ETV Bharat / state

प्रदेश का राजनीतिक करंट झाबुआ जिले की इन विधानसभाओं पर सभी पार्टियों की नजर, यहां मिली जीत-हार से तय होगी भविष्य की राजनीति

author img

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 20, 2023, 5:39 PM IST

Updated : Nov 20, 2023, 5:55 PM IST

Political Analysis of Jhabua District: झाबुआ एमपी का हाई प्रोफाइल इलाका माना जाता है. यहां से राजनीति के कई बड़े नाम निकले हैं. इनमें प्रदेश के कैबिनेट का हिस्सा रह चुके कांतिलाल भूरिया आते हैं. अब इस सीट से उनके बेटे और युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया चुनावी मैदान में है. झाबुआ के अलावा यहां थांदला विधानसभा, पेटलावाद विधानसभा भी अहम सीट हैं. कहा जा रहा है कि इस बार के चुनाव परिणाम यहां के कद्दावर नेताओं के भविष्य की राजनीति को तय करेंगे. पढ़ें, ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

MP Election 2023
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव

झाबुआ। जिले के हाईप्रोफाइल इलाके में मतदान हो चुका है. अब सबको नतीजे के लिए 3 दिसंबर का बेसब्री से इंतजार है. इस बार के चुनाव परिणाम झाबुआ जिले की तीनों विधानसभा के कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों का भविष्य तय करने वाले साबित होंगे. हार जहां उनके राजनीतिक जीवन पर विराम लगाने वाली साबित होगी, तो वहीं जीत न केवल उनका कद बढ़ाएगी, बल्कि उनकी सियासत को भी आगे लेकर जाएगी.

इस चुनाव में यदि झाबुआ विधानसभा के प्रत्याशियों को छोड़ दें, तो थांदला और पेटलावद दोनों विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों की उम्र 55 साल या इससे अधिक है. ऐसे में बढ़ती उम्र और हार के बाद ये संभव कि पार्टी संगठन उन प्रत्याशियों से किनारा कर ले और 2028 के चुनाव के लिए नए विकल्प की तलाश में जुट जाए. हालांकि, राजनीतिक समीकरण कब किस तरफ मुड़ जाए, यह नहीं कहा जा सकता.

परिणाम तय करेंगे इन नेताओं का भविष्य

1. झाबुआ विधानसभा

डॉ विक्रांत भूरिया: युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. इनके साथ ही इनके पिता कांतिलाल भूरिया की साख दांव पर लगी है. वैसे भी झाबुआ सीट पर सबकी निगाह रहती है, क्योंकि यहां के परिणाम प्रदेश की राजनीति पर गहरा असर डालते हैं.

  • जीत के मायने: यदि डॉ विक्रांत भूरिया जीत हासिल करते हैं, तो एक तरह से वे कांतिलाल भूरिया की विरासत को आगे लेकर जाएंगे. कांतिलाल भूरिया की उम्र काफी हो चुकी है और अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी उनके राजनीति से सन्यास की बात कह चुके हैं. ऐसे में विक्रांत की जीत उन्हें पिता की छवि से बाहर निकलकर खुद को स्थापित करने में अहम साबित होगी.
  • हार के मायने: डॉ विक्रांत की हार न केवल उनकी छवि पर असर डालेगी, बल्कि उनके पिता कांतिलाल भूरिया के लिए भी सवालिया निशान लगाने का काम करेगी. हार से पिता और पुत्र दोनों का राजनीतिक कद कम होगा. क्योंकि, अपने गृह क्षेत्र में जब ये हार होती है, तो संगठन स्तर पर इसकी समीक्षा होना तय है.

भानू भूरिया: बीजेपी के कद्दावर नेता कह जाने वाले भानू भूरिया काफी कम उम्र में भाजपा जिलाध्यक्ष जैसी अहम जिम्मेदारी निभा चुके हैं. 2019 के उप चुनाव में पार्टी ने इन्हें मैदान में उतारा था. हालांकि, उस वक्त कांग्रेस सत्ता में थी. इसके बावजूद वे 68 हजार 351 मत लेकर आए थे. इस बार फिर से भाजपा ने उन पर भरोसा जताया है.

  • जीत के मायने: यह जीत भानू को राजनीतिक रूप से स्थापित करने का काम करेगी. साथ ही पार्टी में उनके विरोधियों के लिए भी करारा जवाब साबित होगी.
  • हार के मायने: भानू को टिकट दिए जाने पर सवाल उठा रहे भाजपा नेताओं को बोलने का मौका मिल जाएगा. ये भी सम्भव है कि हार के बाद उनके राजनीतिक जीवन पर विराम लग जाए.

