नरसिंहपुर। जिले की मुख्य विधानसभा सीट जिसे नरसिंहपुर के नाम से ही जाना जाता है, कभी यह इलाका समाजवादियों का गढ़ था. हरि विष्णु कामत और ठाकुर निरंजन सिंह जैसे नेताओं ने यहां राजनीति की है. इस सीट पर बीजेपी के दिग्गज नेता व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद चुनावी मैदान में उतरे. प्रहलाद पटेल को उनको भाई जालम सिंह पटेल के स्थान पर टिकट देकर उतारा गया. वहीं प्रहलाद पटेल का मुख्य मुकाबला कांग्रेस के लाखन सिंह पटेल से है. लाखन सिंह पटेल को कमलनाथ का करीबी कहा जाता है. वर्तमान में इस सीट से जालम सिंह विधायक हैं. नतीजे बताएंगे की भाई की सीट को प्रहलाद पटेल यथावत रख पाते हैं या पहले ही विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री को हार मिलेगी.
नरसिंहपुर की आर्थिक गतिविधि: नरसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र जिले की मुख्य विधानसभा है. इसमें नरसिंहपुर और करेली तहसील के अलावा सैकड़ों गांव शामिल है. नरसिंहपुर जिले की आर्थिक गतिविधि खेती पर आधारित है. नरसिंहपुर गन्ना, गुड़, शक्कर, दलहन, तिलहन और गेहूं का बड़ा उत्पादक है. इस विधानसभा क्षेत्र में दो बड़ी मंडी है. इस विधानसभा क्षेत्र में ज्यादातर मुद्दे किसान और खेतिहर मजदूरों से जुड़े हुए हैं. नरसिंहपुर और करेली कस्बाई इलाके हैं. इनमें व्यापारियों और आम रहवासियों से जुड़े हुए मुद्दे भी कभी-कभी राजनीतिक रंग ले लेते हैं, लेकिन ज्यादा बड़े पैमाने पर खेती किसानी से जुड़े मुद्दे ही नरसिंहपुर विधानसभा में हावी रहते हैं. खेती किसानी के अलावा ग्रामीण इलाकों में अभी भी बुनियादी सुविधाओं के लिए लोग परेशान नजर आते हैं. हालांकि पीने की पानी की यहां ज्यादा समस्या नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री आवास को लेकर अभी भी गुंजाइश है. वहीं सबसे बुरी स्थिति ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य व्यवस्था की है. गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टर नहीं है. शिक्षा के नाम पर भी नरसिंहपुर जिला पिछड़ा हुआ है. यहां उच्च शिक्षा की ज्यादा व्यवस्था नहीं है. फिलहाल इस विधानसभा क्षेत्र में लगभग 6000 करोड़ रुपए लागत की माइक्रो इरिगेशन परियोजना का काम चल रहा है.
गन्ने के दाम: नरसिंहपुर विधानसभा की राजनीति में गन्ना एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है. गन्ने के दाम के बारे में ऐसा कहा जाता है कि गन्ने में शक्कर कम और राजनीति ज्यादा होती है. इसलिए यदि नरसिंहपुर विधानसभा में किसी नेता को विधायक बनके विधानसभा जाना है तो उसे गन्ना और गन्ने के दाम पर बात जरूर करनी होगी. दरअसल समस्या की जड़ राज्य सरकार की गन्ना नीति ना होना है. इसलिए शुगर मिल संचालक अपने मुनाफे के अनुसार गन्ने के दाम तय करते हैं. ऐसी स्थिति में स्थानीय विधायक को किसानों के साथ खड़े होकर आंदोलन करना पड़ता है और तब जाकर हर साल गन्ने के दाम तय हो पाते हैं. इसलिए नरसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र में हर चुनाव में नहीं बल्कि हर साल एक बार इस मुद्दे पर आंदोलन जरूर होता है.
बीते दो चुनावों की स्थिति: 2013 वर्तमान विधायक जालम सिंह के खिलाफ कांग्रेस से सुनील जायसवाल चुनाव मैदान में खड़े हुए थे और भारतीय जनता पार्टी के नेता विश्वास परिहार निर्दलीय खड़े हुए थे, लेकिन जालम सिंह ने दोनों को हराकर विधानसभा चुनाव जीत लिया था. 2018 में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों आमने-सामने थी. इस बार मुकाबला जालम सिंह और लाखन सिंह के बीच में था. जालम सिंह ने भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलाते हुए लाखन सिंह को लगभग 15000 वोटों से हरा दिया था.
2023 की परिस्थिति: नरसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए 2023 का विधानसभा चुनाव मौजूदा विधायक जालम सिंह पटेल के लिए कठिन है. जालम सिंह पटेल केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के छोटे भाई हैं. राजनीतिक बयानबाजी में इस बार इस बात की चर्चा ज्यादा जोरों पर है कि जालम सिंह के लिए चुनाव उनके लड़के मणि नागेंद्र सिंह मोनू की टीम लड़ा करती थी, लेकिन बीते दिनों मणि नागेंद्र सिंह का निधन हो गया और इसके बाद से इस विधानसभा में यह चर्चा तेज है कि जालम सिंह की ताकत कम हो गई है और उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस नेता लाखन सिंह लोधी ने इसका फायदा उठाया है. लाखन सिंह चुनाव हारने के बाद भी नरसिंहपुर विधानसभा में लगातार सक्रिय रहे. इस बार भी मुख्य मुकाबला इन दोनों के बीच ही होता हुआ नजर आ रहा है. हालांकि कांग्रेस की ओर से ही पूर्व विधायक सुनील जायसवाल और भारतीय जनता पार्टी की ओर से कई नए उम्मीदवार भी लाइन में हैं, लेकिन प्रहलाद पटेल के रुतबे की वजह से जालम सिंह की टिकट नहीं काटी जाएगी.
जालम सिंह को कांग्रेस से मिल सकती है टक्कर: जालम सिंह का जीतना या हारना प्रहलाद पटेल के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल खड़े करेगा. इसलिए भारतीय जनता पार्टी इस विधानसभा सीट पर अपनी पूरी ताकत झोंक देगी, हालांकि जालम सिंह के लिए कांग्रेस से जितना विरोध झेलना है, उससे कहीं ज्यादा पार्टी के भीतर के लोग भी जालम सिंह के लिए परेशानी खड़ी करेंगे. जालम सिंह की छवि यहां एक मददगार की थी, लेकिन लाखन सिंह ने भी बीते 5 सालों में बिल्कुल उसी तर्ज पर काम किया है, इसलिए 2023 का विधानसभा चुनाव का मुकाबला जोरदार होगा.