जबलपुर। हिंदू धर्म में नदियों को जीवनदायी मानने के साथ ही उन्हें मां का दर्जा दिया गया है. देश में गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, सरयू और गोदावरी जैसी पवित्र नदियों की पूजा की जाती है. शनिवार को मध्यप्रदेश में मां नर्मदा जयंती मनाई जा रही है. जबलपुर में माता नर्मदा जयंती को लेकर लोगों में खूब उत्साह देखा गया. नर्मदा जयंती के मौके पर जबलपुर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. पुण्य सलिला के ग्वारीघाट, तिलवारा घाट और भेड़ाघाट में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी. ग्वारीघाट में तो तड़के से ही लोग पूजन अर्चन के साथ ही आस्था की डुबकी लगाते हुए नजर आए.
केक काट कर मनाते हैं मां नर्मदा जयंती: नर्मदा जयंती की भव्यता साल दर साल बढ़ती जा रही है. यही वजह है कि लोग अब परिवार और समूह में आकर मां नर्मदा का पूजन कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं. ग्वारीघाट में आस्था की डुबकी लगाने के साथ ही लोग दीपदान करते हैं. नर्मदा जयंती के मौके पर पिछले कुछ सालों से मां नर्मदा की प्रतिमा की स्थापना की परंपरा भी चल पड़ी है. पिछले कुछ सालों से युवाओं के द्वारा नर्मदा जयंती के मौके पर केक भी काटे जाते हैं. श्रद्धालु केक काटकर मां नर्मदा का जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाते हैं.
प्रशासन की टीमें मौजूद: नर्मदा जयंती पर उमड़ने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए प्रशासन के द्वारा भी खास इंतजाम किए गए. घाटों पर जहां पुलिस बल की तैनाती की गई तो वहीं होमगार्ड के गोताखोरों को भी मुस्तैद रखा गया. आपात स्थितियों से निपटने के लिए अधिकारियों की विशेष टीमें तैनात रही. नर्मदा जयंती के मौके पर पूजन अर्चन करने आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि, मां नर्मदा उनकी हर मनोकामना पूरी करती है. इसी के चलते वे हर साल नर्मदा तट पर आकर धार्मिक अनुष्ठानों के साथ विधि विधान से पूजन अर्चन करते हैं.
मैकल पर्वत पर उत्पन्न हुई थीं मां नर्मदा: एक बार भगवान शंकर लोक कल्याण के लिए तपस्या करने मैकल पर्वत पहुंचे. उनके पसीने की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ. इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई, जो शांकरी और नर्मदा कहलाई. शिव के आदेशानुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में कल..कल.. आवाज करती हुई प्रवाहित होने लगी. इस आवाज का एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ. मैकल पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण वह मैकल सुता भी कहलाई.
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नर्मदा को भगवान शिव ने दिया वर: चंद्रवंश के राजा हिरण्यतेजा को पितरों को तर्पण करते हुए यह अहसास हुआ कि उनके पितृ अतृप्त हैं. उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की और उनसे वरदान स्वरूप नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करवाया. भगवान शिव ने माघ शुक्ल सप्तमी पर नर्मदा को लोक कल्याणार्थ पृथ्वी पर जल स्वरूप होकर प्रवाहित रहने का आदेश दिया. नर्मदा द्वारा वर मांगने पर भगवान शिव ने नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग सदृश्य पूजने का आशीर्वाद दिया और यह वर भी दिया कि तुम्हारे दर्शन से ही मनुष्य पुण्य को प्राप्त करेगा. इसी दिन को हम नर्मदा जयंती के रूप में मनाते हैं.
नर्मदा के जल से मध्य प्रदेश लाभान्वित: अमरकंटक से प्रकट होकर लगभग 1200 किलोमीटर का सफर तय कर नर्मदा गुजरात के खंभात में अरब सागर में मिलती है. विध्यांचल पर्वत श्रेणी से प्रकट होकर देश के ह्रदय क्षेत्र मध्य प्रदेश में यह प्रवाहित होती है. नर्मदा के जल से मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा लाभान्वित है. यह पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है और डेल्टाओं को निर्माण नहीं करती. इसकी कई सहायक नदियां भी हैं. यह विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है. 12 ज्योर्तिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर इसके तट पर ही स्थित है. 55 तीर्थ भी नर्मदा के विभिन्न घाटों पर स्थित है. वर्तमान समय में तो कई तीर्थ गुप्त रूप में स्थित हैं.