2. थांदला विधानसभा

वीरसिंह भूरिया: वीरसिंह भूरिया 2008 और 2018 में कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हुए. उनकी स्वच्छ छवि के चलते इस बार भी कांग्रेस ने उन पर भरोसा जताया है.

  • जीत के मायने: कांग्रेस की राजनीति में बने रहकर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहेंगे.
  • हार के मायने: वीर सिंह की उम्र 58 साल है. हार के बाद सम्भव है कि कांग्रेस थांदला विधानसभा से नए विकल्प की तलाश करे.

कलसिंह भावर: भाजपा अजजा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. 2003 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में पहली बार थांदला से चुनाव जीता था. 2008 में चुनाव हारे तो 2013 में पार्टी ने टिकट काट दिया. ऐसे में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की. 2018 में फिर चुनाव हारे. इसके बावजूद पार्टी ने उन्हे एक और मौका दिया है.

  • जीत के मायने: यदि कलसिंह जीत हासिल करते हैं और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनती है तो वे मंत्री पद की दौड़ में शामिल हो जाएंगे.
  • हार के मायने: कलसिंह को टिकट दिए जाने का विरोध कर रहे नेताओं को पार्टी संगठन के निर्णय पर सवाल उठाने का मौका मिल जाएगा. कलसिंह के राजनीतिक जीवन पर भी विराम लग सकता है.

3. पेटलावद विधानसभा

वालसिंह मेड़ा: कांग्रेस से 2008 और 2018 में विधायक निर्वाचित हुए. जबकि, 2013 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

  • जीत के मायने: वालसिंह की जीत उन्हें कांग्रेस की राजनीति में बनाए रखेगी. इससे उनका राजनीतिक कद भी बढ़ेगा.
  • हार के मायने: राजनीतिक करियर समाप्त होने का अंदेशा. 2028 के चुनाव में कांग्रेस यहां वालसिंह के विकल्प की तलाश में जुट जाएगी.

निर्मला भूरिया: निर्मला भूरिया पेसा कानून के जनक कद्दावर आदिवासी नेता स्वर्गीय दिलीप सिंह भूरिया की बेटी हैं. वे वर्ष 1993, 1998, 2003 और 2013 में विधायक निर्वाचित होने के साथ राज्य मंत्री भी रह चुकी हैं.

  • जीत के मायने: निर्मला की जीत न केवल उनके राजनीतिक कद को बढ़ाएगी, बल्कि भाजपा की सरकार बनने पर वे मंत्री पद की भी प्रबल दावेदार होंगी.
  • हार के मायने: ये हार निर्मला के राजनीतिक जीवन पर प्रश्न चिन्ह साबित हो सकती है. 2028 के चुनाव में उनकी उम्र 60 वर्ष हो जाएगी. ऐसे में ये भी संभव है कि भविष्य के लिहाज से भाजपा पेटलावद विधानसभा से नए नेतृत्व की तलाश में जुट जाए.

ये भी पढ़ें...

झाबुआ। जिले के हाईप्रोफाइल इलाके में मतदान हो चुका है. अब सबको नतीजे के लिए 3 दिसंबर का बेसब्री से इंतजार है. इस बार के चुनाव परिणाम झाबुआ जिले की तीनों विधानसभा के कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों का भविष्य तय करने वाले साबित होंगे. हार जहां उनके राजनीतिक जीवन पर विराम लगाने वाली साबित होगी, तो वहीं जीत न केवल उनका कद बढ़ाएगी, बल्कि उनकी सियासत को भी आगे लेकर जाएगी.

इस चुनाव में यदि झाबुआ विधानसभा के प्रत्याशियों को छोड़ दें, तो थांदला और पेटलावद दोनों विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों की उम्र 55 साल या इससे अधिक है. ऐसे में बढ़ती उम्र और हार के बाद ये संभव कि पार्टी संगठन उन प्रत्याशियों से किनारा कर ले और 2028 के चुनाव के लिए नए विकल्प की तलाश में जुट जाए. हालांकि, राजनीतिक समीकरण कब किस तरफ मुड़ जाए, यह नहीं कहा जा सकता.

परिणाम तय करेंगे इन नेताओं का भविष्य

1. झाबुआ विधानसभा

डॉ विक्रांत भूरिया: युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. इनके साथ ही इनके पिता कांतिलाल भूरिया की साख दांव पर लगी है. वैसे भी झाबुआ सीट पर सबकी निगाह रहती है, क्योंकि यहां के परिणाम प्रदेश की राजनीति पर गहरा असर डालते हैं.

