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MP Water Crisis: बूंद-बूंद पानी को तरस रहा मध्य प्रदेश का सांसद आदर्श ग्राम कोहला, 500 घरों के बीच लगे 2 हैंडपंप - सांसद आदर्श ग्राम में कोहला में पानी का कोहराम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी सांसदों को एक-एक गांव गोद लेकर उसके विकास के लिए संकल्प लेने की सलाह दी थी. इसके बाद सांसदों ने अपने-अपने गांव का चयन कर गोद भी लिया. मध्य प्रदेश के जबलपुर सांसद राकेश सिंह ने कोहला गांव को गोद लिया. मगर अब इस गांव में पानी की एक एक बूंद के लिए लोग तरस रहे हैं. देखें एमपी के सांसद ग्राम में पानी की कहानी.

MP Water Crisis
मध्य प्रदेश के सांसद आदर्श ग्राम में पानी की मारामारी
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Published : Jun 6, 2023, 7:27 PM IST

सांसद आदर्श ग्राम में कोहला में पानी का कोहराम

जबलपुर: गर्मियों के मौसम में आमतौर पर जल संकट के हालात तो गांव में नजर आते ही हैं, लेकिन किसी सांसद जैसे जिम्मेदार जनप्रतिनिधि के गोद लिए गांव में पानी के हालात भायावह हो तो इसे आप क्या कहेंगे! दरअसल, जबलपुर जिले के बरगी विधानसभा क्षेत्र के तहत आने वाले कोहला गांव के हालात कुछ इसी तरह के ही हैं. इस गांव को जबलपुर के सांसद और लोकसभा के मुख्य सचेतक राकेश सिंह ने गोद लिया था. बावजूद इसके इस गांव के तस्वीर नहीं बदल पाई है. गर्मियों के मौसम में यहां के हालात बदतर हो गए हैं. ग्रामीण अपनी प्यास बुझाने के लिए कई किलोमीटर का लंबा सफर तय करने के लिए मजबूर हैं. लेकिन कोहला गांव में मची पानी के हाहाकार को लेकर अब सिर्फ सियासत है निजात के उपाए नहीं.

आदर्श गांव बनाने का सपना धूधला पड़ा: यह उस गांव की तस्वीर है जिसे कभी आदर्श गांव बनाने का सपना दिखाया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर जबलपुर के सांसद राकेश सिंह ने बरगी क्षेत्र के कोहला गांव को गोद लिया और यहां मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने का वादा किया, लेकिन वर्षों बीत गए. यह गांव आज भी गोद से नहीं उतर पाया. नतीजा ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए भी रोजाना जद्दोजहद करनी पड़ती है. हालात यह बन गए हैं कि 2,000 की आबादी और करीब 500 घरों के बीच इस गांव में महज 2 हैंडपंप लगे हैं जो गर्मी के दिनों में दम तोड़ देते हैं. जिसके बाद ग्रामीणों को कई किलोमीटर पैदल चलकर तालाब से पानी लाना पड़ता है.

गांव के हालात राजनीति शुरू: कोहला गांव के हालात तो नहीं बदले लेकिन राजनीति जरूर होती है. बरगी विधानसभा क्षेत्र से आने वाले कांग्रेस के विधायक संजय यादव ने जहां सांसद पर गांव की अनदेखी का आरोप लगाया है. वहीं कांग्रेस विधायक संजय यादव का कहना है कि "गोद लेने के बावजूद भी गांव की तस्वीर नहीं बदली, जब सांसद से कहा तो उन्होने कहा कि उस गांव से कभी BJP को वोट नहीं मिला, लेकिन फिर भी हमने उस गांव को आदर्श बनाने का संकल्प किया था. थोड़ी जिम्मेदारी तो विधायक की भी बनती है, वो भी जन प्रतिनिधि हैं और जनता ने उन्हे भी गांव के विकास के लिए चुना है"

पानी के लिए दर-दर भटक रहा ये गांव: इस गांव की हालत देख ऐसा लगता है कि जनप्रतिनिधियों की रस्साकशी में इस गांव के ग्रामीणों ने भी अपनी उम्मीदों का गला घोंट दिया है. कुल मिलाकर कहा जाए तो जिम्मेदारी तो दोनों जनप्रतिनिधियों की बराबर बनती है. क्योंकि जिस गांव को आदर्श बनाने का संकल्प लिया. उस गांव में अगर पानी भी नहीं पहुंच पा रहा है तो यह बेहद चिंता की बात... वही विधायक चुनने के बावजूद भी कांग्रेस विधायक ने कभी उस गांव की तस्वीर बदलने की नहीं सोची... जिसका नतीजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है.

