जबलपुर। कैंट विधानसभा क्षेत्र के वोटर स्थाई मतदाता हैं उन्होंने स्वतंत्रता के बाद से 1993 तक लगातार कांग्रेस को वोट दिया लेकिन 93 के बाद से उनकी आस्था भारतीय जनता पार्टी में जागी. इसलिए 1993 से लेकर अब तक यहां लगातार भारतीय जनता पार्टी के एक ही परिवार के सदस्य चुनाव जीते रहे हैं. जबलपुर की कैंट विधानसभा सीट मध्य प्रदेश की दूसरी विधानसभा सीटों से बिल्कुल अलग है यहां छोटा भारत नजर आता है और भारत भर के कई प्रांतों के लोग यहां रहते हैं इसलिए यहां की विकास के पैमाने भी अलग हैं
जबलपुर कैंट के मुद्दे: जबलपुर की कैंट विधानसभा क्षेत्र में हमें इंडिया और भारत अलग अलग नजर आता है. इस क्षेत्र का बड़ा शहरी क्षेत्र जिसमें रक्षा मंत्रालय के संस्थान हैं और सेना के ऑफिस और कॉलोनी हैं वहां विकास अपने उच्चतम स्तर पर है. यहां बिजली पानी सफाई जैसी बुनियादी सुविधाएं जरूरत से कुछ ज्यादा ही हैं और यह इलाका अंग्रेजों के समय से ही विकसित रहा है. वहीं दूसरी तरफ इसी विधानसभा में परिसीमन के बाद जुड़े हुए कुछ गांव और बिलहरी और रांझे इलाके की पुरानी कॉलोनियों में बिजली, पानी, सड़क, सफाई जैसे बुनियादी सुविधाएं पूरी नहीं हो पाई हैं. इन इलाकों में बुनियादी सुविधाओं के विस्तार की बहुत जरूरत है.
विधानसभा चुनाव परिणाम: राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो कैंट विधानसभा सीट पर 1993 से लेकर अब तक एक ही परिवार का कब्जा रहा है. 1993, 1998, 2003 से लेकर 2008 तक के विधानसभा चुनाव में इस विधानसभा सीट से ईश्वरदास रोहाणी चुनाव जीतते रहे. लगातार 20 सालों तक विधायक रहे. इस दौरान ईश्वरदास रोहाणी ने मध्यप्रदेश विधानसभा की अध्यक्षता भी की और कुछ समय के लिए वे मध्यप्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष भी रहे. अपने कार्यकाल के दौरान अपने प्रभाव के चलते उन्होंने विधानसभा में ऐसा प्रभाव छोड़ा कि उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र अशोक रोहाणी 2013 और 2018 के चुनाव में इस सीट से विधायक हैं. अशोक रोहाणी ने 2013 में कांग्रेस के उम्मीदवार चमन श्रीवास्तव को हराया था और पिछली विधानसभा में उन्होंने कांग्रेस नेता आलोक मिश्रा को लगभग 25, 000 वोट से हराया था.
2018 विधानसभा चुनाव: बीजेपी के अशोक रोहाणी ने कांग्रेस के उम्मीदवार आलोक मिश्रा 25, 000 वोट से हराया. ऐसा नहीं है कि यह सीट हमेशा से ही भारतीय जनता पार्टी की रही हो बल्कि 1993 तक इसमें हमेशा ही कांग्रेस जीतती रही है.
कैंट विधानसभा क्षेत्र के मतदाता: कैंट विधानसभा क्षेत्र में 91 हजार 191 पुरुष मतदाता हैं और 87 हजार 900 महिला मतदाता और 7 अन्य मिलाकर 1,79,098 मतदाता कैंट विधानसभा सीट के उम्मीदवार के भविष्य का फैसला तय करते हैं.
