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निचली अदालतें दबाव में हैं सामान्य मामलों में भी जमानत देने से डरती हैं: जस्टिस श्रीधरन

एक वेबीनार में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन ने कहा कि निचली अदालतें इतने दबाव में हैं कि सामान्य मामलों में भी जमानत नहीं देती. उन्होंने जजों की कमी और मध्यप्रदेश में पुलिसकर्मियों के कम पदों पर भी सवाल खड़े किए हैं.

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जस्टिस श्रीधरन
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Published : Jan 18, 2021, 9:35 PM IST

जबलपुर : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जज अतुल श्रीधरन ने एक वेबीनार में हिस्सा लेते हुए इस बात पर दुख जताया है कि सिस्टम की कमजोरी की वजह से सामान्य मामलों में लोगों को जमानत नहीं मिल पा रही है. किसी भी व्यक्ति को जब तक बहुत जरूरी नहीं है तब तक जेल में नहीं रखा जाना चाहिए, हां अगर कोई इन्वेस्टिगेशन में साथ नहीं दे रहा है तो उस स्थिति में उसे जेल में रखा जाए. लेकिन अगर ऐसी नहीं है तो किसी भी शख्स को जमानत मिल जानी चाहिए.

'निचली अदालतें जमानत देने में डरती हैं'

जस्टिस श्रीधरन का कहना है कि पहले निचली अदालत जमानत दे देती थी और लोगों को बेवजह हाईकोर्ट के चक्कर नहीं लगाने पड़ते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है, हाईकोर्ट के 10 में से 8 मामले जमानत के ही होते हैं. अतुल श्रीधरन ने निचली अदालतों में काम करने वाले न्यायाधीशों पर दबाव की बात स्वीकारते हुए कहा कि निचली अदालत दबाव में लोगों को जमानत नहीं दे पा रही हैं. क्योंकि निचली अदालतें जमानत देने में डरती हैं. कुछ मामलों में निचली अदालतों में बैठे हुए जजों के खिलाफ कार्रवाई हो गई, इसलिए निचली अदालतों ने जमानत देना बंद कर दिया है और लोगों को हाईकोर्ट के चक्कर काटने पड़ते हैं. हाईकोर्ट में केस की पेंडेंसी बहुत ज्यादा है, इसलिए बहुत से लोग जमानत का लाभ जल्द नहीं उठा पाते. जस्टिस श्रीधरन का कहना है कि जजों को विवेक संपन्न होना चाहिए.

बुरहानपुर 600 किलोमीटर दूर है हाईकोर्ट से

जस्टिस अतुल श्रीधरन का कहना है दिल्ली से कराची तक की दूरी भी इतनी नहीं है जितनी बुरहानपुर से जबलपुर हाईकोर्ट की है. अगर बुरहानपुर में जिला अदालत ने किसी का केस खारिज कर दिया है और उसे अपील करने हाईकोर्ट जाना है तो फरियादी की पीड़ा और ज्यादा बढ़ जाती है. क्योंकि बुरहानपुर से जबलपुर की दूरी लगभग 600 किलोमीटर है और ऐसे हालात में दूरी की वजह से न्याय प्रभावित हो जाता है.

पुलिस की कमी पर भी सवाल

राम मनोहर लोहिया लॉ यूनिवर्सिटी के वेबीनार में जस्टिस अतुल श्रीधरण ने दमोह जिले का उदाहरण देते हुए कहा दमोह जिले में लगभग 12 लाख की आबादी पर 20000 पुलिसकर्मी होने चाहिए लेकिन यहां मात्र 7000 पुलिसकर्मी ही हैं. इनमें से ज्यादातर पुलिसकर्मी लॉ एंड ऑर्डर में लगे रहते हैं. कुछ वीआईपी ड्यूटी में लगे रहते हैं. बहुत कम अधिकारियों के पास अपराधों की जांच करने का समय होता है और इसकी वजह से न्याय में देरी होती है. जस्टिस श्रीधरन का कहना है कि यह स्थिति केवल दमोह की नहीं है बल्कि पूरे मध्यप्रदेश के ये ही हाल हैं.
सरकार पर सवाल खड़े कर गए जस्टिस !

अक्सर हाईकोर्ट के जज सार्वजनिक मंच से ऐसी टिप्पणियां करने से बचते हैं. लेकिन अतुल श्रीधरन ने न्याय व्यवस्था की वस्तुस्थिति को स्पष्ट कर सरकार पर सवाल खड़ा किया है कि आखिर सरकार ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं करती कि लोगों को जल्द न्याय मिल सके. अभी भी कई जजों के साथ ही पुलिस में भी पद खाली हैं और इसकी वजह से कई बेगुनाह जेलों में पड़े हुए हैं.

जबलपुर : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जज अतुल श्रीधरन ने एक वेबीनार में हिस्सा लेते हुए इस बात पर दुख जताया है कि सिस्टम की कमजोरी की वजह से सामान्य मामलों में लोगों को जमानत नहीं मिल पा रही है. किसी भी व्यक्ति को जब तक बहुत जरूरी नहीं है तब तक जेल में नहीं रखा जाना चाहिए, हां अगर कोई इन्वेस्टिगेशन में साथ नहीं दे रहा है तो उस स्थिति में उसे जेल में रखा जाए. लेकिन अगर ऐसी नहीं है तो किसी भी शख्स को जमानत मिल जानी चाहिए.

'निचली अदालतें जमानत देने में डरती हैं'

जस्टिस श्रीधरन का कहना है कि पहले निचली अदालत जमानत दे देती थी और लोगों को बेवजह हाईकोर्ट के चक्कर नहीं लगाने पड़ते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है, हाईकोर्ट के 10 में से 8 मामले जमानत के ही होते हैं. अतुल श्रीधरन ने निचली अदालतों में काम करने वाले न्यायाधीशों पर दबाव की बात स्वीकारते हुए कहा कि निचली अदालत दबाव में लोगों को जमानत नहीं दे पा रही हैं. क्योंकि निचली अदालतें जमानत देने में डरती हैं. कुछ मामलों में निचली अदालतों में बैठे हुए जजों के खिलाफ कार्रवाई हो गई, इसलिए निचली अदालतों ने जमानत देना बंद कर दिया है और लोगों को हाईकोर्ट के चक्कर काटने पड़ते हैं. हाईकोर्ट में केस की पेंडेंसी बहुत ज्यादा है, इसलिए बहुत से लोग जमानत का लाभ जल्द नहीं उठा पाते. जस्टिस श्रीधरन का कहना है कि जजों को विवेक संपन्न होना चाहिए.

बुरहानपुर 600 किलोमीटर दूर है हाईकोर्ट से

जस्टिस अतुल श्रीधरन का कहना है दिल्ली से कराची तक की दूरी भी इतनी नहीं है जितनी बुरहानपुर से जबलपुर हाईकोर्ट की है. अगर बुरहानपुर में जिला अदालत ने किसी का केस खारिज कर दिया है और उसे अपील करने हाईकोर्ट जाना है तो फरियादी की पीड़ा और ज्यादा बढ़ जाती है. क्योंकि बुरहानपुर से जबलपुर की दूरी लगभग 600 किलोमीटर है और ऐसे हालात में दूरी की वजह से न्याय प्रभावित हो जाता है.

पुलिस की कमी पर भी सवाल

राम मनोहर लोहिया लॉ यूनिवर्सिटी के वेबीनार में जस्टिस अतुल श्रीधरण ने दमोह जिले का उदाहरण देते हुए कहा दमोह जिले में लगभग 12 लाख की आबादी पर 20000 पुलिसकर्मी होने चाहिए लेकिन यहां मात्र 7000 पुलिसकर्मी ही हैं. इनमें से ज्यादातर पुलिसकर्मी लॉ एंड ऑर्डर में लगे रहते हैं. कुछ वीआईपी ड्यूटी में लगे रहते हैं. बहुत कम अधिकारियों के पास अपराधों की जांच करने का समय होता है और इसकी वजह से न्याय में देरी होती है. जस्टिस श्रीधरन का कहना है कि यह स्थिति केवल दमोह की नहीं है बल्कि पूरे मध्यप्रदेश के ये ही हाल हैं.
सरकार पर सवाल खड़े कर गए जस्टिस !

अक्सर हाईकोर्ट के जज सार्वजनिक मंच से ऐसी टिप्पणियां करने से बचते हैं. लेकिन अतुल श्रीधरन ने न्याय व्यवस्था की वस्तुस्थिति को स्पष्ट कर सरकार पर सवाल खड़ा किया है कि आखिर सरकार ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं करती कि लोगों को जल्द न्याय मिल सके. अभी भी कई जजों के साथ ही पुलिस में भी पद खाली हैं और इसकी वजह से कई बेगुनाह जेलों में पड़े हुए हैं.

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