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MP High Court News जानें कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा कि सूचना आयुक्त पर लगाया जाए जुर्माना

अपने एक आदेश में राज्य सूचना आयुक्त ने जिला कलेक्टर को निर्देशित किया था कि याचिकाकर्ता शिक्षक होते हुए बदनियति से सूचना के अधिकार अधिनियम का दुरूपयोग कर रहा है. इसलिए उसके खिलाफ विभागीय जांच की जाए. याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि सूचना के अधिकार अधिनियम में आयुक्त के पास आवेदक को दंडित करने का अधिकार नहीं है.

MP High Court News
सूचना आयुक्त पर जुर्माना
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Published : Dec 8, 2022, 9:48 PM IST

जबलपुर। राज्य सूचना आयुक्त द्वारा जिला कलेक्टर को विभागीय जांच के निर्देश जारी किए जाने के खिलाफ एक शिक्षक ने हाईकोर्ट की शरण ली थी. हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल ने किस प्रवाधान के तहत विभागीय जांच की अनुशंसा की गई इसके संबंध में राज्य सूचना आयुक्त से शपथ-पत्र में जवाब मांगा है. कोर्ट ने पूछा है कि क्यो ना सूचना आयुक्त पर जुर्माना लगाते हुए याचिकाकर्ता को क्षतिपूर्ति दिलवाई जाए. याचिका पर 4 सप्ताह बाद सुनवाई निर्धारित की गई है.

यह है मामला: टीकमगढ निवासी शिक्षक विवेकानंद मिश्रा की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से जानकारी मांगी थी. निर्धारित समय पर जानकारी नहीं मिलने पर उन्होंने सीईओ जिला पंचायत के समक्ष प्रथम अपील दायर की थी. इसके बावजूद भी जानकारी नहीं मिलने पर उन्होंने राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष द्वितीय अपील पेश की थी. जिसकी सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने याचिकाकर्ता को 30 दिनों में जानकारी उपलब्ध करवाने के निर्देश दिये थे. आदेश का परिपालन नहीं होने पर धारा 20 के तहत शासन को आरोपित करने की चेतावनी दी थी. इसी आदेश में राज्य सूचना आयुक्त ने जिला कलेक्टर को निर्देशित किया था कि याचिकाकर्ता शिक्षक होते हुए बदनियति से सूचना के अधिकार अधिनियम का दुरूपयोग कर रहा है. इसलिए उसके खिलाफ विभागीय जांच की जाए. याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि सूचना के अधिकार अधिनियम में आयुक्त के पास आवेदक को दंडित करने का अधिकार नहीं है. सूचना अधिकारी या आयुक्त आवेदक की समुचित सहायता करेगा, लेकिन राज्य सूचना आयुक्त द्वारा पारित आदेश मनमानी पूर्ण व कानून का उल्लंधन है. कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के बाद उक्त आदेश जारी किया है.

डारेक्टर प्रॉसिक्यूशन की हुई नियुक्ति, नहीं मिले अधिकार: न्यायालयो में लंबित आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष की पैरवी के लिए पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की नियुक्ति से संबंधित संज्ञान याचिका सहित अन्य याचिकाओं की सुनवाई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की बेंच ने की. सुनवाई के दौरान युगलपीठ को बताया गया कि डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन की नियुक्ति कर दी गयी है, परंतु उन्हें किसी प्रकार के अधिकार नहीं दिये गये हैं. केन्द्र व राज्य सरकार के द्वारा नियुक्तियों के विचाराधीन तथा रिक्त पद के संबंध में जानकारी प्रस्तुत करते समय अधिकार प्रदान करने का आग्रह किया. युगलपीठ ने आग्रह को स्वीकार करते हुए याचिका पर 13 दिसम्बर को अंतिम सुनवाई के निर्देश दिए हैं.

