जबलपुर। सालों से शहर कभी इतना शांत नहीं रहा. इसमें साल भर हर दिन कुछ ना कुछ हलचल होती रही, लेकिन कोरोना वायरस ने संस्कारधानी की तस्वीर ही बदल कर रख दी. नगर निगम जिसमें लगभग 24 घंटे कुछ ना कुछ होता रहता था, वहां सन्नाटा है. शाम होते ही, यहां सब कुछ थम जाता है. जबलपुर स्टेशन जहां लगभग हर 15 मिनट में एक ट्रेन थी. हजारों लोग रोज आते-जाते थे. पूरी रात ट्रेनों के आवाजाही की अनाउंसमेंट की आवाज इलाके में गूंजती रहती थीं, इंजन हॉर्न देते थे, पर अब यहां दूर-दूर तक कोई शोर नहीं, कोई आदमी नहीं, सिर्फ इमारतें हैं. दूधिया रोशनी है और शांति छाई हुई है. बाहर पुराने जमाने की छोटी लाइन का भाप का इंजन लोगों के देखने के लिए रखा गया था. अब यह तो पहले से ही रोका था, बाकी के बिजली के इंजन भी यार्ड में खड़े हैं.
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भंवरताल गार्डन जहां 1 दिन में करीब 5 हजार लोग तक जाया करते थे, कई-कई दिनों तो यहां एंट्री नहीं मिल पाती थी. यहां फूल-पत्ते सब सुरक्षित हैं. सुंदरता और निखर गई है. गर्मियों में तो यहां भीड़ और ज्यादा होती थी, लेकिन अब यहां कोई नहीं आता-जाता. कई दिनों से तो मुख्य दरवाजे का ताला तक नहीं खुला है. चंद माली आते हैं जो पेड़-पौधों को पानी देकर चले जाते हैं.
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