जबलपुर। त्योहारी सीजन में एक बार फिर प्याज लोगों के आंसू निकालने लगा है. मुनाफाखोरी की वजह से प्याज के दाम 70 से 80 रुपए प्रति किलो तक पहुंचे गई है. जबकि मंडी में प्याज के रेट 40 से 50 रुपए किलो तक हैं, लेकिन जैसे ही प्याज मंडी से निकलकर ग्राहकों तक पहुंचती है, तो इसके दाम 60 से 70 रुपए किलो तक हो जाते हैं और शहर के बाजारों में तो 80 से 90 रुपए किलो तक पहुंच गया है.
महाराष्ट्र से कम आवक कम होने के चलते बढ़े दाम
मंडी में प्याज की आवक सामान्य दिनों से अपेक्षाकृत कम है. आज जबलपुर मंडी में लगभग एक हजार बोरी प्याज पहुंची, लेकिन जबलपुर अकेला प्याज का उपभोक्ता नहीं है, बल्कि जबलपुर से आसपास के जिलों में भी प्याज भेजी जाती है. जबलपुर में प्याज का उत्पादन ना के बराबर है. जबलपुर के आसपास प्याज की खेती नरसिंहपुर और सागर में होती है, लेकिन यहां पर बरसात के मौसम में प्याज का उत्पादन नहीं किया जा सकता, इसलिए थोड़ी बहुत प्याज जो स्टोर में रखी रहती है. वह पहुंच पाती है, इसके अलावा जबलपुर में खंडवा से बड़ी मात्रा में प्याज आती है और इस मौसम में सबसे ज्यादा प्याज नासिक से आती है, क्योंकि महाराष्ट्र में कुछ इलाकों में बारिश कम होती है और यहां पर बरसात में भी प्याज की खेती की जाती है, लेकिन इस साल महाराष्ट्र से भी आवक कम होने की वजह से जबलपुर में प्याज के दाम बढ़े हुए हैं.
त्योहार में बिगड़ सकता है किचन का बजट
प्याज के बढ़ते दामों की वजह से लोगों की किचन का बजट बिगड़ गया है. जिस वजह से लोगों ने प्याज की खपत कम कर दी है. गृहणियों का कहना है कि, इतनी महंगी प्याज घर का बजट बिगाड़ देती है, इसलिए जब तक ब्याज सस्ती नहीं होती, तब तक वह इस्तेमाल कम करेंगे. फिलहाल दुर्गा उत्सव चल रहा है, इसलिए समाज का बड़ा तबका उपवास रखता है, इन दिनों में प्याज लहसुन और अदरक की खपत घट जाती है. ऐसी संभावना जताई जा रही है कि, दुर्गा उत्सव खत्म होने के बाद प्याज के दामों में एक बार फिर तेजी आएगी, प्याज 100 रुपये के ऊपर तक बिकने का अनुमान है.
दरअसल प्याज में मुनाफाखोरी बहुत ज्यादा है, मंडी में तो अभी भी 40 से 50 रुपए में प्याज बिक रही है, लेकिन मंडी से आम आदमी तक पहुंचाने की जो कड़ी है, वो मुनाफाखोरी के चक्कर में इसके दाम बढ़ाए हुए हैं. सरकार के पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं है, जिससे थोक मंडी से सीधे रिटेलर तक प्याज बेची जा सके. लॉकडाउन के समय सरकार ने प्याज और आलू बेचे थे. यदि ऐसा कुछ अभी भी किया जा सके, तो आम आदमी को थोड़ी राहत हो सकती है.