जबलपुर। शहर के गढ़ा इलाके में पुष्य नक्षत्र का अनोखा मंदिर स्थापित है. यह पूरा मंदिर पवित्र पुष्य नक्षत्र में ही बनाया गया था. ऐसा माना जाता है कि पुष्य नक्षत्र एक शुभ नक्षत्र होता है. इसलिए पूर्वजों ने मंदिर को शुभ अवसर में बनाया था.
एक ही नक्षत्र में बना
इस मंदिर की देखरेख करने वाला पांडे परिवार दावा करता है कि यह मंदिर उनका पारिवारिक मंदिर है. इसे उनके पूर्वजों ने बनवाया था. इसमें से कुछ सन्यासी थे. इनकी बाहर दो समाधिया भी बनी हुई है. पांडे परिवार के एक बुजुर्ग सदस्य रमेश कुमार पांडे का कहना है कि उनके पूर्वजों ने इस मंदिर को केवल पुष्य नक्षत्र में बनवाया था. महीने में जब भी पुष्य नक्षत्र आता था, तब निर्माण का काम किया जाता था. जैसे ही नक्षत्र का प्रभाव खत्म होता था, काम बंद कर दिया जाता था. उनका ये भी कहना है कि पुष्य नक्षत्र एक शुभ नक्षत्र होता है. इसलिए पूर्वज इस मंदिर को केवल शुभ समय में ही बनाना चाहते थे, ताकि इसका प्रभाव भी शुभ हों.
मंदिर की बनावट
बता दें कि, मंदिर ज्यादा बड़ा नहीं है. इसकी ऊंचाई लगभग 25 फीट है. लगभग 15 फीट के व्यास में यह बना हुआ है. मंदिर के गुंबद पर चौसठ योगिनियों की मूर्तियां लगी हैं. गर्भ गृह में भगवान शंकर की प्रतिमा और शिवलिंग की स्थापना की गई है. प्रवेश द्वार पर मेरु प्रकार का श्री यंत्र बना हुआ है. पांडे परिवार का दावा है कि यह विशेष संरचना ग्रहों के अच्छे प्रभाव के लिए बनाई गई थी. वे कई पीढ़ियों से इसकी देखरेख और पूजा-पाठ करते आ रहे हैं. सामान्य तौर पर ऐसी मंदिरों की मूर्तियां टूटी-फूटी रहती है, लेकिन इस मंदिर की कोई भी मूर्ति टूटी-फूटी नहीं है. पूरी मूर्तियां साबुत है. वहीं मंदिर के पास एक कुआं भी है.
यह मंदिर अपने आप में बहुत खास है, लेकिन इस पूरे इलाके में लगभग इसी संरचना के और भी मंदिर हैं. इनमें देवताल के आसपास बने मंदिर, पचमठा मंदिर, मेडिकल कॉलेज में बना सूर्य मंदिर भी कुछ इसी संरचना के बने हुए हैं, जिन में पत्थर को बड़ी बारीकी से तराशा गया है. हालांकि अब इस तरह के पत्थर तराशने वाले लोग जबलपुर में नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है कि किसी जमाने में जबलपुर में मंदिर निर्माण की इस शानदार कला से जुड़े हुए लोग यहां रहा करते थे. हालांकि, इन मंदिरों के इतिहास के बारे में कम ही लोगों को जानकारी है. कुछ लोग इन्हें गौड़ कालीन समय से जोड़ते हैं. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इनका निर्माण कलचुरी काल में किया गया था.
पुष्य नक्षत्र का यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक नजरिए से बहुत महत्वपूर्ण है, बल्कि वास्तुकला के हिसाब से भी यह एक दर्शनीय मंदिर है, क्योंकि पांडे परिवार इसे अपनी निजी संपत्ति मानता है. इसलिए इस मामले में सरकार का दखल नहीं हो सकता है.