झाबुआ। जिले में 1980 के दशक में शुरू हुई रॉक फॉस्फेट की खदान पिछले पांच सालों से बंद पड़ी है. इस खदान को चलाने का जिम्मा सरकार ने एमपी स्टेट माइनिंग कॉरपोरेशन के हाथों सौंपा हुआ है, लेकिन अफसरशाहों के ढुलमुल रवैये के चलते ये खदान बदहाल हो चुके हैं.
1980 के दशक में जिले में रॉक फॉस्फेट की खदान शुरू हुई थी. इन खदानों के जरिए प्राकृतिक संसाधनों और खनिज का दोहन कर आदिवासी बहुल क्षेत्र के आर्थिक विकास के सपने बुने गए थे, लेकिन महज 30 सालों के भीतर इस खदान की हालत बदहाल हो चुकी है.
खदान के संचालन में डीजीएमएस की आपत्ति के बाद फर्स्ट क्लास इंजीनियर की डिमांड उठी. जिसके चलते खदान में उत्पादन को प्रतिबंधित कर दिया गया. अफसरों के आपसी झगड़ों और ढुलमुल नीतियों का खमियाजा सरकार को उठाना पड़ रहा है. पिछले 6 सालों से करोड़ों रुपए की राशि खदान में काम करने वाले मजदूरों और उप कार्यालय के कर्मचारियों के वेतन पर खर्च कर चुका है, लेकिन खदान से प्रॉफिट के नाम पर सरकार को कोई राजस्व नहीं मिल पाया है. जिसके चलते सरकार के खजाने पर भारी-भरकम बोझ बढ़ता गया.
रॉक फॉस्फेट की खदान के बंद होने से उस पर आधारित बीआरपी प्लांट, ग्राइंडिंग यूनिट बंद हो चुकी है. कारखाने बंद होने से ना सिर्फ व्यापार-व्यवसाय प्रभावित हुआ है, बल्कि रोजगार का संकट भी लोगों के लिए पैदा हो गया. इसके साथ ही औद्योगिक विकास की रफ्तार पर भी ब्रेक लग गया है. वहीं निगम एमडीओपी के माध्यम से इस खदान को चालू करने की बात कह रहा है, तो सरकार के नुमाइंदे भी सरकार बदलने के बाद जरूरी कार्रवाई करने की बात कह रहे हैं.