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मूलभूत सुविधाओं से वंचित गांव: जबलपुर से सांसद राकेश सिंह के गोद लेने से पहले आदिवासी बहुल गांव कोहला जैसा था आज भी वैसा ही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना था कि हर सांसद एक साल में एक गांव गोद लेकर वहां तमाम योजनाओं को धरातल पर उतारकर उसे मॉडल गांव बनाएं. सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गांवों में हर बुनियादी सुविधा का विस्तार करे बिजली, सड़क, पानी, स्कूल, पंचायत भवन, चौपाल, गोबर गैस प्लांट, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं का कर विस्तार इन गांवों में करने की योजना थी.

सांसदों और जिले के अफसरों को समय-समय पर गांवों में कैंप लगाकर उनकी मांगों पर गौर करने और शिकायतों को दूर करने के भी निर्देश थे. हालांकि इस गांव के हिस्से में एक अच्छी सड़क जरुर आई है. मगर पानी के मोर्चे पर यह गांव नाकाम और परेशान है, आलम यह है कि एक मात्र हैंडपंप के भरोसे गांव के 2 हजार से अधिक लोग पानी ले रहे हैं. दूर दराज क्षेत्रो से महिलांए और बच्चियां अपने शरीर को कष्ट देकर पानी ढ़ोती है.

सांसद आदर्श ग्राम में कोहला में पानी का कोहराम

जबलपुर: गर्मियों के मौसम में आमतौर पर जल संकट के हालात तो गांव में नजर आते ही हैं, लेकिन किसी सांसद जैसे जिम्मेदार जनप्रतिनिधि के गोद लिए गांव में पानी के हालात भायावह हो तो इसे आप क्या कहेंगे! दरअसल, जबलपुर जिले के बरगी विधानसभा क्षेत्र के तहत आने वाले कोहला गांव के हालात कुछ इसी तरह के ही हैं. इस गांव को जबलपुर के सांसद और लोकसभा के मुख्य सचेतक राकेश सिंह ने गोद लिया था. बावजूद इसके इस गांव के तस्वीर नहीं बदल पाई है. गर्मियों के मौसम में यहां के हालात बदतर हो गए हैं. ग्रामीण अपनी प्यास बुझाने के लिए कई किलोमीटर का लंबा सफर तय करने के लिए मजबूर हैं. लेकिन कोहला गांव में मची पानी के हाहाकार को लेकर अब सिर्फ सियासत है निजात के उपाए नहीं.

आदर्श गांव बनाने का सपना धूधला पड़ा: यह उस गांव की तस्वीर है जिसे कभी आदर्श गांव बनाने का सपना दिखाया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर जबलपुर के सांसद राकेश सिंह ने बरगी क्षेत्र के कोहला गांव को गोद लिया और यहां मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने का वादा किया, लेकिन वर्षों बीत गए. यह गांव आज भी गोद से नहीं उतर पाया. नतीजा ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए भी रोजाना जद्दोजहद करनी पड़ती है. हालात यह बन गए हैं कि 2,000 की आबादी और करीब 500 घरों के बीच इस गांव में महज 2 हैंडपंप लगे हैं जो गर्मी के दिनों में दम तोड़ देते हैं. जिसके बाद ग्रामीणों को कई किलोमीटर पैदल चलकर तालाब से पानी लाना पड़ता है.

गांव के हालात राजनीति शुरू: कोहला गांव के हालात तो नहीं बदले लेकिन राजनीति जरूर होती है. बरगी विधानसभा क्षेत्र से आने वाले कांग्रेस के विधायक संजय यादव ने जहां सांसद पर गांव की अनदेखी का आरोप लगाया है. वहीं कांग्रेस विधायक संजय यादव का कहना है कि "गोद लेने के बावजूद भी गांव की तस्वीर नहीं बदली, जब सांसद से कहा तो उन्होने कहा कि उस गांव से कभी BJP को वोट नहीं मिला, लेकिन फिर भी हमने उस गांव को आदर्श बनाने का संकल्प किया था. थोड़ी जिम्मेदारी तो विधायक की भी बनती है, वो भी जन प्रतिनिधि हैं और जनता ने उन्हे भी गांव के विकास के लिए चुना है"

पानी के लिए दर-दर भटक रहा ये गांव: इस गांव की हालत देख ऐसा लगता है कि जनप्रतिनिधियों की रस्साकशी में इस गांव के ग्रामीणों ने भी अपनी उम्मीदों का गला घोंट दिया है. कुल मिलाकर कहा जाए तो जिम्मेदारी तो दोनों जनप्रतिनिधियों की बराबर बनती है. क्योंकि जिस गांव को आदर्श बनाने का संकल्प लिया. उस गांव में अगर पानी भी नहीं पहुंच पा रहा है तो यह बेहद चिंता की बात... वही विधायक चुनने के बावजूद भी कांग्रेस विधायक ने कभी उस गांव की तस्वीर बदलने की नहीं सोची... जिसका नतीजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है.

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