जबलपुर। नंद वंदना अग्रवाल और भाभी मोनिका अग्रवाल ने एक अनोखी मिसाल कायम की है. उन्होंने एक अत्याधुनिक डेरी फॉर्म की शुरुआत की है. अब जबलपुर के सैकड़ों परिवारों को इन दोनों की जोड़ी शुद्ध दूध मुहैया करवा रही हैं. जबलपुर में डेयरी उद्योग एक घाटे का सौदा बन गया है. भैंस पालना उसकी देख रेख करना बहुत ही कठिन काम है. सामान्य तौर पर लोग इस धंधे से हाथ खींच रहे हैं, जिन लोगों की बड़ी डेरिया थी उन्होंने छोटा काम करना शुरू कर दिया है लेकिन इसी कठिन दौर में जबलपुर की पढ़ी-लिखी दो महिलाएं, जो रिश्ते में नंद-भाभी हैं, इन लोगों ने एक डेयरी शुरू की है जो अब एक सफलता की कहानी बन गई है.
किराए के घर से की शुरुआत
वंदना अग्रवाल और मोनिका अग्रवाल एक पढ़े-लिखे परिवार से ताल्लुक रखती हैं. दोनों आपस में नंद और भाभी का रिश्ता रखती हैं. मोनिका अग्रवाल की पढ़ाई वेटनरी साइंस में हुई है और परिवार में दूसरे सदस्य भी वेटनरी डॉक्टर है. दरअसल हुआ यह की वंदना अग्रवाल का बच्चा बीमार हुआ तो डॉक्टर ने कहा कि उन्हें दूध देना पड़ेगा. बाजार से खरीद के दूध पिलाया तो वंदना के बेटे की तबीयत और ज्यादा बिगड़ गई क्योंकि घर में तीन वेटरनरी डॉक्टर थे तभी लोगों ने विचार किया कि जब वेटरनरी डॉक्टर होने के बाद भी उन्हें अच्छा दूध नहीं मिल पा रहा तो, आम लोगों को कैसे अच्छा दूध मिल पा रहा होगा. बस यही से महालक्ष्मी डेरी की शुरुआत हुई और इन लोगों ने एक किराए के डेरी फॉर्म में चार देशों से डेरी का व्यापार शुरू किया.
वंदना और मोनिका दोनों खुद नियम से डेरी पर पहुंचते हैं. डेयरी उद्योग न केवल घाटे का सौदा था बल्कि यह बहुत मेहनत का काम है. इसलिए पढ़े लिखे लोग इस क्षेत्र में कम ही हाथ आजमाते हैं. लेकिन वंदना और मोनिका ने अत्याधुनिक फॉर्म हाउस बनाया, इसमें कोई भी जानवर बंधा हुआ नहीं रहता जानवरों को उनकी अवस्था के अनुसार अलग-अलग बारे में रखा जाता है. खाना तैयार करवाने के लिए अत्याधुनिक मशीनें हैं. दूध निकालने के लिए मशीनों के साथ ही साथ ट्रेंड लोगों का सहारा लिया जाता है और एक-एक जानवर पर वंदना और मोनिका अपने परिवार के साथ ध्यान देती हैं. आज इनके पास 400 जानवर हैं और लगभग 15, 100 लीटर दूध रोज बिकता है. दूध को बेचने के पहले उसे पाश्चराइज किया जाता है और पाउच बनाकर ऐप के जरिए घर-घर पहुंचाया जाता है.
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पढ़े लिखे बेरोजगारों के लिए एक सीख
पढ़ाई लिखाई करने के बाद ज्यादातर लोगों की कोशिश होती है कि उन्हें नौकरी मिल जाए, लेकिन डॉ. मोनिका का कहना था कि उनके पास यह विकल्प था कि वे नौकरी कर लेती लेकिन अपना काम करने में एक अलग सी संतुष्टि मिलती है. इसके साथ ही परिवार का साथ यदि होता है तो काम में तरक्की होती है. मोनिका का कहना है कि आज उनकी कोशिश की वजह से उन्हें तो काम मिला हुआ ही है बल्कि उनकी वजह से 25 लोगों को भी प्रत्यक्ष रोजगार मिला है और लोगों को साफ और अच्छा दूध मिल पा रहा है. मोनिका और वंदना का कहना है कि उन्हें लोगों ने हतोत्साहित करने की भी कोशिश की थी, लेकिन उनका फैसला अधिक था और काम शुरू किया अब सफलता मिल रही है इनका कहना है कि पढ़े-लिखे लोगों को खुद का काम करना चाहिए.
विश्वास का रिश्ता
महालक्ष्मी डेरी फॉर्म एक साफ-सुथरी जगह है. यहां गंदगी बिल्कुल भी नहीं है. अग्रवाल परिवार के बच्चे यहां पर खेलने कूदने के लिए आते हैं. मतलब इन नंद और भाभी ने जो काम किया है, वह अनुकरणीय है. इन लोगों का कहना है कि नंद और भाभी का रिश्ता टिका होता है लेकिन उनके साथ ऐसा नहीं है वे दोनों एक और एक दो नहीं बल्कि 11 होने की कोशिश कर रही हैं और इस काम को और आगे ले जाने के लिए तैयारी कर रही हैं.