  • जीत के मायने: यदि डॉ विक्रांत भूरिया जीत हासिल करते हैं, तो एक तरह से वे कांतिलाल भूरिया की विरासत को आगे लेकर जाएंगे. कांतिलाल भूरिया की उम्र काफी हो चुकी है और अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी उनके राजनीति से सन्यास की बात कह चुके हैं. ऐसे में विक्रांत की जीत उन्हें पिता की छवि से बाहर निकलकर खुद को स्थापित करने में अहम साबित होगी.
  • हार के मायने: डॉ विक्रांत की हार न केवल उनकी छवि पर असर डालेगी, बल्कि उनके पिता कांतिलाल भूरिया के लिए भी सवालिया निशान लगाने का काम करेगी. हार से पिता और पुत्र दोनों का राजनीतिक कद कम होगा. क्योंकि, अपने गृह क्षेत्र में जब ये हार होती है, तो संगठन स्तर पर इसकी समीक्षा होना तय है.

भानू भूरिया: बीजेपी के कद्दावर नेता कह जाने वाले भानू भूरिया काफी कम उम्र में भाजपा जिलाध्यक्ष जैसी अहम जिम्मेदारी निभा चुके हैं. 2019 के उप चुनाव में पार्टी ने इन्हें मैदान में उतारा था. हालांकि, उस वक्त कांग्रेस सत्ता में थी. इसके बावजूद वे 68 हजार 351 मत लेकर आए थे. इस बार फिर से भाजपा ने उन पर भरोसा जताया है.

  • जीत के मायने: यह जीत भानू को राजनीतिक रूप से स्थापित करने का काम करेगी. साथ ही पार्टी में उनके विरोधियों के लिए भी करारा जवाब साबित होगी.
  • हार के मायने: भानू को टिकट दिए जाने पर सवाल उठा रहे भाजपा नेताओं को बोलने का मौका मिल जाएगा. ये भी सम्भव है कि हार के बाद उनके राजनीतिक जीवन पर विराम लग जाए.

2. थांदला विधानसभा

वीरसिंह भूरिया: वीरसिंह भूरिया 2008 और 2018 में कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हुए. उनकी स्वच्छ छवि के चलते इस बार भी कांग्रेस ने उन पर भरोसा जताया है.

  • जीत के मायने: कांग्रेस की राजनीति में बने रहकर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहेंगे.
  • हार के मायने: वीर सिंह की उम्र 58 साल है. हार के बाद सम्भव है कि कांग्रेस थांदला विधानसभा से नए विकल्प की तलाश करे.

कलसिंह भावर: भाजपा अजजा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. 2003 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में पहली बार थांदला से चुनाव जीता था. 2008 में चुनाव हारे तो 2013 में पार्टी ने टिकट काट दिया. ऐसे में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की. 2018 में फिर चुनाव हारे. इसके बावजूद पार्टी ने उन्हे एक और मौका दिया है.

  • जीत के मायने: यदि कलसिंह जीत हासिल करते हैं और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनती है तो वे मंत्री पद की दौड़ में शामिल हो जाएंगे.
  • हार के मायने: कलसिंह को टिकट दिए जाने का विरोध कर रहे नेताओं को पार्टी संगठन के निर्णय पर सवाल उठाने का मौका मिल जाएगा. कलसिंह के राजनीतिक जीवन पर भी विराम लग सकता है.

3. पेटलावद विधानसभा

वालसिंह मेड़ा: कांग्रेस से 2008 और 2018 में विधायक निर्वाचित हुए. जबकि, 2013 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

  • जीत के मायने: वालसिंह की जीत उन्हें कांग्रेस की राजनीति में बनाए रखेगी. इससे उनका राजनीतिक कद भी बढ़ेगा.
  • हार के मायने: राजनीतिक करियर समाप्त होने का अंदेशा. 2028 के चुनाव में कांग्रेस यहां वालसिंह के विकल्प की तलाश में जुट जाएगी.

निर्मला भूरिया: निर्मला भूरिया पेसा कानून के जनक कद्दावर आदिवासी नेता स्वर्गीय दिलीप सिंह भूरिया की बेटी हैं. वे वर्ष 1993, 1998, 2003 और 2013 में विधायक निर्वाचित होने के साथ राज्य मंत्री भी रह चुकी हैं.

  • जीत के मायने: निर्मला की जीत न केवल उनके राजनीतिक कद को बढ़ाएगी, बल्कि भाजपा की सरकार बनने पर वे मंत्री पद की भी प्रबल दावेदार होंगी.
  • हार के मायने: ये हार निर्मला के राजनीतिक जीवन पर प्रश्न चिन्ह साबित हो सकती है. 2028 के चुनाव में उनकी उम्र 60 वर्ष हो जाएगी. ऐसे में ये भी संभव है कि भविष्य के लिहाज से भाजपा पेटलावद विधानसभा से नए नेतृत्व की तलाश में जुट जाए.

ये भी पढ़ें...

Last Updated : Nov 20, 2023, 5:55 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.