जबलपुर। हाईकोर्ट द्वारा लगाई गयी 30 हजार रूपये की कॉस्ट (जुर्माना) राषि जमा करने के लिए प्रदेश के मुख्य सचिव, नगरीय प्रशासन व विकास विभाग के प्रमुख सचिव तथा कलेक्टर व एसपी भोपाल ने सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दायर की है. याचिका की सुनवाई के दौरान जानकारी हाईकोर्ट जस्टिस शील नागू तथा जस्टिस वीरेन्द्र सिंह को दी गई. युगलपीठ ने याचिका पर अगली सुनवाई दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह में निर्धारित की है.
यह है मामला: भोपाल के टीटी नगर लिंक रोड पर चौक के बीचों-बीच प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की दस फिट की मूर्ति लगाए जाने को जबलपुर निवासी जीजैन ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. याचिका में यातायात और ट्रैफिक व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा गया था कि जिस स्थान से शहीद चन्द्रशेखर आजाद की मूर्ति पूर्व में हटाई गई थी वहीं पर अब पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की मूर्ति स्थापित की जा रही है. याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में आदेश पारित किया था कि सार्वजनिक सडकों,फुटपाथ,साइड-वे तथा जनमानस के उपयोग में आने वाली भूमि पर मूर्ति स्थापित करने की अनुमत्ति नहीं दी जाए. याचिका में प्रदेश के मुख्य सचिव, नगरीय प्रशासन व विकास विभाग के प्रमुख सचिव तथा कलेक्टर व एसपी भोपाल को अनावेदक बनाया गया था.
प्रशासन ने दिया यह जवाब: याचिका की सुनवाई के दौरान पेश किये गये जवाब में शासन की तरफ से कहा गया था कि याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी है और पेशे से अधिवक्ता है. सस्ती लोकप्रियता हासिल करने तथा एक विशेष एंजेडे को लेकर उनकी तरफ से याचिका दायर की गयी है. जिस स्थान पर शहीद चंदशेखर आजाद की मूर्ति लगाई थी, उस स्थान से अलग पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की प्रतिमा लगाई गयी है जो यातायात में बाधक नहीं है. युगलपीठ ने 3 मार्च 2022 को पारित आदेश में मूर्ति को हटाने का आदेश जारी करते हुए प्रशासनिक अधिकारियों पर 30 हजार रूपये की कॉस्ट भी लगाई थी. डबलबेंच नेे अपने आदेश में कहा था कि कॉस्ट की राषि चारों अनावेदक एक साथ जमा करेंं. युगलपीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता की छवि धूमिल करने के लिए दस हजार रूपये की राशि उसे प्रदान करने तथा 20 हजार रूपये की राशि विधिक सहायता प्राधिकरण में जमा करने के निर्देष जारी किये थे. कॉस्ट की राशि जमा करने के लिए न्यायालय ने 30 दिनों का समय दिया था. जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर की गयी थी. युगलपीठ ने सुनवाई के बाद 6 मई को रिव्यू याचिका खारिज कर दी थी. इस दौरान पिटीशन फाइल करने वाले अधिकारियों ने कॉस्ट की राशि जमा करने के लिए 4 सप्ताह की मोहलत मांगी थी. अब अनावेदक इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुके हैं.