झाबुआ। झाबुआ रियासत के राजा बहादुर सिंह ने 1766 में शहर की पेयजल व्यवस्था के लिए झाबुआ में बहादुर सागर तालाब का निर्माण कराया था. 7 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस तालाब से शहर का भूजल बढ़ता है. साल भर तक पानी से सराबोर रहने वाला यह तालाब प्रदूषित होता जा रहा है, बहादुर सागर तालाब की प्राकृतिक सुंदरता देखने लायक है, यहां एक और यूरोपियन गेस्ट हाउस है तो दूसरी ओर कई मंदिर हैं.
तालाब की बनावट ऐसी थी कि साल 1856 में झाबुआ के तत्कालीन राजा गोपाल सिंह ने इस तालाब से निकलने वाले वेस्ट वेयर से मेहता तालाब का निर्माण कराया. और एक केनाल मेहता तालाब से अनास नदी तक बनाई, जिसमें तालाब का ओवरफ्लो पानी नदी में मिलता है.
बहादुर सागर तालाब के किनारे हनुमान मंदिर पर एक कुंआ बनाया गया था. जिससे शहरवासियों के लिए पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था की जाती थी, लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते सब बदहाल हो गया. बहादुर सागर झील के किनारे 10 से ज्यादा घाटों का निर्माण किया गया था. कई घाटों पर भक्ति के लिए मंदिरों का निर्माण भी कराया गया था. राजशाही द्वारा पुरातात्विक सौगात का संरक्षण और संधारण ना होने के चलते बहादुर सागर तालाब बदहाल स्थिति में पहुंच चुका है.
शासन ने नहीं उठाया कोई ठोस कदम
बहादुर सागर के किनारों पर बढ़ते अतिक्रमण के चलते इसका कुछ एरिया कम होता जा रहा है. कई वार्डों की रिहायशी बस्तियों का गंदा पानी भी इस तालाब में कई सालों से घुल रहा है, जिससे तालाब का पानी बदबूदार और प्रदूषित हो गया है. एक जमाने में इस पानी का उपयोग लोग पीने और जरूरी कामों के लिए करते थे. लेकिन अब तालाब का पानी किसी काम का नहीं बचा है. तालाब के पानी को प्रदूषित होने से बचाने के लिए ना तो स्थानीय स्तर पर नगर पालिका ने कोई ठोस कार्य योजना बनाई और ना ही शासन स्तर पर इस तालाब के जीर्णोद्धार के लिए कोई प्रोजेक्ट तैयार किया गया. हालांकि प्रदेश सरकार को इस पेयजल स्त्रोत के जीर्णोद्धार के लिए योजना बनाकर भेजी गई है. लेकिन इन योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए स्वीकृति नहीं मिल पाई है.
तालाब के जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण पर दिया जाए ध्यान
पुरातात्विक महत्व के इस बहादुर सागर तालाब की दुर्दशा पर स्थानीय रहवासी दुखी हैं. स्थानीय निवासियों ने इस संबंध में कई बार नगर पालिका और कलेक्टर से शिकायत भी दर्ज कराई है. लोगों की मांग है कि तालाब जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण पर ध्यान दिया जाए, लेकिन प्रशासनिक शिथिलता के चलते न तो शासन-प्रशासन और ना ही जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान दे रहे हैं. इन दिनों तालाब जलकुंभी से पटा हुआ है.
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शहर के 3 वार्डों के सैकड़ों मकानों का गंदी पानी, ड्रेनेज इस तालाब के पानी को खराब कर रहा है. शहरवासियों के लिए पानी की कमी को दूर करने के लिए राजशाही दौर में बनाए गए इस तालाब को संरक्षण की आवश्यकता है, जिससे भविष्य में शहर के भूजल स्तर को नियंत्रित रखा जा सके. लेकिन लोगों की उदासीनता और प्रशासनिक अधिकारियों की इच्छाशक्ति ना होने के चलते यह तालाब जल प्रदूषण का एक नायाब उदाहरण बनता जा रहा है.