जातीय समीकरण: कैंट विधानसभा में जनसंख्या के दृष्टिकोण से देखा जाए तो किसी विशेष जाति या धर्म की जनसंख्या ज्यादा नहीं है बल्कि इस विधानसभा में देश भर की कई जातियों और धर्मों के लोग रहते हैं क्योंकि यहां अंग्रेजों के बनाए हुए चर्च थे और उन्हीं के साथ आए हुए लोग इस विधानसभा क्षेत्र में बसे हुए हैं. इसलिए इस विधानसभा क्षेत्र में एंग्लो-इंडियन क्रिश्चियन, तमिल, तेलुगू, बंगाली, पंजाबी, सिंधी, बिहारी और उत्तर प्रदेश से आए हुए लोग भी बसे हुए हैं. इसके साथ ही कैंट विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता मात्र 4% हैं. वहीं अनुसूचित जाति के लगभग 13% लोग यहां रहते हैं और अनुसूचित जनजाति के लगभग 6% लोग कैंट विधानसभा क्षेत्र में निवास करते हैं.
विधानसभा क्षेत्र के ज्यादातर मतदाता शिक्षित और पढ़े लिखे हैं क्योंकि कैंट विधानसभा क्षेत्र में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, साइंस कॉलेज, महाकौशल कॉलेज, जीएस कॉलेज के अलावा वेटरनरी कॉलेज और कई बड़े स्कूल है. इसके साथ ही ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, डाक विभाग, रेलवे विभाग जैसे कई सरकारी विभागों के रिटायर्ड कर्मचारी भी इसी विधानसभा क्षेत्र में रहते हैं इसलिए इस विधानसभा क्षेत्र को हम पढ़े लिखे लोगों का विधानसभा क्षेत्र कह सकते हैं.
वर्तमान राजनीतिक समीकरण: कैंट विधानसभा क्षेत्र में वर्तमान राजनीतिक समीकरण में भारतीय जनता पार्टी से अशोक रोहाणी ही एकमात्र विधायक पद के उम्मीदवार दिख रहे हैं क्योंकि कैंट विधानसभा में उन्होंने स्थानीय निकाय के चुनाव में भी कांग्रेस को बढ़त नहीं बनाने दी थी. वही कांग्रेस की ओर से संभावित उम्मीदवारों की लिस्ट में जबलपुर के वर्तमान महापौर जगत बहादुर अन्नू की पत्नी यामिनी सिंह आलोक मिश्रा चिंटू चौकसे और समीर दीक्षित का नाम चर्चा में है. भारतीय जनता पार्टी के अब तक के कई बड़े कार्यक्रम जिनमें लाडली बहना योजना की शुरुआत और अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का राष्ट्रीय कार्यक्रम का आयोजन भी इसी विधानसभा क्षेत्र में हुआ है और इसका कुछ असर जरूर विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं पर हुआ होगा.
आर्थिक समीकरण: कैंट विधानसभा में बड़े पैमाने पर नौकरीपेशा लोग रहते हैं वही बड़ी तादाद रिटायर लोगों की भी है वही गरीब आबादी भी नौकरी पेशा लोगों के आसपास ही अपने कामकाज करती है इसलिए इस विधानसभा में राज्य और केंद्र सरकार की नौकरी पेशा लोगों के लिए नीतियां मायने रखते हैं. इसलिए इस विधानसभा में पुरानी पेंशन, अग्निवीर, बेरोजगारी सरकारी भर्तियों की कमी जैसे मुद्दे असर डालेंगे. इस विधानसभा क्षेत्र में भी अशोक रोहिणी का चेहरा पुराना हो गया है और भारतीय जनता पार्टी में ही उनके खिलाफ हल्की फुल्की बगावत भी है लेकिन भारतीय जनता पार्टी के पास यहां उनके अलावा कोई दूसरा बड़ा विकल्प नहीं है. भारतीय जनता पार्टी ने भी अशोक रोहाणी को मंत्रालय में जगह ना देकर उनके कद को कमजोर किया है. वहीं यदि कांग्रेस ने किसी नए चेहरे पर दांव खेला तो बाजी पलट भी सकती है.