जबलपुर। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में मतदान करने के लिए युवा वोटर्स उत्साहित हैं. युवा इंजीनियर अमन नेम का कहना है कि वह पहली बार वोट करेंगे, इसके लिए वह बेहद उत्साहित हैं. अमन का कहना है कि वह किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं और वोट करने के पहले वह एक बार दोनों ही पार्टियों का मेनिफेस्टो जरूर देखेंगे. इस बात का भी अध्ययन करेंगे कि पिछले बार के मेनिफेस्टो में जो बातें कही गई थीं, वह पूरी हुई या नहीं. कॉलेज से हाल ही में पासआउट शिखा राय का कहना है कि वह ऐसे नेता को चुनना पसंद करेंगी जो उनके भविष्य को सुरक्षित करने की गारंटी दे. शिखा का कहना है कि बहुत से राजनीतिक दल जाति और धर्म की राजनीति कर रहे हैं लेकिन वह इसे सही नहीं मानती. हालांकि उन्होंने अपने कई साथियों को इस तरह की राजनीति से प्रभावित होते हुए देखा है.
मोदी व शिवराज पर अलग राय : जबलपुर के मानस भवन के पास युवाओं का जमावड़ा रहता है. हमने लगभग 15 लोगों से बात करने की कोशिश की. इनमें से केवल पांच लोगों ने ही अपनी राय जाहिर की और इनमें से मात्र एक युवा ने ही यह स्पष्ट बताया कि वह किसे वोट देगा. इस युवा की उम्र थी तो 21 साल लेकिन उसकी पढ़ाई मात्र दसवीं तक है. उसका कहना है उसे मोदी पसंद हैं. रविंद्र नाम के युवा की उम्र लगभग 23 साल है. इनका कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो काम किया है, उससे मध्य प्रदेश बहुत तरक्की नहीं कर पाया. जबकि देश के दूसरे राज्यों ने रोजगार और विकास के मामले में हमसे कहीं ज्यादा तरक्की की है. उन्होंने इशारों में बताया कि शिवराज सिंह को खूब मौका मिला. वह चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन उन्होंने नहीं किया.
सभी को वोटिंग का अधिकार गलत : दिल्ली में यूपीपीएससी की तैयारी कर रहे एक युवा ने अपना नाम तो नहीं बताया लेकिन उनका कहना है कि लोकतंत्र में एक समझदार का वोट और एक कम समझदार का वोट बराबर होता है. समाज में राजनीतिक सोच समझ रखने वाले लोगों की बहुत कमी है. ऐसी स्थिति का नेता फायदा उठा लेते हैं और राजनीति समझ रखने वाले लोग चुनाव में अक्सर हार जाते हैं. इसलिए वह वोट ही नहीं करेंगे. उनका मानना है कि इस व्यवस्था में कुछ परिवर्तन होना चाहिए. डॉ. पीयूष दीक्षित मेडिकल कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं. उनका कहना है कि वह वोट डालना चाहते हैं लेकिन उनके पास समय नहीं है. चुनाव आयोग को वोटिंग को ऑनलाइन करना चाहिए ताकि ऐसे लोग जो काम की वजह से बाहर हैं, वह भी अपना वोट डाल सकें.
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सरकार से भरोसा खत्म : कार सुधारने वाले दो युवाओं से बात करने पर पता चला कि उन्हें सरकार पर भरोसा नहीं है. इनका कहना है कि हमारे पास रोजगार है लेकिन जगह नहीं है. हम कहां काम करें. इन दोनों युवाओं का कहना था कि उनकी शिक्षा दसवीं तक है. यदि उन्हें पढ़ने का मौका मिलता तो वह भी कुछ बेहतर काम कर रहे होते. लीडरशिप वोट से चुनकर आती है और हम जिस समाज में रहते हैं, वह भावना प्रधान समाज है. यह बात नेता बखूबी जानते हैं. इसलिए राजनीतिक दलों के जरिए हम अक्सर ठगे जाते हैं. भावना के आगे हमारे मूल मुद्दे कहीं पीछे जाते हैं.