झाबुआ। कोरोना वायरस से डर और बेरोजगारी के चलते देश के विभिन्न हिस्सों में मजदूरी पर गए श्रमिकों की घर वापसी का सिलसिला जारी है. केंद्र सरकार की छूट के बाद देश भर मे काम कर रहे मजदूर अपने घर को वापस आ पा रहे हैं. इस दौरान कुछ लोगों की लापरवाही और बदइंतजामी के कराण मजदूरों को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है. सरकार के इतने साधनों और सुविधाओं के बाद भी मजदूर अपनी जमा पूंजी लुटाने को मजबूर हैं.
मंगलवार सुबह ही कुछ मजदूर मेघनगर पहुंचे, जहां से उन्हें आसपास के इलाकों में उनके घर जाना था, लेकिन इंतजार के कारण वो खुद से किराया वहन कर अन्य वाहनों से अपने घर जा रहे हैं. वहीं गुजरात से सड़क मार्ग से आने वाले मजदूरों का भी यही हाल है, उन्हें गुजरात सरकार से कोई मदद न मिल पाने के कारण मध्य प्रदेश की सीमा तक आने के लिए हजारों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं.
आदिवासी क्षेत्र राणापुर, बाग टांडा क्षेत्र के सैकड़ों मज़दूर जो मोरबी की टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में काम करते हैं. इन मजदूरों की मध्य प्रदेश वापसी के लिए गुजरात सरकार ने कोई खास मदद नहीं की, जिसके चलते इन्हें मोरबी से पिटोल बॉर्डर तक आने के लिए निजी साधनों का सहारा लेना पड़ा. मज़दूरों से प्रति व्यक्ति 14 सौ रुपए की वसूली किराए के रूप में की गई.
पिटोल बॉर्डर पर मध्य प्रदेश सरकार अपने प्रदेश वासियों को नि:शुल्क भेजने का दम भर रही है, किंतु यह सुविधा झाबुआ जिले के हजारों लोगों को ही नहीं मिल रही. बसों में इन मजदूरों से किराया से वसूला जा रहा है, तो बॉर्डर पर भीड़ ज्यादा होने के चलते जिले के लोग बॉर्डर पर खड़े अन्य वाहनों में ज्यादा किराया देकर भेड़-बकरियों की तरह अपने घर जाने को मजबूर हैं. इधर प्रशासन के दावे आधे हकीकत और आधे फंसाने लगने लगे हैं.