झाबुआ। कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कलाकार रमेश परमार को सीएम शिवराज ने ट्वीट कर बधाई दी है. सीएम ने कहा "मध्यप्रदेश के झाबुआ निवासी रमेश परमार को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया. हस्तशिल्प कलाकार रमेश परमार 30 वर्ष से जनजातीय गुड़िया बनाते हैं. वो इस गुड़िया को पारंपरिक रूप से तैयार करते हैं. इसी तरह वे जनजातीय खिलौनों का निर्माण करते हैं."
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मध्यप्रदेश की लोककलाओं को उत्तुंग शिखर पर संस्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले झाबुआ के लोकप्रिय कलाकार श्री रमेश परमार जी का 'पद्म श्री' पुरस्कार से अलंकृत होना प्रदेश के लिए गौरव का अवसर है।
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) April 5, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
लोकसंस्कृति के उन्नयन के लिए आपका ध्येयनिष्ठ जीवन सभी के लिए प्रेरक है। pic.twitter.com/4Sb48FLxbL
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— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) April 5, 2023
लोकसंस्कृति के उन्नयन के लिए आपका ध्येयनिष्ठ जीवन सभी के लिए प्रेरक है। pic.twitter.com/4Sb48FLxbLमध्यप्रदेश की लोककलाओं को उत्तुंग शिखर पर संस्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले झाबुआ के लोकप्रिय कलाकार श्री रमेश परमार जी का 'पद्म श्री' पुरस्कार से अलंकृत होना प्रदेश के लिए गौरव का अवसर है।
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जनजातीय कला की संस्कृति: देश में लगने वाले हस्तशिल्प मेलों में अपने खिलौनों और जनजातीय गुड़िया के जरिए रमेश और उनकी पत्नि शांति परमार जनजातीय कला संस्कृति और परंपरा को घर-घर तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. पद्मश्री से सम्मानित इस युगल ने अब तक 100 से ज्यादा राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय मेलों में भाग लिया है. वे कई अंतर्राष्ट्रीय मेलों में भी शिरकत कर चुके हैं.
कला का बेजोड़ नमूना: मध्य प्रदेश के झाबुआ में बनने वाली गुड्डन-गुड़िया आदिवासी कला का बेजोड़ नमूना है. हाल ही में झाबुआ की गुड्डन गुड़िया का स्टॉल इंदौर में आयोजित प्रवासी भारतीय सम्मेलन में लगा था. यहां पहुंचे कई प्रवासी भारतीयों ने इसे खरीदा था और हांगकांग की NRI अदिति ने इस गुड़िया को प्रोटोटाइप में नए सिरे से बनाने की प्लानिंग भी की थी.
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गुड़िया बनी अंचल की पहचान: आदिवासी अंचल के पहनावे के रूप में तैयार की जाने वाली गुड्डन-गुड़िया का निर्माण 1980 में उद्धव गिरवानी ने शुरू किया था. धीरे-धीरे इन्हें गिफ्ट के तौर पर दिया जाने लगा. इसके बाद झाबुआ में कई स्थानीय कलाकार इस गुड़िया का निर्माण करने लगे. झाबुआ के पारंपरिक पहनावे और सुंदर स्वरूप में तैयार की जाने वाली गुड़िया अब अंचल की पहचान बन गई है.