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सूबे की सियासत में निर्णायक साबित हो सकता है झाबुआ विधानसभा उपचुनाव, जानिए पूरा समीकरण

मध्यप्रदेश की झाबुआ विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव का शंखनाद हो गया है. झाबुआ विधानसभा सीट के मतदाता 21 अक्टूबर को मतदान होंगे तो वहीं 24 अक्टूबर को परिणाम जनता के सामने होगा.

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Published : Sep 22, 2019, 4:22 AM IST

झाबुआ उपचुनाव

झाबुआ। मध्यप्रदेश की सियासत में एक बार फिर चुनावी मौसम का दौर आया है. आखिरकार लंबे इंतजार के बाद मध्यप्रदेश की झाबुआ विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव का शंखनाद हो गया है. झाबुआ विधानसभा सीट के मतदाता 21 अक्टूबर को एक बार फिर अपने नए विधायक के चुनाव के लिए मतदान करेंगे. तो वहीं 24 अक्टूबर को ईवीएम से निकलने वाले नतीजों के साथ झाबुआ के नए वजीर का फैसला हो जाएगा.

बीजेपी सांसद जीएस डामोर के रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर जीत हासिल करने के चलते झाबुआ विधानसभा सीट खाली हुई थी. बात अगर झाबुआ विधानसभा सीट के सियासी समीकरणों की जाए तो यहां सीधी लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होने के आसार है. लेकिन इस बार इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी. क्योंकि इस सीट पर जो भी जीत दर्ज करेगा विधानसभा में उसकी स्थिति मजबूत होगी.

किसके सिर होगा झाबुआ उपचुनाव का ताज

झाबुआ विधानसभा सीट पर कुल 2 लाख 76 हजार 982 वोटर हैं. जिनमें 1 लाख 39 हजार 97 पुरुष वोटर तो 1 लाख 37हजार 882 में महिला वोटर शामिल हैं. जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 3 है. बात अगर झाबुआ विधानसभा सीट के सियासी इतिहास की जाए तो यहां शुरुआत में कांग्रेस का ही दबदबा था. लेकिन बदलते वक्त में यहां बीजेपी की जड़े भी मजबूत हुईं हैं. 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की अंतरकलह से यहां बीजेपी ने बाजी मार ली थी.

2018 में कांग्रेस ने जेवियर मेडा की जगह पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया को चुनावी मैदान में उतारा था. लेकिन जेवियर मेड़ा बगावत करते हुए निर्दलीय मैदान में उतर गए. जिसका सीधा फायदा बीजेपी के जीएस डामोर को मिला और उन्होंने विक्रांत भूरिया को 10 हजार वोटों से हराया. इस बार भी कांग्रेस की तरफ से विक्रांत और जेवियर मेड़ा के साथ-साथ कांतिलाल भूरिया भी कांग्रेस की तरफ से टिकट की रेस में हैं. ऐसे में भूरिया और मेड़ा के बीच के इस विवाद को सुलझाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी.

बात अगर बीजेपी की करें तो यहां बीजेपी किस पर दांव लगाती है. इसका अभी तक कोई अंदाजा नहीं है. लेकिन बीजेपी भी यहां दमदार प्रत्याशी उतराने की जुगत में है. क्योंकि बीजेपी अपनी जीती हुई सीट को बरकरार रखने की पुरजोर कोशिश करेगी. वहीं आदिवासी संगठन जयस यहां प्रमुख भूमिका निभा सकता है. क्योंकि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के चलते जयस यहां प्रभावी भूमिका में रहेगा. ऐसे में जयस का समर्थन भी महत्वपूर्ण रहेगा.

अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बार झाबुआ में जीत किसे मिलती है. क्योंकि झाबुआ उपचुनाव केवल बीजेपी और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है. जीएस डामोर, भूरिया परिवार को दो बार चुनावी शिख्सत दे चुके हैं. यही वजह है कि कांग्रेस इस बार पलटवार का कोई मौका नहीं छोड़ेगी. जबकि सीएम बनने के बाद कमलनाथ के लिए भी यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा. ऐसे में इस सीट का नतीजा सूबे की सियासत का नया समीकरण तय करेगा. जिस पर पर पूरे प्रदेश की नजरे रहेगी.

