ETV Bharat / state

MP धर्म स्वातंत्र्य कानून को फिर हाईकोर्ट में चुनौती

एमपी में धर्म स्वातंत्र्य कानून के खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट में फिर जनहित याचिका दायर की गई है. हिन्दू, मस्लिम और ईसाई समाज के आठ लोगों की ओर से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि प्रदेश सरकार द्वारा लागू किया गया धर्म स्वातंत्र्य कानून असंवैधानिक है.

petition-filed-again-against-madhya-pradesh-religious-freedom-act-in-jabalpur-high-court
जबलपुर हाईकोर्ट
author img

By

Published : Feb 13, 2021, 9:51 PM IST

जबलपुर: हाईकोर्ट में धर्म स्वातंत्र्य कानून 2020 की संवैधानिकता को फिर चुनौती दी गई है. इससे पहले भी इस कानून के खिलाफ याचिका लगाई गई थी, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस व्ही के शुक्ला ने दोनों याचिका को एक करने के निर्देश दिए हैं.

याचिका पर 15 फरवरी को होगी सुनवाई

हिन्दू, मस्लिम और ईसाई समाज के आठ व्यक्तियों की ओर से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि प्रदेश सरकार द्वारा लागू किया गया धर्म स्वातंत्र्य कानून अवैधानिक है. ये कानून संविधान की अनुच्छेद 14,19, 21 और 25 के सिद्धांतों और व्यक्ति के धर्म परिवर्तन व धर्मनिरपेक्षता के अधिकार का उल्लंघन कर रहा है. यह कानून धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा के खिलाफ है.

कानून में धारा 2 (डी) की परिभाषा अस्पष्ट है, इसमें उस व्यक्ति को शामिल नहीं किया गया है जो दूसरे व्यक्ति को मजबूर कर रहा है या रोक रहा है. एक्ट की धारा 3 (1) और 4 अध्यादेश दो व्यस्क व्यक्तियों के बीच स्वैच्छिक अंतरजातीय धर्म विवाह को गैरकानूनी बनाते हैं, इसके अलावा व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता में दखल देने वाला है.

'महिलाओं को दोगुनी सजा का प्रावधान'

याचिका में आगे कहा गया है कि दो अलग-अलग समुदाय के लोग तीसरे धर्म को अपनाते हैं तो वह धारा 5 के तहत भी दंडनीय होगा. एक्ट में महिलाओं के मामले में दोगुनी सजा का प्रावधान है. धारा 10 उन स्थितियों में उत्पीड़न का साधन होगी, जहां अंतरजातीय विवाह स्वैच्छिक है. याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय सहित अन्य उच्च न्यायालय द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संबंध में पारित आदेशों का हवाला भी दिया गया है. याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा और समरेश कटारे ने पैरवी की.

मध्यप्रदेश धर्म स्वातंत्र्य कानून 2020 की संवैधानिकता को HC में चुनौती

कानून के मुख्य प्रावधान

  • बहला-फुसलाकर, धमकी देकर जबरदस्ती धर्मांतरण और शादी करने पर 10 साल की सजा का प्रावधान. यह गैर जमानती अपराध होगा.
  • धर्मांतरण और धर्मांतरण के बाद होने वाले विवाह के 2 महीने पहले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को धर्मांतरण और विवाह करने और करवाने वाले दोनों पक्षों को लिखित में आवेदन देना होगा.
  • बगैर आवेदन दिए धर्मांतरण करवाने वाले धर्मगुरु, काजी, मौलवी या पादरी को भी 5 साल तक की सजा का प्रावधान है.
  • धर्मांतरण और जबरन विवाह की शिकायत पीड़ित, माता- पिता, परिजन या गार्जियन द्वारा की जा सकती है.
  • सहयोग करने वालों को भी मुख्य आरोपी बनाया जाएगा. उन्हें अपराधी मानते हुए मुख्य आरोपी की तरह ही सजा होगी.
  • जबरन धर्मांतरण या विवाह कराने वाली संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जाएगा.
  • इस प्रकार के धर्मांतरण या विवाह कराने वाली संस्थाओं को डोनेशन देने वाली संस्थाएं या लेने वाली संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन भी रद्द होगा.
  • इस प्रकार के धर्मांतरण या विवाह में सहयोग करने वाले आरोपियों के विरुद्ध मुख्य आरोपी की तरह ही कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
  • अपने धर्म में वापसी करने पर इसे धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा.
  • पीड़ित महिला और पैदा हुए बच्चे को भरण-पोषण का हक हासिल करने का प्रावधान है.
  • आरोपी को ही निर्दोष होने के सबूत प्रस्तुत करना होगा.

