जबलपुर। आपको यह जानकर हैरानी होगी की खेत में उगने वाला चारा देश को हर साल एक लाख करोड़ का नुकसान पहुंचाता (loss due to weed) है. केवल 10 फसलों में यह नुकसान 70 हजार करोड़ के करीब है. यह जानकारी जबलपुर में केंद्रीय खरपतवार नियंत्रण संस्थान (central weed control institute) के निदेशक डॉक्टर जेएस मिश्रा ने दी.
सोच-समझकर करें दवाओं का प्रयोग
डॉक्टर जेएस मिश्रा का कहना है कि फसल में खरपतवार नाशक दवाओं (use of weedcide) का का प्रयोग बहुत सोच समझ कर करना चाहिए. यदि सही समय पर खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग नहीं किया गया तो इनका असर नहीं होता, जैसे- गेहूं की फसल में 20 से 25 दिन बाद खरपतवार नाशक दवा का प्रयोग करना चाहिए. यदि इसके बाद किया जाता है तो इसका असर खरपतवार पर नहीं पड़ता. वहीं शाम के समय या सुबह जब पौधों पर नमी रहती है, तभी खरपतवार नाशक दवाएं डालनी चाहिए.
इन दवाओं का करें प्रयोग
- गेहूं- कलोडीनो मेडसलफान
- मसूर- पिंडी मैथिलीन
- चने- पिंडी मैथिली ट्राई क्लोरेलिन
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ज्यादातर किसान जिस पंप से कीटनाशक (use of pesticide) दवाओं का छिड़काव करते हैं, उसी से खरपतवार नियंत्रण दवाएं भी डालने लगते हैं. इसकी वजह से दवा का असर सहीं ढंग से नहीं दिखता है. जिस पंप से कीटनाशक दवा डाली गई हो उसी नोजल पंप से खरपतवार नियंत्रण नहीं छिड़कनी चाहिए. किसानों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि ज्यादातर खरपतवार नियंत्रण यंत्रों द्वारा यहां से निराई गुड़ाई करके कर लिया जाए तो कम से कम रासायनिक दवाओं का प्रयोग करने की जरूरत पड़ेगी. भले ही यह दवाएं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नेम अनुशंसित कर दी हो लेकिन इनका असर प्रकृति पर अच्छा तो नहीं होता.