जबलपुर। पूर्व विधायक लखीराम कांवरे और विधायक दिलीप भटेर के पैतृक गांव स्थित कृषि भूमि में समाधि बनाए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस वीके शुक्ला की युगलपीठ ने पाया कि समाधि का निर्माण 1999 से 2006 के बीच हुआ था. इतना लम्बा समय गुजर जाने के बाद चुनौती दिए जाने के युगलपीठ ने इसे जनहित याचिका का दुरूपयोग बताते हुए याचिका को खारिज कर दिया है.
बालाघाट लांजी के पूर्व विधायक किशोर समरीते की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि बालाघाट जिले में पूर्व विधायक लखीरम कांवरे और दिलीप भटेरे की समाधि उनके गांव स्थित पैतृक कृषि भूमि में बनाई गई है. समाधि के समीप मंदिर का निर्माण भी हो गया और वह लोगों की आस्था का केन्द्र है. समाधि पर प्रत्येक साल कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. याचिका में राहत की मांग की गई है कि धार्मिक स्थलों के समीप से उक्त समाधि स्थलों को हटाया जाए.
याचिका में प्रदेश सरकार के गृह विभाग के सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव, कलेक्टर बालाघाट और किरनपुर और बोलगांव के ग्राम पंचायत को पक्षकार बनाया गया. सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से बताया गया कि याचिकाकर्ता पूर्व विधायक है और जनहित याचिका दायर करना उसकी आदत है. पूर्व में दायर बंधी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर उच्च न्यायालय ने 50 हजार रुपए की जुर्माना लगाया गया है. सर्वोच्च न्यायालय ने जुर्माने की राशि कम करते हुए पांच लाख रुपए की थी. सुनवाई के बाद युगलपीठ ने उक्त आदेश जारी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया.