जबलपुर। कोरोना वायरस की वजह से इस बार शहर के लोगों को बिजली का बिल पिछले साल अप्रैल में जलाई गई बिजली के बराबर देना होगा. बिजली विभाग के इंजीनियरों का कहना है, गर्मी की वजह से लोग एसी और कूलर चला रहे हैं इसलिए बिजली की खपत बढ़ गई है, लेकिन लॉक डाउन की वजह से मीटर रीडिंग नहीं हो पा रही है. इसलिए बिजली विभाग ने पिछले साल के अप्रैल महीने की कंजंक्शन के आधार पर लोगों को बिल भेजने की तैयारी की है.
बिजली विभाग के इंजीनियरों का कहना है कि, बाद में जब परिस्थितियां सामान्य हो जाएंगी तब मीटर रीडिंग करवा कर वास्तविक बिल दिए जा सकेंगे, लेकिन फिलहाल लोगों को पिछले साल के हिसाब से ही बिजली बिल जमा करना होगा.
लॉकडाउन ने खोली औद्योगिक विकास की पोल
लॉकडाउन ने मध्य प्रदेश के औद्योगिक विकास की भी पोल खोल दी है, दरअसल जैसे ही लॉकडाउन हुआ तो सारे औद्योगिक कामकाज बंद हो गए, फैक्ट्रियां बंद हो गई, औद्योगिक संस्थान बंद हो गए तो जाहिर सी बात थी कि मध्यप्रदेश में बिजली की खपत बड़े स्तर पर कम होनी चाहिए थी, लेकिन शुरुआत में यह अंतर लगभग 20% का था.
विद्युत वितरण करने वाले इंजीनियरों का कहना है, इसकी एक बड़ी वजह सिंचाई बंद होना भी थी. लेकिन अब यह अंतर मात्र 10% ही रह गया है. मतलब स्पष्ट है कि मध्य प्रदेश में केवल 10% बिजली ही औद्योगिक क्षेत्र में इस्तेमाल की जाती है बाकी 90% बिजली कृषि और घरेलू उपभोक्ता ही इस्तेमाल करते हैं. जबकि गुजरात और महाराष्ट्र में अभी के हालात में यह अंतर लगभग 25% का है मतलब गुजरात और महाराष्ट्र में 25% बिजली औद्योगिक क्षेत्र में खर्च की जाती है. इससे यह स्पष्ट है कि मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास के मामले में बहुत पिछड़ा है.
बिजली की मांग कम होने से कई प्लांट हुए बंद
विद्युत वितरण कंपनी के इंजीनियरों का कहना है कि, वह इस समय सस्ती बिजली खरीद रहे हैं और एनटीपीसी के सोलापुर, खरगोन और गाडरवारा प्लांट से बिजली नहीं खरीदी जा रही है, क्योंकि यह महंगी बिजली देते हैं. इसलिए इन प्लांट को बंद कर दिया गया है.
मध्यप्रदेश में फिलहाल 1850 लाख यूनिट बिजली ही खर्च हो रही है, जो मध्य प्रदेश को खुद के प्लांट से और कुछ सस्ते करार से मिल रही है. इंजीनियरों का कहना है कि, लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है मध्य प्रदेश को लगातार सस्ती और ठीक बिजली मिलती रहेगी.