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मां रेवा संस्था के सदस्य आए आगे, भूखे जानवरों को खिला रहे हैं खाना

जबलपुर जिले में लोगों के अलावा जानवर भी परेशान हैं, जिनके लिए मां रेवा स्वयंसेवी संस्था सामने आई है. वह रोजाना बंदरों को खाना खिलाती हैं.

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भूखे जानवरों को खिला रहे हैं खाना
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Published : Apr 3, 2020, 7:00 PM IST

जबलपुर। देश भर में 21 मार्च 2020 से लॉकडाउन है. यहीं वजह है कि कोरोना वायरस संक्रमण से निपटने में जिला प्रशासन काफी हद तक सफल भी हुआ है. लोगों को घर में रहने की जहां जिला प्रशासन लगातार अपील कर रहा है, वहीं स्वयंसेवी संस्था कर्फ्यू के चलते गरीब और भूखे लोगों को खाना भी मुहैया करवा रही है. इसके अलावा लॉकडाउन की वजह से जानवर भी भूखे रहने को मजबूर हैं. ऐसे में कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं इनके लिए आगे आई हैं.

अभी वाहनों की आवाजाही पर भी रोक लगी है. वहीं दूसरी तरफ मां रेवा स्वयंसेवी संस्था जानवरों के लिए आगे आई है. जबलपुर में बीते 1 सप्ताह से यह संस्था रोजाना भूखे बंदरों को खाना खिलाने का काम कर रही है. अपने स्तर से रोजाना ही खाने की व्यवस्था कर इन मूक जानवरों का पेट भर रही है.

रेवा परिवार के सदस्य रोजाना दोपहर 12 बजे से 4 बजे तक अमझर घाटी पर इन जानवरों के बीच रहते हैं. भरपेट खाना खिलाने के बाद इनके लिए पीने के पानी की व्यवस्था भी की जाती है. मां रेवा संस्था के सदस्य जसवीर सिंह बताते हैं कि शुरू में बंदरों को देखकर डर लगता था, पर अब बीते कुछ दिनों से वो रोज यहां आ रहे हैं.

जबलपुर। देश भर में 21 मार्च 2020 से लॉकडाउन है. यहीं वजह है कि कोरोना वायरस संक्रमण से निपटने में जिला प्रशासन काफी हद तक सफल भी हुआ है. लोगों को घर में रहने की जहां जिला प्रशासन लगातार अपील कर रहा है, वहीं स्वयंसेवी संस्था कर्फ्यू के चलते गरीब और भूखे लोगों को खाना भी मुहैया करवा रही है. इसके अलावा लॉकडाउन की वजह से जानवर भी भूखे रहने को मजबूर हैं. ऐसे में कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं इनके लिए आगे आई हैं.

अभी वाहनों की आवाजाही पर भी रोक लगी है. वहीं दूसरी तरफ मां रेवा स्वयंसेवी संस्था जानवरों के लिए आगे आई है. जबलपुर में बीते 1 सप्ताह से यह संस्था रोजाना भूखे बंदरों को खाना खिलाने का काम कर रही है. अपने स्तर से रोजाना ही खाने की व्यवस्था कर इन मूक जानवरों का पेट भर रही है.

रेवा परिवार के सदस्य रोजाना दोपहर 12 बजे से 4 बजे तक अमझर घाटी पर इन जानवरों के बीच रहते हैं. भरपेट खाना खिलाने के बाद इनके लिए पीने के पानी की व्यवस्था भी की जाती है. मां रेवा संस्था के सदस्य जसवीर सिंह बताते हैं कि शुरू में बंदरों को देखकर डर लगता था, पर अब बीते कुछ दिनों से वो रोज यहां आ रहे हैं.

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