जबलपुर। केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधारों से जुड़े 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की है, लेकिन इस पैकेज से बाजार की स्थिति सुधरेगी ऐसा नजर नहीं आ रहा है. यह कहना है आर्थिक मामलों के जानकार चार्टर्ड अकाउंटेंट अनिल अग्रवाल का.
खाली जेब से कब तक मदद करोगे
बेशक सरकार में गरीबों के खातों में कुछ पैसे डाले उन्हें अनाज भी दिया है और अब उन्हें काम भी दिया जा रहा है. इससे गांव लौटे हुए गरीबों को और उद्योग धंधे से बाहर निकले हुए गरीबों को कुछ फायदा जरूर मिलेगा, लेकिन क्या ये फायदा सरकार को या अर्थव्यवस्था को कोई मजबूती देगा, क्या सरकार यह कल्याणकारी कार्यक्रम बिना खुद के आर्थिक हालात सुधारे लगातार जारी रख सकती है. अनिल अग्रवाल का कहना है खाली खजाने से आप कब तक राहत बांट सकते हो.
जरूरत मरहम की थी तुमने टॉनिक दे दिया है
सरकार ने जो घोषणाएं की हैं, उनमें लोन देने की बात ज्यादा कही गई है. जबकि जरूरत उद्योग और व्यापार को टैक्स में छूट की थी. बिजली बिल में छूट की थी क्योंकि फिलहाल ज्यादातर उद्योग धंधे लॉक डाउन की वजह से बंद हैं, लेकिन लोगों को किराया देना पड़ रहा है. बिजली का बिल देना पड़ रहा है. यदि सरकार यहां थोड़ी सी राहत देती तो उद्योग करने वाले लोग दोबारा से इसे शुरू करने में राहत महसूस करते सरकार नए लोन की बात कर रही है. वर्तमान हालात में जब मांग बाजार से पूरी तरह से गायब है ऐसी स्थिति में कोई भी व्यापारी नया लोन लेना ठीक नहीं समझेगा.
मध्यम वर्ग के लिए 20 लाख करोड़ में कुछ भी नहीं
ऑनलाइन एजुकेशन के साथ ही आम आदमी को जरूरत थी कि, स्कूल फीस को माफ किया जाता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. वहीं यदि मध्यम वर्ग को कोई राहत दी जाती तो इसका असर बाजार में जरूर देखने को मिलता. मध्यमवर्ग ही खरीदार है. वो यदि कुछ खरीदता तो टैक्स के जरिए सरकार के खजाने में पैसा पहुंचता, लेकिन इस राहत पैकेज में मध्यम वर्ग के लिए कोई अनाउंसमेंट नहीं की गई है. वहीं सरकारी कंपनियों का निजीकरण या निगमी करण करके सरकार कैसे इसे राहत दे रही है. यह समझ में नहीं आ रहा. बल्कि इससे तो इन कामों में लगे लोग और परेशान हो जाएंगे.
सरकार के इस राहत पैकेज में घोषणाएं बहुत बड़ी-बड़ी हैं, आंकड़े बहुत बड़े-बड़े हैं, लेकिन किसके हिस्से क्या आया, यह समझ में नहीं आ रहा. हो सकता है इसके दूरगामी परिणाम हो. लेकिन अभी जरूरत तुरंत राहत की थी जो किसी को कहीं नजर नहीं आई है.