झाबुआ। मध्य प्रदेश में भले ही सरकार ने बसों के संचालन की अनुमति दे दी हो. लेकिन बस संचालक अभी भी बस सेवा शुरु करने के लिए तैयार नहीं हैं. जिससे लोगों की परेशानियां बढ़ती जा रही है. पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में बीते 163 दिनों से सार्वजनिक परिवहन के साधनों के पहिए जस के तस थमे हुए हैं. कोरोना संकट के चलते बंद हुआ सड़क और रेल परिवहन शुरू होने का नाम नहीं ले रहा, जिससे आम लोगों की परेशानी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.
झाबुआ जिले में सार्वजनिक परिवहन का एकमात्र साधन बसे हैं जो फिलहाल बंद है. बसे बंद होने से लोगों को अपने जरूरी कामों को निपटाने के लिए खर्चीली और खतरनाक यात्राएं करना पड़ रही है. लोग अब जीप, ट्रैक्टर, टेंपो ,ऑटो रिक्शा के अलावा ट्रक में सफर करने को मजबूर हो रहे हैं.
कोरोना संकट के चलते बंद हुई बसें अब सरकार की स्वीकृति के बाद भी सड़कों पर दौड़ने को तैयार नहीं है. जिससे बस मालिकों के साथ-साथ इन बसों पर काम करने वाले हजारों ड्राइवर, क्लीनर और कंडक्टर पहले ही बेरोजगार हो चुके हैं. झाबुआ जिले में चलने वाली बसें 400 से अधिक छोटे-बड़े गांव में पहुंचती थी. जो वहां के ग्रामीणों को आसानी से शहर तक पहुंचाती थी. लेकिन अब हर दिन परेशानियां बढ़ती जा रही है.
अपडाउन करने वालों की बढ़ी सबसे ज्यादा परेशानियां
रोजमर्रा और नौकरीपेशा लोग जो मेघनगर, राणापुर, कालीदेवी, पिटोल से महज 40 रुपए में हर रोज झाबुआ आते थे. लेकिन अब उन्हें यहां तक आने के लिए बाइक में 100 रुपए का पेट्रोल जलाकर झाबुआ पहुंचना पड़ता है. थांदला, पेटलावद या जिले के अन्य स्थानों से जिला मुख्यालय के सरकारी कार्यालयों में नौकरी करने वाले कर्मचारियों खासकर महिला कर्मचारियों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है.
महिला कर्मचारियों को उनके परिजन हर निजी वाहनों से छोड़ने और लेने के लिए आते- जाते हैं. ऐसे में आने-जाने का खर्च काफी ज्यादा हो जाता है साथ ही समय की बर्बादी भी हो रही है. गांव से शहरों में आने वाले सभी वर्ग के लोगों को सार्वजनिक परिवहन का साधन नहीं मिल रहा, जिससे लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. अब लोग जिले में जल्द ही बसे चालू करने की मांग करने लगे हैं.