9 जनवरी को हुई थी अधिसूचना जारी

बता दें 9 जनवरी को मध्‍य प्रदेश सरकार ने राजपत्र में धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक 2020 के लिए अधिसूचना जारी की थी. सरकार के इस कदम के साथ ही कथित 'लव जिहाद' के खिलाफ राज्य में सख्त कानून लागू हो गया. दिसंबर 2020 में शिवराज सिंह कैबिनेट ने मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक-2020 को मंजूरी दी थी.

जबलपुर: हाईकोर्ट में धर्म स्वातंत्र्य कानून 2020 की संवैधानिकता को फिर चुनौती दी गई है. इससे पहले भी इस कानून के खिलाफ याचिका लगाई गई थी, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस व्ही के शुक्ला ने दोनों याचिका को एक करने के निर्देश दिए हैं.

याचिका पर 15 फरवरी को होगी सुनवाई

हिन्दू, मस्लिम और ईसाई समाज के आठ व्यक्तियों की ओर से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि प्रदेश सरकार द्वारा लागू किया गया धर्म स्वातंत्र्य कानून अवैधानिक है. ये कानून संविधान की अनुच्छेद 14,19, 21 और 25 के सिद्धांतों और व्यक्ति के धर्म परिवर्तन व धर्मनिरपेक्षता के अधिकार का उल्लंघन कर रहा है. यह कानून धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा के खिलाफ है.

कानून में धारा 2 (डी) की परिभाषा अस्पष्ट है, इसमें उस व्यक्ति को शामिल नहीं किया गया है जो दूसरे व्यक्ति को मजबूर कर रहा है या रोक रहा है. एक्ट की धारा 3 (1) और 4 अध्यादेश दो व्यस्क व्यक्तियों के बीच स्वैच्छिक अंतरजातीय धर्म विवाह को गैरकानूनी बनाते हैं, इसके अलावा व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता में दखल देने वाला है.

'महिलाओं को दोगुनी सजा का प्रावधान'

याचिका में आगे कहा गया है कि दो अलग-अलग समुदाय के लोग तीसरे धर्म को अपनाते हैं तो वह धारा 5 के तहत भी दंडनीय होगा. एक्ट में महिलाओं के मामले में दोगुनी सजा का प्रावधान है. धारा 10 उन स्थितियों में उत्पीड़न का साधन होगी, जहां अंतरजातीय विवाह स्वैच्छिक है. याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय सहित अन्य उच्च न्यायालय द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संबंध में पारित आदेशों का हवाला भी दिया गया है. याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा और समरेश कटारे ने पैरवी की.

मध्यप्रदेश धर्म स्वातंत्र्य कानून 2020 की संवैधानिकता को HC में चुनौती

कानून के मुख्य प्रावधान

  • बहला-फुसलाकर, धमकी देकर जबरदस्ती धर्मांतरण और शादी करने पर 10 साल की सजा का प्रावधान. यह गैर जमानती अपराध होगा.
  • धर्मांतरण और धर्मांतरण के बाद होने वाले विवाह के 2 महीने पहले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को धर्मांतरण और विवाह करने और करवाने वाले दोनों पक्षों को लिखित में आवेदन देना होगा.
  • बगैर आवेदन दिए धर्मांतरण करवाने वाले धर्मगुरु, काजी, मौलवी या पादरी को भी 5 साल तक की सजा का प्रावधान है.
  • धर्मांतरण और जबरन विवाह की शिकायत पीड़ित, माता- पिता, परिजन या गार्जियन द्वारा की जा सकती है.
  • सहयोग करने वालों को भी मुख्य आरोपी बनाया जाएगा. उन्हें अपराधी मानते हुए मुख्य आरोपी की तरह ही सजा होगी.
  • जबरन धर्मांतरण या विवाह कराने वाली संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जाएगा.
  • इस प्रकार के धर्मांतरण या विवाह कराने वाली संस्थाओं को डोनेशन देने वाली संस्थाएं या लेने वाली संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन भी रद्द होगा.
  • इस प्रकार के धर्मांतरण या विवाह में सहयोग करने वाले आरोपियों के विरुद्ध मुख्य आरोपी की तरह ही कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
  • अपने धर्म में वापसी करने पर इसे धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा.
  • पीड़ित महिला और पैदा हुए बच्चे को भरण-पोषण का हक हासिल करने का प्रावधान है.
  • आरोपी को ही निर्दोष होने के सबूत प्रस्तुत करना होगा.

9 जनवरी को हुई थी अधिसूचना जारी

बता दें 9 जनवरी को मध्‍य प्रदेश सरकार ने राजपत्र में धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक 2020 के लिए अधिसूचना जारी की थी. सरकार के इस कदम के साथ ही कथित 'लव जिहाद' के खिलाफ राज्य में सख्त कानून लागू हो गया. दिसंबर 2020 में शिवराज सिंह कैबिनेट ने मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक-2020 को मंजूरी दी थी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.