जबलपुर। मध्यप्रदेश में मेडिकल एजुकेशन में छात्रों के साथ जमकर धोखाधड़ी हो रही है. इस बार मामला नर्सिंग कॉलेज से जुड़ा हुआ है. जबलपुर की मेडिकल यूनिवर्सिटी में सत्र 2022 और 2023 के लिए 723 नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता के लिए आवेदन आए थे, नियम के अनुसार नर्सिंग कॉलेजों को हर साल अपनी मान्यता लेनी होती है. मान्यता में कुछ शब्द होते हैं जिसके तहत पढ़ाई करवाने वाले शिक्षकों की योग्यता के प्रमाण पत्र मांगे जाते हैं. नर्सिंग कॉलेज में फैकल्टी के लिए मेडिकल में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त शिक्षकों को ही शिक्षा देने की अनुमति है. इसी तरीके से कुछ विषयों में यह योग्यता अनुभव के साथ भी जुड़ी हुई है. लेकिन केवल 491 नर्सिंग कॉलेजों में ही सही योग्यता वाले शिक्षक पाए गए. बाकी 232 कॉलेजों में मान्यता की शर्तें पूरी नहीं हुई. लिहाजा इनके आवेदन निरस्त कर दिए गए.
डुप्लीकेट फैकल्टी पर कार्रवाई नहीं: क्योंकि इस बार मामला हाईकोर्ट पहुंच चुका था इसलिए मेडिकल यूनिवर्सिटी नहीं आवेदनों को निरस्त किया नहीं तो 2020 21 और 21-22 में मेडिकल यूनिवर्सिटी ने इन कॉलेजों को मान्यता दी थी और यहां जांच में यह पाया गया था कि एक ही शिक्षक कई कालेजों में अपने दस्तावेज लगाए हुए हैं और जबकि वह पढ़ाने के लिए कहीं भी नहीं जाता. इसलिए इस पूरे मामले की जांच पुलिस कमिश्नर को सौंपी गई है. लेकिन गंभीर मामला यह है कि यह गड़बड़ी पाए जाने के बाद भी मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर में ऐसे कॉलेजों को मान्यता दे दी है.
हाई कोर्ट में सुनवाई: इस गड़बड़ी पर मध्य प्रदेश लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन की ओर से एक जनहित याचिका लगाई गई, जिसकी सुनवाई चीफ जस्टिस रवी मलिमथ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने की. इसमें अधिवक्ता आलोक बागरेचा ने अपना पक्ष रखते हुए आपत्ति दर्ज की कि आखिर जब नर्सिंग कॉलेजों ने पिछले सालों में गड़बड़ियां की हैं तो इन्हें अनुमति क्यों दी जा रही है और इनके खिलाफ जुर्माने की कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही. कोर्ट ने नर्सिंग काउंसिल और मेडिकल विश्वविद्यालय के कुलपति और रजिस्ट्रार को नोटिस देकर जवाब मांगा है. इस मामले की सुनवाई लगातार जारी रहेगी.
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नर्सिंग कॉलेज मुनाफे का धंधा: दरअसल नर्सिंग कॉलेजों को शिक्षा और योग्यता विकसित करने की वजह एक मुनाफे के धंधे के तौर पर लिया जा रहा है. इसीलिए ताबड़तोड़ तरीके से मध्यप्रदेश में नर्सिंग कॉलेज खुलते जा रहे हैं. मान्यता लेने में भी पैसे का बड़ा योगदान होता है, हालांकि इसके सबूत जुटाना बहुत मुश्किल है लेकिन बिना शर्तें पूरी किए हुए मान्यता मिलने का अर्थ ही यह है कि कहीं भ्रष्टाचार हुआ है, इसका नुकसान सिर्फ इतना नहीं है कि कम योग्यता वाले छात्र पैदा होंगे. बल्कि यह छात्र जिन लोगों का इलाज करेंगे उनकी जान को भी खतरे में डालेंगे. बहरहाल इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में जारी है.