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इलाज के लिये पड़ोसी राज्य के भरोसे मरीज, डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा MP का ये जिला

झाबुआ जिले अधिकतर आदिवासी मरीज पड़ोसी राज्य गुजरात में जाकर इलाज कराने को मजबूर हैं क्योंकि जिले में डॉक्टरों और सुविधाओं की कमी है. प्रतिमाह 250 प्रसव होने बाद भी यहां महिला डॉक्टर नहीं हैं .

जिला अस्पताल, झाबुआ
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Published : Jul 10, 2019, 6:51 AM IST

झाबुआ। स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में झाबुआ जिला डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है. आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के चलते यहां न तो जरूरत के मुताबिक डॉक्टरों की नियुक्ति की गई और न ही सरकार ने यहां के अस्पतालों के बेसिक स्ट्रक्चर की सुध ली, जिसके चलते जनजातीय समुदाय के मरीजों को दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है.
झाबुआ में ट्रामा सेंटर, जिला अस्पताल सहित तमाम तरह की सुविधाएं कागजों पर ही दिखती हैं. लेकिन जिले में न तो ट्रामा सेंटर में विशेषज्ञ डॉक्टर हैं और ना ही साधन. जिले में प्रथम श्रेणी के कुल 84 डॉक्टर के पद स्वीकृत हैं, लेकिन अब तक 13 पदों पर ही सरकार विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति कर पाई है.

जिला अस्पताल में डॉक्टर और सुविधाओं की कमी
विशेषज्ञ के पद खालीजिले में 79 मेडिकल ऑफिसर में लगभग दो दर्जन डॉक्टरों की कमी है. तमाम सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ के पद खाली हैं. मेडिकल ऑफिसर की कमी के चलते ना सिर्फ मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है बल्कि अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों को भी अतिरिक्त काम के बोझ के चलते परेशान होना पड़ता है.हर माह 250 डिलीवरी फिर भी नहीं महिला डॉक्टरजिन अस्पतालों में हर माह 250 से अधिक महिलाओं की डिलीवरी होती है, वहां महिला डॉक्टर भी नहीं है. सरकारी अस्पतालों में पुराने संसाधन और मशीनों के चलते कई बार मरीजों को इनकी रिपोर्टों पर भी भरोसा नहीं रहता, जिसके चलते मरीज गुजरात जाकर अपना इलाज कराना मुनासिब समझते हैं. जिले को ट्रामा सेंटर की सौगात जरूर मिली है लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर और सपोर्टिंग स्टाफ के साथ-साथ संसाधनों की कमी के चलते ट्रामा सेंटर देखने भर का है.

झाबुआ। स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में झाबुआ जिला डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है. आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के चलते यहां न तो जरूरत के मुताबिक डॉक्टरों की नियुक्ति की गई और न ही सरकार ने यहां के अस्पतालों के बेसिक स्ट्रक्चर की सुध ली, जिसके चलते जनजातीय समुदाय के मरीजों को दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है.
झाबुआ में ट्रामा सेंटर, जिला अस्पताल सहित तमाम तरह की सुविधाएं कागजों पर ही दिखती हैं. लेकिन जिले में न तो ट्रामा सेंटर में विशेषज्ञ डॉक्टर हैं और ना ही साधन. जिले में प्रथम श्रेणी के कुल 84 डॉक्टर के पद स्वीकृत हैं, लेकिन अब तक 13 पदों पर ही सरकार विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति कर पाई है.

जिला अस्पताल में डॉक्टर और सुविधाओं की कमी
विशेषज्ञ के पद खालीजिले में 79 मेडिकल ऑफिसर में लगभग दो दर्जन डॉक्टरों की कमी है. तमाम सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ के पद खाली हैं. मेडिकल ऑफिसर की कमी के चलते ना सिर्फ मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है बल्कि अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों को भी अतिरिक्त काम के बोझ के चलते परेशान होना पड़ता है.हर माह 250 डिलीवरी फिर भी नहीं महिला डॉक्टरजिन अस्पतालों में हर माह 250 से अधिक महिलाओं की डिलीवरी होती है, वहां महिला डॉक्टर भी नहीं है. सरकारी अस्पतालों में पुराने संसाधन और मशीनों के चलते कई बार मरीजों को इनकी रिपोर्टों पर भी भरोसा नहीं रहता, जिसके चलते मरीज गुजरात जाकर अपना इलाज कराना मुनासिब समझते हैं. जिले को ट्रामा सेंटर की सौगात जरूर मिली है लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर और सपोर्टिंग स्टाफ के साथ-साथ संसाधनों की कमी के चलते ट्रामा सेंटर देखने भर का है.
Intro:झाबुआ: स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में वर्षों से झाबुआ के साथ राज्य सरकार ने सौतेला व्यवहार किया है। आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के चलते यहां न तो पदस्थापना के आधार पर स्वकृति डॉक्टरों की नियुक्ति की गई और ना ही यहां कि सरकारी अस्पतालों के बेसिक स्ट्रक्चर की सुध सरकार ने ली जिसके चलते जनजाति समुदाय के मरीजों को अन्य राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है ।


Body:कहने को झाबुआ में ट्रामा सेंटर, जिला अस्पताल सहित तमाम तरह की सुविधाएं कागजों पर दर्शाई हुई है मगर जिले में ना तो ट्रामा सेंटर में विशेषज्ञ डॉक्टर की पदस्थापना है और ना ही समुचित संसाधन । जिले में कुल प्रथम श्रेणी के 84 डॉक्टर के पद स्वीकृत है जिसकी एवज केवल 13 पदों पर ही सरकार विशेषज्ञ डॉक्टर की नियुक्ति अब तक कर पाई है । 79 मेडिकल ऑफिसर में से दो दर्जन के लगभग डॉक्टरों की कमी जिले में है । जिले के तमाम सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ के पद खाली है। मेडिकल ऑफिसर की कमी के चलते ना सिर्फ मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है बल्कि अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों को भी अतिरिक्त काम के बोझ के चलते परेशान होना पड़ता है ।


Conclusion:हैरानी की बात यह है कि जिन अस्पतालों में 250 से अधिक महिलाओं की प्रसूति हर महिने होती है वहां महिला डॉक्टर की पदस्थापना भी सरकार नहीं कर पाई । सरकारी अस्पतालों में पुराने संसाधन और मशीनों के चलते कई बार मरीजों को इनकी रिपोर्टों पर भी भरोसा नहीं रहता जिसके चलते मरीज गुजरात जाकर अपना इलाज कराना मुनासिब समझते हैं। जिले को ट्रामा सेंटर की सौगात जरूर मिली है मगर विशेषज्ञ डॉक्टर और सपोर्टिंग स्टाफ के साथ साथ संसाधनों की कमी के चलते ट्रामा सेंटर महज एक बिल्डिंग का काम कर रहा है । वीटी : डॉक्टर सेलेक्सी वर्मा , बीएमओ
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