यह है मामला: अधारताल निवासी ज्ञानप्रकाश की तरफ से दायर याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया था कि राज्य सरकार द्वारा नियमों की अनदेखी करके डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर नियुक्ति नहीं की जा रही, जो अवैधानिक है. पूर्व में राज्य सरकार द्वारा एक आईएएस की नियुक्ति इंचार्ज डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर किए जाने को भी याचिकाकर्ता ने कटघरे में रखा था. याचिका में हाईकोर्ट ऑफ मध्य प्रदेश केस फ्लो मैनेजमेंट रूल्स 2006 का हवाला देते हुए कहा गया था कि रिट पिटीशनों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक और नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं. इसी तरह क्रिमिनल मामलों में फांसी की सजा, रेप और दहेज हत्या जैसे मामलों के लिए एक्सप्रेस ट्रैक, जिन मामलों में आरोपी को जमानत नहीं मिली उसके लिए फास्ट ट्रैक, ऐसे संवेदनशील मामले जिनमें कई लोग प्रभावित हो रहे हों उनके लिए रैपिड ट्रैक, विशेष कानून के तहत आने वाले मुकदमों के लिए ब्रिस्क ट्रैक और शेष सभी सामान्य अपराधों के लिए नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं.

याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 2006 में बने कानून में तय किए गए ट्रैक्स का पालन नहीं हो रहा. हाईकोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए मामले की सुनवाई करने के निर्देश दिये थे. इसके अलावा दो अन्य याचिकाएं भी दायर की गयी थीं. केन्द्र सरकार की तरफ से प्रस्तुत जवाब में कहा गया था कि सीबीआई,रेलवे सहित अन्य विभागों को यह नियुक्तियां करनी हैं. पूर्व में सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार को कई अवसर दिये जाने के बावजूद भी जवाब पेश नहीं किये जाने को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने 25 हजार रूपये का जुर्माना लगाया था. युगलपीठ ने केन्द्र सरकार के संबंधित विभाग को जवाब पेश करने के निर्देश दिये थे.


इससे पहले भी कोर्ट ने राज्य सरकार से कितने न्यायालयों में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त हैं. इसके अलावा जिला अभियोजन अधिकारी,सहायक जिला अभियोजन अधिकारी,उप जिला अभियोजन अधिकारी की नियुक्ति,पेनल लॉयर के लोक अभियोजक अधिकारी के रूप में उपस्थित होने सहित 6 बिन्दुओं पर जवाब मांगा था. याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने बताया कि राज्य सरकार ने डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन की नियुक्ति कर दी है परंतु उसे किसी प्रकार के अधिकार नहीं दिये हैं. जिसके कारण पब्लिक प्रॉस्क्यिूटरों की नियुक्तिां नहीं की गई हैं. युगलपीठ ने केन्द्र व राज्य सरकार को नियुक्ति के विचाराधिन तथा रिक्त पदों की संख्या के संबंध में जानकारी पेश करने के निर्देश दिये हैं.

जबलपुर। राज्य सूचना आयुक्त द्वारा जिला कलेक्टर को विभागीय जांच के निर्देश जारी किए जाने के खिलाफ एक शिक्षक ने हाईकोर्ट की शरण ली थी. हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल ने किस प्रवाधान के तहत विभागीय जांच की अनुशंसा की गई इसके संबंध में राज्य सूचना आयुक्त से शपथ-पत्र में जवाब मांगा है. कोर्ट ने पूछा है कि क्यो ना सूचना आयुक्त पर जुर्माना लगाते हुए याचिकाकर्ता को क्षतिपूर्ति दिलवाई जाए. याचिका पर 4 सप्ताह बाद सुनवाई निर्धारित की गई है.

यह है मामला: टीकमगढ निवासी शिक्षक विवेकानंद मिश्रा की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से जानकारी मांगी थी. निर्धारित समय पर जानकारी नहीं मिलने पर उन्होंने सीईओ जिला पंचायत के समक्ष प्रथम अपील दायर की थी. इसके बावजूद भी जानकारी नहीं मिलने पर उन्होंने राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष द्वितीय अपील पेश की थी. जिसकी सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने याचिकाकर्ता को 30 दिनों में जानकारी उपलब्ध करवाने के निर्देश दिये थे. आदेश का परिपालन नहीं होने पर धारा 20 के तहत शासन को आरोपित करने की चेतावनी दी थी. इसी आदेश में राज्य सूचना आयुक्त ने जिला कलेक्टर को निर्देशित किया था कि याचिकाकर्ता शिक्षक होते हुए बदनियति से सूचना के अधिकार अधिनियम का दुरूपयोग कर रहा है. इसलिए उसके खिलाफ विभागीय जांच की जाए. याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि सूचना के अधिकार अधिनियम में आयुक्त के पास आवेदक को दंडित करने का अधिकार नहीं है. सूचना अधिकारी या आयुक्त आवेदक की समुचित सहायता करेगा, लेकिन राज्य सूचना आयुक्त द्वारा पारित आदेश मनमानी पूर्ण व कानून का उल्लंधन है. कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के बाद उक्त आदेश जारी किया है.

