जबलपुर। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कुछ महीने शेष हैं. राज्य की दोनों पार्टी बीजेपी और कांग्रेस जमीनी स्तर पर काम करने में जुट गई हैं. वहीं, जबलपुर में दोनों ही पार्टियों के काम करने के तरीके में बदलाव आया है. बीजेपी मास बेस पॉलिटिक्स करने लगी है तो, वहीं कांग्रेस अपना कैडर मजबूत करने में लगी हैं. कर्नाटक चुनाव में हार के बाद बीजेपी में जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की पूछ परख बढ़ गई है. दोनों ही पार्टियां बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को चुनावी समर के लिए तैयार कर रही हैं.
एमपी चुनाव में कार्यकर्ता का रोल अहम: कांग्रेस बीते कई वर्षों से मास बेस पॉलिटिक्स करती रही है. कांग्रेस में एक भीड़ तंत्र काम करता था. जिस नेता के पीछे ज्यादा लोग नजर आते थे उसे नेता चुन लिया जाता था. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लखन घनघोरिया का कहना है कि "कांग्रेस में बीते कुछ सालों तक मास बेस पॉलिटिक्स का ही सिलसिला चलता रहा, लेकिन 2018 के चुनाव के साथ कांग्रेस ने कैडर पर ध्यान दिया और अब कांग्रेस अपने कैडर को मजबूत करने की कवायत कर रही है. इसलिए जब मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह जबलपुर आए तो उन्होंने मंडल और बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की विधानसभा वार बैठक ली. इसमें कांग्रेस कोशिश कर रही है कि बूथ के जिम्मेदारों को मजबूत बनाया जाए, ताकि जमीनी लड़ाई में यह कार्यकर्ता चुनाव के दौरान मुस्तैद नजर आएं."
बूथ स्तर पर हो रही है मीटिंग: भारतीय जनता पार्टी हमेशा से ही कैडर बेस पॉलिटिक्स करती रही है और कार्यकर्ता को मजबूत बनाती रही है, लेकिन बीते कुछ समय से भारतीय जनता पार्टी में भी कुछ वजनदार नेताओं की प्रसिद्धि की वजह से कैडर कमजोर हुआ है. नेताओं की ताकत संगठन पर भारी पड़ी. इसके चलते भारतीय जनता पार्टी के संगठन में कमजोरी समझ में आई, इसलिए जबलपुर के सांसद राकेश सिंह, राज्यसभा सांसद सुमित्रा बाल्मीकि जैसे बड़े पदों पर बैठे नेता भी अब जबलपुर के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की छोटी-छोटी बैठकों में हिस्सा ले रहे हैं. कार्यकर्ताओं को चुनावी समर के लिए तैयार कर रहे हैं.
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छोटे कार्यकर्ताओं की बढ़ी पूछ परख: कांग्रेस विधायक लखन घनघोरिया का कहना है कि "अब कांग्रेस के पास कैडर भी है और लीडर भी. इसलिए कांग्रेस चुनाव की राजनीति में सफल रहेगी. वहीं बीजेपी सांसद राकेश सिंह ने इसके जवाब में कहा है कि नकल करने के लिए भी अकल की जरूरत होती है. कांग्रेस बीजेपी जैसा समर्पित कार्यकर्ता कैसे तैयार करेगी. आगामी चुनाव दोनों ही पार्टियों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा. इस अंतिम आदमी को जिसने साथ लिया ऊंट उसी के करवट बैठेगा. इसलिए सभी की नजर छोटे कार्यकर्ताओं पर है. इस बार के चुनाव में इन छोटे कार्यकर्ताओं की पूछ परख रहेगी.