जबलपुर। डॉक्टर शैलेंद्र राजपूत (एमडी मेडिसिन) एक अनुभवी डाक्टर हैं. वह लंबे समय से ऐसे मरीजों का इलाज करते रहे हैं. डॉ.राजपूत का कहना है कि सिकलसेल एनीमिया एक अनुवांषिक बीमारी है. इस बीमारी की शुरुआत किसी पहले शख्स में डीएनए में आए परिवर्तन से होती है. कभी-कभी कुछ डीएनए म्यूटेशन की वजह से परिवर्तित हो जाते हैं और इन बदले हुए डीएनए की वजह से किसी एक शख्स में सिकलसेल एनीमिया की बीमारी पनपती है. लेकिन इसके बाद यह इस आदमी से जन्म लेने वाले बच्चे में ट्रांसफर हो सकती है. यदि पति और पत्नी दोनों ही सिकलसेल एनीमिया के मरीज हैं तो इनके बच्चे 100 फीसदी इस बीमारी से प्रभावित होने की आशंका होती है.
क्या होता है इस बीमारी में : डॉ.राजपूत बताते हैं कि जिसे यह बीमारी होती है उसकी रक्त कणिकाओं की फ्लैक्सेबिलिटी खत्म हो जाती है. इन्हें ही सिकलसेल कहा जाता है. पतली रक्त वाहिनियों में बहने के दौरान वे टूटने लगती हैं. टूटी हुई रक्त कणिकाएं शरीर में कई किस्म की समस्याएं पैदा करती हैं. ये शरीर की कुछ पतली रक्त वाहिनियों में फंस जाती हैं. इसलिए उसके आगे के हिस्सों में छोटे-छोटे पैरालिसिस आते हैं. कई बार यह बड़ा रूप भी ले लेते हैं, जिससे लोगों को लकवा लग जाता है. टूटी हुई रक्त कणिकाओं को शरीर साफ कर देता है इस वजह से कई बार शरीर में खून की कमी हो जाती है. वहीं शरीर के कुछ हिस्सों में तंत्रिका या खुली रह जाने की वजह से लोगों को असहनीय दर्द होता है और सिकलसेल एनीमिया के मरीज को अक्सर पीलिया भी होता है. कुल मिलाकर सिकलसेल एनीमिया का मरीज एक कमजोर शरीर के साथ जीता है.
इसका इलाज क्या है : सही मायनों में सिकलसेल एनीमिया का कोई इलाज नहीं है. डॉक्टर ज्यादा से ज्यादा सिकलसेल एनीमिया की वजह से शरीर में दूसरी समस्याओं का इलाज कर सकता है, जिसमें शरीर में इन्फेक्शन ना हो. इसके लिए एंटीबायोटिक दी जा सकती हैं या फिर सिकलसेल एनीमिया की वजह से शरीर में कोई दूसरी बीमारी पनप रही है तो उसका लगातार इलाज किया जा सकता है, क्योंकि यह अनुवांषिक बीमारी है. इसलिए इसका इलाज किसी सामान्य संक्रामक या दूसरी बीमारियों की तरह नहीं किया जा सकता.
बोनमेरो ट्रांसप्लांटेशन : ऐसा कहा जा रहा है कि बोनमेरो ट्रांसप्लांटेशन के जरिए यह समस्या खत्म की जा सकती है लेकिन डॉ. शैलेंद्र राजपूत का कहना है कि बोनमेरो ट्रांसप्लांटेशन या स्टेम सेल के जरिए इलाज की बात कहना बहुत सरल है लेकिन बड़े पैमाने पर इसको करना बहुत कठिन काम है. इसके लिए जिस मरीज को सिकलसेल एनीमिया की समस्या है, उसके शरीर से पहले पूरी बोनमेरो को अलग करना होता है. यह एक बेहद जटिल प्रक्रिया है और जिस दौरान शरीर से बोनमेरो हटाई जाती है उस दौरान शरीर को मेडिकल सपोर्ट पर रखा जाता है, जो बहुत जोखिम भरा काम होता है. इसके बाद शरीर में बॉडी को मैच करती हुई बोनमेरो ट्रांसप्लांट की जाती है.यदि बीमार शरीर नई बोनमेरो कोशिकाओं को स्वीकृत कर लेता है तो मरीज के ठीक होने की संभावना बन जाती है लेकिन इसमें जटिलता के साथ-साथ 100% सफलता का भी कोई संभावना नहीं होती.
आखिर ये बीमारी कैसे खत्म होगी : सिकलसेल एनीमिया की समस्या का समाधान शादी के पहले की मेडिकल जांच है. डॉ. शैलेंद्र राजपूत का कहना है कि यदि शादी के पहले लड़के और लड़की का सिकलसेल एनीमिया का टेस्ट किया जाता है और यदि दोनों ही इस बीमारी से ग्रसित हैं तो इनकी शादी नहीं होने देना चाहिए ताकि यह बीमारी उनके बच्चों तक ना पहुंचे. वहीं यदि किसी एक को यह बीमारी है तो लड़के और लड़की शादी तो कर सकते हैं लेकिन उनके बच्चों को जन्म लेने के पहले ही इसका टेस्ट करवाना जरूरी है ताकि यह बीमारी उन बच्चों में ना हो और यदि बच्चे में गर्भावस्था के दौरान ही इस बात की जानकारी लग जाती है तो गर्भपात ही करवाना होगा.
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