झाबुआ। मध्यप्रदेश की सियासत में एक बार फिर चुनावी मौसम का दौर आया है. आखिरकार लंबे इंतजार के बाद मध्यप्रदेश की झाबुआ विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव का शंखनाद हो गया है. झाबुआ विधानसभा सीट के मतदाता 21 अक्टूबर को एक बार फिर अपने नए विधायक के चुनाव के लिए मतदान करेंगे. तो वहीं 24 अक्टूबर को ईवीएम से निकलने वाले नतीजों के साथ झाबुआ के नए वजीर का फैसला हो जाएगा.

बीजेपी सांसद जीएस डामोर के रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर जीत हासिल करने के चलते झाबुआ विधानसभा सीट खाली हुई थी. बात अगर झाबुआ विधानसभा सीट के सियासी समीकरणों की जाए तो यहां सीधी लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होने के आसार है. लेकिन इस बार इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी. क्योंकि इस सीट पर जो भी जीत दर्ज करेगा विधानसभा में उसकी स्थिति मजबूत होगी.

किसके सिर होगा झाबुआ उपचुनाव का ताज

झाबुआ विधानसभा सीट पर कुल 2 लाख 76 हजार 982 वोटर हैं. जिनमें 1 लाख 39 हजार 97 पुरुष वोटर तो 1 लाख 37हजार 882 में महिला वोटर शामिल हैं. जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 3 है. बात अगर झाबुआ विधानसभा सीट के सियासी इतिहास की जाए तो यहां शुरुआत में कांग्रेस का ही दबदबा था. लेकिन बदलते वक्त में यहां बीजेपी की जड़े भी मजबूत हुईं हैं. 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की अंतरकलह से यहां बीजेपी ने बाजी मार ली थी.

2018 में कांग्रेस ने जेवियर मेडा की जगह पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया को चुनावी मैदान में उतारा था. लेकिन जेवियर मेड़ा बगावत करते हुए निर्दलीय मैदान में उतर गए. जिसका सीधा फायदा बीजेपी के जीएस डामोर को मिला और उन्होंने विक्रांत भूरिया को 10 हजार वोटों से हराया. इस बार भी कांग्रेस की तरफ से विक्रांत और जेवियर मेड़ा के साथ-साथ कांतिलाल भूरिया भी कांग्रेस की तरफ से टिकट की रेस में हैं. ऐसे में भूरिया और मेड़ा के बीच के इस विवाद को सुलझाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी.

बात अगर बीजेपी की करें तो यहां बीजेपी किस पर दांव लगाती है. इसका अभी तक कोई अंदाजा नहीं है. लेकिन बीजेपी भी यहां दमदार प्रत्याशी उतराने की जुगत में है. क्योंकि बीजेपी अपनी जीती हुई सीट को बरकरार रखने की पुरजोर कोशिश करेगी. वहीं आदिवासी संगठन जयस यहां प्रमुख भूमिका निभा सकता है. क्योंकि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के चलते जयस यहां प्रभावी भूमिका में रहेगा. ऐसे में जयस का समर्थन भी महत्वपूर्ण रहेगा.

अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बार झाबुआ में जीत किसे मिलती है. क्योंकि झाबुआ उपचुनाव केवल बीजेपी और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है. जीएस डामोर, भूरिया परिवार को दो बार चुनावी शिख्सत दे चुके हैं. यही वजह है कि कांग्रेस इस बार पलटवार का कोई मौका नहीं छोड़ेगी. जबकि सीएम बनने के बाद कमलनाथ के लिए भी यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा. ऐसे में इस सीट का नतीजा सूबे की सियासत का नया समीकरण तय करेगा. जिस पर पर पूरे प्रदेश की नजरे रहेगी.

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