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जहर उगल रहे कारखाने, धुआं-धुआं हुआ शहर, जीवन बचाओ आंदोलन भी बेअसर

आदिवासी बाहुल्य जिला झाबुआ में प्रदूषित हवा और पानी ने लोगों के जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है. मेघनगर औद्योगिक क्षेत्र की कल कारखानों से निकलने वाले धुएं और प्रदूषित पानी की वजह से जहां नदी-तालाब प्रदूषित हो रहे हैं, वहीं वायु और ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है.

environmental pollution
जहर उगल रहे कल कारखाने
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Published : Oct 16, 2020, 2:29 PM IST

झाबुआ। कभी शुद्ध हवा और पानी के लिए पूरे प्रदेश में जाने जाने वाला झाबुआ जिला अब पर्यावरण प्रदूषण के लिए मशहूर है. यहां की हवा इन दिनों प्रदूषित हो चली है. यहां की हवा के प्रदूषित होने के कारण है यहां के औद्योगिक क्षेत्र मेघनगर स्थित कल कारखानों की चिमनीयों से निकलने वाला धुआं. इस धुएं ने न सिर्फ पर्यावरण को प्रदूषित किया है बल्कि मानव जीवन को भी कष्टदायक बना दिया है.

जहर उगल रहे कल कारखाने

धुआं और प्रदूषित पानी कर रहे प्रभावित

मेघनगर औद्योगिक क्षेत्र के 10 किलोमीटर के इलाकों में ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्र हैं. केमिकल कारखानों से निकलने वाला प्रदूषित पानी का सही ट्रीटमेंट ना होने से यह रीस कर आसपास के खेतों को खराब कर रहा है. मेघनगर में ज्यादातर केमिकल आधारित कारखाने होने से जल और वायु में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. कल कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को रोकने के लिए पिछले पांच सालों में न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोई ठोस कार्रवाई की है और न ही जिला प्रशासन ने.

Contaminated smoke
फैक्ट्रियों से निकलता दूषित धुआं

नहीं लगे गाइडलाइन के मुताबिक उपकरण

प्रदूषण के बढ़ते स्तर के चलते जिले में पहले कई जन आंदोलन भी हो चुके हैं. बावजूद इसके जिम्मेदार प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए कोई प्रयास करते दिखाई नहीं दिए हैं. कई कारखानों में तो पीसीबी की गाइडलाइन के अनुसार जरूरी उपकरण भी नहीं लगे हैं और जहां लगे हैं. वह अपनी उत्पादन लागत को कम करने के लिए इनका उपयोग नहीं के बराबर करते हैं.

Polluting river-ponds
प्रदूषित हो रहे नदी-तालाब

खराब हो रहे भूमिगत जल स्त्रोत

यूं तो नियमों के मुताबिक प्रदूषित कारखाने से प्रदूषित पानी का रिसाव बिल्कुल नहीं होना चाहिए (जीरो टोलरेंस पोलूशन) लेकिन आलम यह है कि इन कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित पानी से तालाब भरे पड़े हैं. बावजूद इसके न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और न ही स्थानीय प्रशासन इस ओर ध्यान दे रहा है. इससे भूमिगत जल स्त्रोत खराब हो रहे हैं. प्रदूषित पानी से आसपास के जल स्त्रोत, तालाब और नदी भी प्रभावित हो रही हैं.

Contaminated water
फैक्ट्रियों से निकलता दूषित पानी

ये भी पढ़ें- 'भैया जी का अड्डा': विकास और शिक्षा में पिछड़े मुरैना विधानसभा सीट पर क्या है वोटरों की राय, देखें पूरा वीडियो...

ध्वनि प्रदूषण से रहवासी परेशान

औद्योगिक क्षेत्र के आसपास रहने वाले कस्बों में लोग ध्वनि प्रदूषण के कारण काफी परेशानियों का सामना कर रहे हैं. कारखानों से आने वाली आवाजों के चलते कस्बाई इलाकों में रहने वाले लोगों की नींद भी प्रभावित होती है.

लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा दुष्प्रभाव

मेघनगर औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित कुछ अति महत्वकांक्षी कारखानों के चलते क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते लोगों में कई तरह की बीमारियां भी घर कर करने लगी है. पिछले तीन सालों में मेघनगर में अस्थमा, दमा, खुजली, बॉडी इन्फेक्शन सहित कैंसर जैसे रोगों के मरीजों की संख्या में भी इजाफा हुआ है.

जीवन बचाओ आंदोलन भी बेअसर

मेघनगर में फैल रहे प्रदूषण को देखते हुए कांग्रेस ने औद्योगिक क्षेत्र में जीवन बचाओ आंदोलन किया था, जिसमें कांग्रेस के बड़े नेता शामिल हुए थे. लेकिन एक आंदोलन के बाद फिर किसी भी राजनीतिक दल या जनप्रतिनिधि ने क्षेत्र में बढ़ रहे प्रदूषण को देखने की जहमत नहीं उठाई.

ये भी पढ़ें- दिग्विजय सिंह ने लिखा मुख्यमंत्री को पत्र, मंडियों में मक्के का सही मूल्य न मिलने पर दी आंदोलन की चेतावनी

प्रदूषित पानी से बचाव के लिए बनाया जा रहा CEPT प्लांट

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम (MPIDC) द्वारा CEPT(Common Effluent Treatment Plant) प्लांट बनाया जा रहा है ताकि प्रदूषित पानी का सही ढंग से निपटारा किया जा सके और भूमिगत पेयजल स्त्रोतों के साथ-साथ आसपास के नदी-तालाबों को सुरक्षित रखा जा सके, लेकिन यह कब बनकर तैयार होगा और कब उपयोग में लाया जाएगा कहना मुश्किल है.

धीमी गति से चल रहा काम

औद्योगिक क्षेत्र में CEPT का काम कछुआ गति से चल रहा है. आलम यह है कि जिस ट्रीटमेंट प्लांट को इस समय तैयार हो जाना था, वहां अभी बाउंड्री वॉल का ही काम शुरू हो पाया है, जिससे लगता है कि आने वाले 6 महीनों तक यहां ट्रीटमेंट प्लांट की सौगात नहीं मिल पाएगी.

ये भी पढ़ें- मेघनगर में धीमी गति से चल रहा कॉमन ट्रीटमेंट प्लांट का काम, 4 साल में शुरू हुआ बाउंड्री बनाने का काम

औद्योगिक विकास निगम के अधिकारियों का मानना है कि मार्च 2021 तक कंपनी ने ट्रीटमेंट प्लांट का काम को पूरा करने का आश्वासन दिया है. कोरोना का हवाला देकर विभाग ने कंपनी को 6 महीने का अतिरिक्त समय भी दिया है. अब देखना होगा कि आखिर कंपनी अपना काम कब पूरा कर पाती है और कब केमिकल कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित पानी से क्षेत्र के लोगों को छुटकारा मिलेगा.

झाबुआ। कभी शुद्ध हवा और पानी के लिए पूरे प्रदेश में जाने जाने वाला झाबुआ जिला अब पर्यावरण प्रदूषण के लिए मशहूर है. यहां की हवा इन दिनों प्रदूषित हो चली है. यहां की हवा के प्रदूषित होने के कारण है यहां के औद्योगिक क्षेत्र मेघनगर स्थित कल कारखानों की चिमनीयों से निकलने वाला धुआं. इस धुएं ने न सिर्फ पर्यावरण को प्रदूषित किया है बल्कि मानव जीवन को भी कष्टदायक बना दिया है.

जहर उगल रहे कल कारखाने

धुआं और प्रदूषित पानी कर रहे प्रभावित

मेघनगर औद्योगिक क्षेत्र के 10 किलोमीटर के इलाकों में ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्र हैं. केमिकल कारखानों से निकलने वाला प्रदूषित पानी का सही ट्रीटमेंट ना होने से यह रीस कर आसपास के खेतों को खराब कर रहा है. मेघनगर में ज्यादातर केमिकल आधारित कारखाने होने से जल और वायु में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. कल कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को रोकने के लिए पिछले पांच सालों में न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोई ठोस कार्रवाई की है और न ही जिला प्रशासन ने.

