जबलपुर। भारत में ऐसे कई नदी, तालाब हैं जिनसे लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. इन नदियों को लोग देवी-देवताओं की तरह पूजते भी है. देश में मनाए जाने वाले अधिकांश त्योहारों पर लोग यहां स्नान के लिए जाते हैं, तालाबों के किनारे पूजा करते हैं और अधिकांश लोग इन नदी तालाबों में पूजा के अवशेषों को डाल दिया जाता है. आस्था के नाम पर लोगों को यह तरीका अब इन नदी-तालाबों के आस्तित्व को खतरें में डाल रहा है.
जैसे देश में गंगा-यमुना आस्था के नाम पर प्रदूषित हो चुकी हैं, उसी तरह जबलपुर के हनुमान ताल का भी ऐसा ही कुछ हाल है. वहीं, जबलपुर में तालाब और तलैया की बात करें तो जबलपुर में 52 तालाब और 84 तलैया थीं, जो अब महज 32 बचे हुए हैं, भू-माफिया और शहरीकरण की दौड़ में ये तालाब खत्म हो गए हैं, लेकिन इन तालाबों के नाम आज भी जिन्दा हैं, कॉलोनियों को इन तालाबों के नाम से जाना जाता है.
- जबलपुर का हनुमान ताल
जबलपुर शहर के बीच लगभग 10 एकड़ इलाके में फैला हुआ एक बेहद खूबसूरत तालाब 'हनुमान ताल' है. इस तालाब पर कई धर्मों के लोग दावा जताते रहे हैं. जैन धर्म के लोगों का कहना है कि यह तालाब उनके पूर्वजों ने बनाया था क्योंकि इस तालाब के किनारे एक जैन मंदिर है . वही, इसी तालाब से थोड़ी दूरी पर बड़ी खेरमाई का मंदिर है जो किसी जमाने में इस इलाके में रहने वाले गौड शासकों ने बनवाया था. इसके आसपास हिंदुओं के कई खूबसूरत छोटे बड़े मंदिर हैं. तालाब को लेकर एक दावा यह भी है कि इसका कभी गौड़ राजाओं ने निर्माण किया होगा. हिंदुओं के भगवान हनुमान के नाम पर इस तालाब का नामकरण किया गया है,
एमपी के 2 शहरों में बढ़ा लॉकडाउन, अशोकनगर और बैतूल में 3 मई तक जारी
- मुगलकाल से जुड़ी तालाब की कहानी
भारत में मुगलों ने लंबे समय तक राज किया था. मुगलकाल में जब मुगलों ने जबलपुर पर शासन किया तो उनके नवाब का बंगला भी इसी तालाब के किनारे था और तालाब के किनारे एक मस्जिद भी बनाई गई है. तालाब के किनारे मंदिर-मस्जिद होने के कारण इन धर्मों के लोग तालाब को लेकर अपने-अपने दावे करते रहते हैं
- आस्था के नाम पर लोगों ने किया मैला
हिंदु धर्म में परंपरा है कि पूजा पाठ के बाद जो भी पूजा सामाग्री का अवशेष बचता है उसे पवित्र नही तालाब में विसर्जित किया जाता है. फिर वह घरों में छोटे पूजा-पाठ का सामान हो या गणेश और दुर्गा विसर्जन. वहीं, दूसरी ओर कुछ ऐसी ही मान्यता मुस्लिम समाज में भी है, मुस्लिम मान्यता के मुताबिक, ताजिया को भी तालाब में सीराया जाता है. जबलपुर का हनुमान ताल के किनारे मंदिर मस्जिद दोनों होने से दोनों धर्मों के लोग इस तालाब में अपनी पूजा/इबादत के बाद विसर्जन के रुप में बचा अवशेष यहां डाल देते हैं, जिससे अब तालाब की दुर्दशा दिल्ली की यमुना जैसी ही हो गई है. जबलपुर के हनुमान ताल का यह हाल है कि अगर किसी ने इसका पानी छू भी लिया तो उसको त्वचा संबधिक बिमारी हो सकती है.
- सफाई का प्रयास
शहर के बीचों बीच स्थित इस तालाब की सफाई के लिए प्रशासन लगातार प्रयास करता रहा है, लेकिन नगर निगम, समाज सेवी संस्थाओं के कई प्रयासों के बावजूद यह तालाब साफ नहीं हो पाई हैं. जबलपुर नगर निगम के सफाई कर्मचारी नियमित इस तालाब की सफाई करते हैं, तालाब के किनारे गंदगी को रोजाना साफ किया जाता है. साथ ही तालाब के भीतर की सफाई के लिए नाव की व्यवस्था भी की गई है, लेकिन इन तमाम कोशिशों के बाद भी नतीजा कुछ खास दिखाई नहीं देता. तालाब की सफाई को लेकर सफाई कर्मचारियों का कहना है कि वह इस बात से दुखी हैं कि उन्हें सफाई करते हुए देखने के बाद भी लोग उनके सामने ही गंदगी तालाब में फेंक कर चले जाते हैं और उन्हें हेय नजर से देखा जाता है, यहां तक की उनकी बेइज्जती भी की जाती है.
104 साल के बुजुर्ग ने दी कोरोना को मात, सीएम ने दी शुभकामनाएं
- हनुमान ताल का अस्तित्व खतरें में
जबलपुर में हनुमान ताल ही केवल ऐसा ताल नहीं है जिसकी ऐसी दुर्दशा है बल्कि शहर के दूसरे तालाबों की हाल भी कुछ ऐसा ही है. इन तालाबों में नालियों का पानी छोड़ा गया है, कचरा फेंका जा रहा है और नगर निगम, जिला प्रशासन के लिए यह ताल तालाब कमाई का एक बड़ा जरिया भी हैं. हर साल इनकी सफाई के लिए करोड़ों रुपया खर्च किया जाता है जिसका बहुत बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है. जबलपुर में लगातार कम होते जल स्रोतों के बाद भी आस्था के नाम पर इन बचे तालाबों को गंदा किया जा रहा है. अगर शहर में तालाबों के साथ ऐसी ही होता रहा तो एक दिन शहर को गंभीर रुप से जल संकट का सामना करना पड़ेगा.