जबलपुर। 2020 के बाद जिन छात्र-छात्राओं ने नर्सिंग कोर्स में एडमिशन लिया था 3 साल बीत जाने के बाद भी अब तक लगभग ऐसे 20 हजार छात्र-छात्राओं की फर्स्ट ईयर की परीक्षा नहीं हो पाई है. अब तक इनका कोर्स ही खत्म हो जाना था. मध्य प्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर के अधिकारियों का कहना है कि फर्जी नर्सिंग कॉलेजों की जांच के मामले के कोर्ट में होने की वजह से वह परीक्षा नहीं करवा पा रहे हैं और इन छात्र-छात्राओं का भविष्य अधर में लटका हुआ है.
ये है पूरी कहानी: कहानी शुरू होती है 2020 से जब मध्यप्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की संख्या में अचानक से बाढ़ आ गई. जहां पहले 450 नर्सिंग कॉलेज थे वहां अचानक से यह संख्या 670 पर पहुंच गई और रातों-रात नर्सिंग कॉलेज खुल गए. भारतीय नर्सिंग काउंसिल की ओर से नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए सबसे पहली शर्त है कि कॉलेज के पास 100 बिस्तर का एक अस्पताल होना चाहिए और इसमें कम से कम 70% की ऑक्युपेंसी होनी चाहिए.
दूसरी महत्वपूर्ण शर्त है कि लगभग 23 हजार वर्ग फीट में कॉलेज की इमारत होनी चाहिए. एमबीबीएस और एमडी स्तर के शिक्षक होने चाहिए. इसके अलावा लैब और पुस्तकालय की व्यवस्था होनी चाहिए. जब यह शर्तें पूरी होंगी तभी नर्सिंग कोर्स में एक कॉलेज छात्रों को एडमिशन दे पाएगा. इन शर्तों को पूरा करने की जिम्मेवारी मध्य प्रदेश नर्सिंग काउंसिल की निगरानी में होगी. जब मध्य प्रदेश नर्सिंग काउंसिल कॉलेज को मान्यता देगा तभी वह एडमिशन ले पाएगा. इसमें एक रियायत थी कि अधिसूचित क्षेत्रों में 100 बिस्तर की अस्पताल की जगह सरकारी अस्पताल में नर्सिंग के छात्र प्रैक्टिस कर सकते हैं.
अधिसूचित क्षेत्रों में खुले फर्जी नर्सिंग कॉलेज: बस इसी रियायत का फायदा लेकर लोगों ने अधिसूचित क्षेत्रों में नर्सिंग कॉलेज खोल दिए और इन्हें मान्यता भी मिल गई. यहां बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ, जिसमें मान्यता देने वाली संस्थाओं के जिम्मेदार लोगों ने जमकर पैसा लूटा. 2019 में जहां मध्य प्रदेश में 460 नर्सिंग कॉलेज चल रहे थे वहीं अचानक से 2020 में इनकी संख्या 670 के करीब पहुंच गई. कुछ कॉलेज तो ऐसे थे जिनमें 1 दिन पहले मान्यता मिली और दूसरे दिन उनके छात्र परीक्षा देने के लिए आवेदन लेकर पहुंच गए.
फर्जीवाड़े का खुलासा: जब यह फर्जीवाड़ा बड़े पैमाने पर होने लगा तो कुछ लोगों ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में इसकी शिकायत की और एक जनहित याचिका दायर की गई. अब इस मामले में सीबीआई जांच चल रही है और अब तक लगभग 200 कॉलेज बंद किए जा चुके हैं. अभी भी 70 कॉलेज के ऊपर गाज गिरनी बाकी है. लेकिन इसमें संकट खड़ा हुआ उन बच्चों के ऊपर जिन्होंने 2020 और 21 के दरमियान बीएससी नर्सिंग में एडमिशन लिया था. 3 साल बीत जाने के बाद भी इन छात्रों की परीक्षाएं नहीं हुई हैं और यह अभी भी फर्स्ट ईयर में ही हैं. ऐसे पीड़ित छात्रों की संख्या 20 हजार से ज्यादा है.
अधर में भविष्य: इन छात्रों को बंद हुए कालेजों से निकालकर नियमित कॉलेजों में भेजने की तैयारी की जा रही है. जबलपुर आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. पुष्प राज बघेल का कहना है कि क्योंकि मामला मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में लंबित है इसलिए वे चाह कर भी इन बच्चों की तुरंत परीक्षा नहीं ले सकते. जैसा कोर्ट कहेगा उसी ढंग से इन बच्चों की परीक्षा की व्यवस्था की जाएगी. इसमें कुछ छात्र ऐसे भी थे जिन्होंने केवल पैसा देकर डिग्री पाने की कोशिश की. लेकिन इसमें बड़े पैमाने पर वह छात्र भी हैं जो गंभीरता से पूरी सुविधा से युक्त कॉलेजों में एडमिशन ले कर पढ़ाई करना चाहते थे.