Contaminated smoke
फैक्ट्रियों से निकलता दूषित धुआं

नहीं लगे गाइडलाइन के मुताबिक उपकरण

प्रदूषण के बढ़ते स्तर के चलते जिले में पहले कई जन आंदोलन भी हो चुके हैं. बावजूद इसके जिम्मेदार प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए कोई प्रयास करते दिखाई नहीं दिए हैं. कई कारखानों में तो पीसीबी की गाइडलाइन के अनुसार जरूरी उपकरण भी नहीं लगे हैं और जहां लगे हैं. वह अपनी उत्पादन लागत को कम करने के लिए इनका उपयोग नहीं के बराबर करते हैं.

Polluting river-ponds
प्रदूषित हो रहे नदी-तालाब

खराब हो रहे भूमिगत जल स्त्रोत

यूं तो नियमों के मुताबिक प्रदूषित कारखाने से प्रदूषित पानी का रिसाव बिल्कुल नहीं होना चाहिए (जीरो टोलरेंस पोलूशन) लेकिन आलम यह है कि इन कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित पानी से तालाब भरे पड़े हैं. बावजूद इसके न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और न ही स्थानीय प्रशासन इस ओर ध्यान दे रहा है. इससे भूमिगत जल स्त्रोत खराब हो रहे हैं. प्रदूषित पानी से आसपास के जल स्त्रोत, तालाब और नदी भी प्रभावित हो रही हैं.

Contaminated water
फैक्ट्रियों से निकलता दूषित पानी

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ध्वनि प्रदूषण से रहवासी परेशान

औद्योगिक क्षेत्र के आसपास रहने वाले कस्बों में लोग ध्वनि प्रदूषण के कारण काफी परेशानियों का सामना कर रहे हैं. कारखानों से आने वाली आवाजों के चलते कस्बाई इलाकों में रहने वाले लोगों की नींद भी प्रभावित होती है.

लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा दुष्प्रभाव

मेघनगर औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित कुछ अति महत्वकांक्षी कारखानों के चलते क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते लोगों में कई तरह की बीमारियां भी घर कर करने लगी है. पिछले तीन सालों में मेघनगर में अस्थमा, दमा, खुजली, बॉडी इन्फेक्शन सहित कैंसर जैसे रोगों के मरीजों की संख्या में भी इजाफा हुआ है.

जीवन बचाओ आंदोलन भी बेअसर

मेघनगर में फैल रहे प्रदूषण को देखते हुए कांग्रेस ने औद्योगिक क्षेत्र में जीवन बचाओ आंदोलन किया था, जिसमें कांग्रेस के बड़े नेता शामिल हुए थे. लेकिन एक आंदोलन के बाद फिर किसी भी राजनीतिक दल या जनप्रतिनिधि ने क्षेत्र में बढ़ रहे प्रदूषण को देखने की जहमत नहीं उठाई.

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प्रदूषित पानी से बचाव के लिए बनाया जा रहा CEPT प्लांट

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम (MPIDC) द्वारा CEPT(Common Effluent Treatment Plant) प्लांट बनाया जा रहा है ताकि प्रदूषित पानी का सही ढंग से निपटारा किया जा सके और भूमिगत पेयजल स्त्रोतों के साथ-साथ आसपास के नदी-तालाबों को सुरक्षित रखा जा सके, लेकिन यह कब बनकर तैयार होगा और कब उपयोग में लाया जाएगा कहना मुश्किल है.

धीमी गति से चल रहा काम

औद्योगिक क्षेत्र में CEPT का काम कछुआ गति से चल रहा है. आलम यह है कि जिस ट्रीटमेंट प्लांट को इस समय तैयार हो जाना था, वहां अभी बाउंड्री वॉल का ही काम शुरू हो पाया है, जिससे लगता है कि आने वाले 6 महीनों तक यहां ट्रीटमेंट प्लांट की सौगात नहीं मिल पाएगी.

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औद्योगिक विकास निगम के अधिकारियों का मानना है कि मार्च 2021 तक कंपनी ने ट्रीटमेंट प्लांट का काम को पूरा करने का आश्वासन दिया है. कोरोना का हवाला देकर विभाग ने कंपनी को 6 महीने का अतिरिक्त समय भी दिया है. अब देखना होगा कि आखिर कंपनी अपना काम कब पूरा कर पाती है और कब केमिकल कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित पानी से क्षेत्र के लोगों को छुटकारा मिलेगा.

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