की डिमांड उठी. जिसके चलते खदान में उत्पादन को प्रतिबंधित कर दिया गया. अफसरों के आपसी झगड़ों और ढुलमुल नीतियों का खमियाजा सरकार को उठाना पड़ रहा है. पिछले 6 सालों से करोड़ों रुपए की राशि खदान में काम करने वाले मजदूरों और उप कार्यालय के कर्मचारियों के वेतन पर खर्च कर चुका है, लेकिन खदान से प्रॉफिट के नाम पर सरकार को कोई राजस्व नहीं मिल पाया है. जिसके चलते सरकार के खजाने पर भारी-भरकम बोझ बढ़ता गया.

रॉक फॉस्फेट की खदान के बंद होने से उस पर आधारित बीआरपी प्लांट, ग्राइंडिंग यूनिट बंद हो चुकी है. कारखाने बंद होने से ना सिर्फ व्यापार-व्यवसाय प्रभावित हुआ है, बल्कि रोजगार का संकट भी लोगों के लिए पैदा हो गया. इसके साथ ही औद्योगिक विकास की रफ्तार पर भी ब्रेक लग गया है. वहीं निगम एमडीओपी के माध्यम से इस खदान को चालू करने की बात कह रहा है, तो सरकार के नुमाइंदे भी सरकार बदलने के बाद जरूरी कार्रवाई करने की बात कह रहे हैं.

Intro:झाबुआ : 1980 के दशक में झाबुआ जिले में रॉक फॉस्फेट की खदान शुरू हुई। इन खदानों के जरिए प्राकृतिक संसाधनों और खनिज का दोहन कर आदिवासी बहुल क्षेत्र के आर्थिक विकास के सपने बुने गए थे , मगर महज 30 सालों के भीतर इस खदान की हालत बदहाल हो चुकी है। मध्यप्रदेश सरकार ने इस खदान को चलाने का जिम्मा माइनिंग कॉरपोरेशन के हाथों में सौंप रखा है।






Body:इस खदान का संचालन कभी फॉरमैन ने किया मगर डीजीएमएस की आपत्ति के बाद इस खदान में फर्स्ट क्लास इंजीनियर की डिमांड उठी। जिसके चलते खदान में उत्पादन को प्रतिबंधित कर दिया गया। तकनी कारणो से लेकर विभागीय झगड़ों और कार्यालयों में सवार्थ की आपसी राजनीति का खामियाजा सरकार और यहाँ के कारखाना मालिकों को उठाना पड़ा । कारपोरेशन पिछले 6 सालों से करोड़ों रुपए की राशि इस खदान में काम करने वाले मजदूरों और उप कार्यालय के कर्मचारियों के वेतन पर खर्च कर चुका है मगर आमदनी के नाम पर इस उप कार्यालय से सरकार को कोई राजस्व नही मिला। याने आमदनी एक पैसा और खर्चा रुपैया ,जिसके चलते सरकार के खजाने पर भारी-भरकम बोझ बढ़ता जा रहा है।


Conclusion:रॉक फास्फेट की खदान के बंद होने से उस पर आधारित बीआरपी प्लांट , ग्राइंडिंग यूनिट बंद हो चुकी है । इस के कारण निवेशकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा वहीं सरकार को कर के रूप में प्राप्त होने वाली आमदनी और दूसरी ओर बेरोजगारों को मिलने वाला रोजगार भी यहां से जाता था। कारखाने बंद होने से ना सिर्फ यहां का व्यापार -व्यवसाय प्रभावित हुआ बल्कि औद्योगिक विकास की रफ्तार को भी ब्रेक लग गया । हालांकि निगम एमडीओपी के माध्यम से इस खदान को चालू करने की बात कह रहा है ,वहीं सरकार के नुमाइंदे भी सरकार बदलने के बाद जरूरी कार्रवाई की बात कह रहे हैं ।
बाइट : यामीन शेख , ट्रांसपोर्ट व्यवसायी
बाईट: रमेश भूमरकर, प्रभारी उप कार्यालय माइनिंग कॉरपोरेशन बाइट : वीरसिंह भूरिया ,विधायक थांदला
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