डारेक्टर प्रॉसिक्यूशन की हुई नियुक्ति, नहीं मिले अधिकार: न्यायालयो में लंबित आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष की पैरवी के लिए पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की नियुक्ति से संबंधित संज्ञान याचिका सहित अन्य याचिकाओं की सुनवाई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की बेंच ने की. सुनवाई के दौरान युगलपीठ को बताया गया कि डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन की नियुक्ति कर दी गयी है, परंतु उन्हें किसी प्रकार के अधिकार नहीं दिये गये हैं. केन्द्र व राज्य सरकार के द्वारा नियुक्तियों के विचाराधीन तथा रिक्त पद के संबंध में जानकारी प्रस्तुत करते समय अधिकार प्रदान करने का आग्रह किया. युगलपीठ ने आग्रह को स्वीकार करते हुए याचिका पर 13 दिसम्बर को अंतिम सुनवाई के निर्देश दिए हैं.

यह है मामला: अधारताल निवासी ज्ञानप्रकाश की तरफ से दायर याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया था कि राज्य सरकार द्वारा नियमों की अनदेखी करके डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर नियुक्ति नहीं की जा रही, जो अवैधानिक है. पूर्व में राज्य सरकार द्वारा एक आईएएस की नियुक्ति इंचार्ज डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर किए जाने को भी याचिकाकर्ता ने कटघरे में रखा था. याचिका में हाईकोर्ट ऑफ मध्य प्रदेश केस फ्लो मैनेजमेंट रूल्स 2006 का हवाला देते हुए कहा गया था कि रिट पिटीशनों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक और नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं. इसी तरह क्रिमिनल मामलों में फांसी की सजा, रेप और दहेज हत्या जैसे मामलों के लिए एक्सप्रेस ट्रैक, जिन मामलों में आरोपी को जमानत नहीं मिली उसके लिए फास्ट ट्रैक, ऐसे संवेदनशील मामले जिनमें कई लोग प्रभावित हो रहे हों उनके लिए रैपिड ट्रैक, विशेष कानून के तहत आने वाले मुकदमों के लिए ब्रिस्क ट्रैक और शेष सभी सामान्य अपराधों के लिए नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं.

याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 2006 में बने कानून में तय किए गए ट्रैक्स का पालन नहीं हो रहा. हाईकोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए मामले की सुनवाई करने के निर्देश दिये थे. इसके अलावा दो अन्य याचिकाएं भी दायर की गयी थीं. केन्द्र सरकार की तरफ से प्रस्तुत जवाब में कहा गया था कि सीबीआई,रेलवे सहित अन्य विभागों को यह नियुक्तियां करनी हैं. पूर्व में सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार को कई अवसर दिये जाने के बावजूद भी जवाब पेश नहीं किये जाने को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने 25 हजार रूपये का जुर्माना लगाया था. युगलपीठ ने केन्द्र सरकार के संबंधित विभाग को जवाब पेश करने के निर्देश दिये थे.


इससे पहले भी कोर्ट ने राज्य सरकार से कितने न्यायालयों में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त हैं. इसके अलावा जिला अभियोजन अधिकारी,सहायक जिला अभियोजन अधिकारी,उप जिला अभियोजन अधिकारी की नियुक्ति,पेनल लॉयर के लोक अभियोजक अधिकारी के रूप में उपस्थित होने सहित 6 बिन्दुओं पर जवाब मांगा था. याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने बताया कि राज्य सरकार ने डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन की नियुक्ति कर दी है परंतु उसे किसी प्रकार के अधिकार नहीं दिये हैं. जिसके कारण पब्लिक प्रॉस्क्यिूटरों की नियुक्तिां नहीं की गई हैं. युगलपीठ ने केन्द्र व राज्य सरकार को नियुक्ति के विचाराधिन तथा रिक्त पदों की संख्या के संबंध में जानकारी पेश करने के निर्देश दिये हैं.

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