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लॉकडाउन में पब्लिक ट्रांसपोर्ट बदहाली की कगार पर, बस चालकों ने लगाई मदद की गुहार - दो वक्त की रोटी का संकट

मध्यप्रदेश की सड़कों पर फर्राटा भरने वाली बसों के चालक, परिचालक और क्लीनर लॉकडाउन के चलते रोजी रोटी को मोहताज होने की स्थिति में आ गए हैं.

Bus drivers plead for help
बस चालकों ने लगाई मदद की गुहार
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Published : May 2, 2020, 11:46 AM IST

झाबुआ। मध्यप्रदेश में एक वर्ग ऐसा है जो पिछले 40 दिनों से आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है, मगर सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. सरकार ने तमाम तरह के लोगों को राहत पहुंचाने का काम किया है, लेकिन यह वो लोग हैं जिनकी तरफ सरकार की नजरें अब तक नहीं गईं, जिसके चलते इस वर्ग के लोगों ने अब सरकार से नये रोजगार की मांग की है या राहत देने की पेशकश की है.

बस चालकों ने लगाई मदद की गुहार

बस चालकों की बढ़ी मुश्किलें

दरअसल मध्यप्रदेश की सड़कों पर फर्राटा भरने वाली बसों के चालक, परिचालक और क्लीनर लॉकडाउन के चलते रोजी रोटी को मोहताज होने की स्थिति में आ गए हैं. जिले में यात्री परिवहन वाहनों पर काम करने वाले हजारों लोगों का रोजगार इस लॉकडाउन में जा चुका है, जिसके चलते इस पर आश्रित लोगों ने सरकार से मदद के गुहार लगाई है. पिछले 40 दिनों से निजी बसों के चक्के जस के तस थमे हुए हैं. किराए की गाड़ी चलाने वाले चालकों के सामने रोजी-रोटी का संकट हैं

कर्ज भरने का संकट

इधर ऐसे भी लोग हैं जो लोन लेकर वाहन खरीदकर स्वरोजगार शुरू करने के लिए तैयारी कर लिए थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते अब उनके सामने कर्ज भरने का संकट छाया हुआ है. वहीं आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की निजी बसों में काम करने वाले हजारों ड्राइवर, कंडक्टर सहित अन्य स्टाफ ने सरकार से उनके लिए कोई योजना बनाने की मांग की है.

पढ़ाई के बावजूद नहीं है रोजगार

वहीं बस चालकों ने लॉकडाउन खत्म होने तक प्रदेश सरकार से राशन मुहैया कराने की बात भी कही है. इस व्यवसाय में लगे कुछ लोग तो सक्षम हैं, लेकिन पढ़ाई के बावजूद भी रोजगार न मिलने पर बसों पर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है. जिसके चलते इन्हें अपने परिवार का पालन पोषण करना मुश्किल लग रहा है।

दो वक्त की रोटी का संकट

लिहाजा कोरोना वायरस के बाद हुए लॉकडाउन से लोगों की परेशानियां बढ़ गई हैं. उन लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं जो लोग अपना गांव-घर छोड़कर दूसरे शहरों में रहकर रोजगार कर रहें हैं. ऐसे लोगों के लिए इन दिनों आफत का कहर बरस रहा है. लॉकडाउन ने लोगों के रोजगार पर ताला लगा दिया है. ऐसी स्थिति में उन्हें अपने परिवार को दो वक्त की रोटी देने के लिए भी संकट खड़ा होता दिखाई दे रहा है.

झाबुआ। मध्यप्रदेश में एक वर्ग ऐसा है जो पिछले 40 दिनों से आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है, मगर सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. सरकार ने तमाम तरह के लोगों को राहत पहुंचाने का काम किया है, लेकिन यह वो लोग हैं जिनकी तरफ सरकार की नजरें अब तक नहीं गईं, जिसके चलते इस वर्ग के लोगों ने अब सरकार से नये रोजगार की मांग की है या राहत देने की पेशकश की है.

बस चालकों ने लगाई मदद की गुहार

बस चालकों की बढ़ी मुश्किलें

दरअसल मध्यप्रदेश की सड़कों पर फर्राटा भरने वाली बसों के चालक, परिचालक और क्लीनर लॉकडाउन के चलते रोजी रोटी को मोहताज होने की स्थिति में आ गए हैं. जिले में यात्री परिवहन वाहनों पर काम करने वाले हजारों लोगों का रोजगार इस लॉकडाउन में जा चुका है, जिसके चलते इस पर आश्रित लोगों ने सरकार से मदद के गुहार लगाई है. पिछले 40 दिनों से निजी बसों के चक्के जस के तस थमे हुए हैं. किराए की गाड़ी चलाने वाले चालकों के सामने रोजी-रोटी का संकट हैं

कर्ज भरने का संकट

इधर ऐसे भी लोग हैं जो लोन लेकर वाहन खरीदकर स्वरोजगार शुरू करने के लिए तैयारी कर लिए थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते अब उनके सामने कर्ज भरने का संकट छाया हुआ है. वहीं आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की निजी बसों में काम करने वाले हजारों ड्राइवर, कंडक्टर सहित अन्य स्टाफ ने सरकार से उनके लिए कोई योजना बनाने की मांग की है.

पढ़ाई के बावजूद नहीं है रोजगार

वहीं बस चालकों ने लॉकडाउन खत्म होने तक प्रदेश सरकार से राशन मुहैया कराने की बात भी कही है. इस व्यवसाय में लगे कुछ लोग तो सक्षम हैं, लेकिन पढ़ाई के बावजूद भी रोजगार न मिलने पर बसों पर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है. जिसके चलते इन्हें अपने परिवार का पालन पोषण करना मुश्किल लग रहा है।

दो वक्त की रोटी का संकट

लिहाजा कोरोना वायरस के बाद हुए लॉकडाउन से लोगों की परेशानियां बढ़ गई हैं. उन लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं जो लोग अपना गांव-घर छोड़कर दूसरे शहरों में रहकर रोजगार कर रहें हैं. ऐसे लोगों के लिए इन दिनों आफत का कहर बरस रहा है. लॉकडाउन ने लोगों के रोजगार पर ताला लगा दिया है. ऐसी स्थिति में उन्हें अपने परिवार को दो वक्त की रोटी देने के लिए भी संकट खड़ा होता दिखाई दे रहा है.

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