जबलपुर। धर्मांतरण के मामले में जबलपुर डीआईओएस के विषप तथा कटनी में संचालित आशा किरण बाल गृह में पदस्थ सिस्टर को हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत का लाभ मिला है. हाईकोर्ट जस्टिस विशाल घगट ने अपने आदेश में कहा है कि गैर व्यक्ति की शिकायत पर प्रकरण दर्ज करना पुलिस के क्षेत्राधिकार में नहीं है. जबलपुर डिओसेस के विषप जेराल्ड अल्मेडा तथा सिस्टर लीजी जोसेफ की तरफ से कटनी जिले के माधवनगर पुलिस थाने में मप्र धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम तथा जुवेनाइल जस्सि एक्ट के तहत दर्ज अपराधिक प्रकरण में अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी.
जबरन धर्मांतरण का आरोप: याचिका में कहा गया था कि जबलपुर DIOS के अंतर्गत कटनी जिले में आशा किरण बाल गृह का संचालन किया जाता है. रेलवे विभाग द्वारा बाल गृह संचालित करने के लिए भूमि व बिल्डिंग प्रदान की गयी है. शिकायतकर्ता प्रिरंक काननूगो 29 मई को निरिक्षण के लिए बाल गृह पहुंचे थे. उनकी तरफ से थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई गयी कि बाल गृह में बच्चों को जबरन ईसाई प्रार्थना करवाई जाती है. बाइबल पढ़ाई जाती है और चर्च जाने को मजबूर किया जाता है और दिवाली नहीं मनाने दी जाती है. प्रिरंक की शिकायत पर पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर लिया था.
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पीड़ित या परिजन कर सकता है शिकायत: याचिका में कहा गया था कि देखभाल संस्थान के निरिक्षण को प्रावधान धारा 54 के तहत है. निरिक्षण दल में तीन लोग होना चाहिए, जिसमें से एक महिला तथा एक चिकित्सक अधिकारी होना चाहिए. मप्र धर्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत धर्मांतरण की शिकायत लिखित में होनी चाहिए, शिकायत पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई-बहन कर सकते हैं. इसके अलावा न्यायालय की अनुमति से जिनके बीच खून का रिश्ता हो ,शादी हो, गोद लेने वाला या संरक्षक कर सकता है. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि देखभाल संस्था में बच्चों को धार्मिंक शिक्षा नहीं बल्कि आधुनिक शिक्षा प्रदान की जाए. लिखित शिकायत नहीं देने पर धर्मांतरण का प्रकरण दर्ज करना पुलिस के अधिकार क्षेत्र में नहीं है.