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प्रतिबंधित PFI संगठन को जबलपुर हाईकोर्ट से झटका, एकलपीठ ने की याचिका खारिज, सुनवाई के दौरान आरोपियों को पेश रहने के निर्देश

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 13, 2023, 10:53 PM IST

Updated : Oct 13, 2023, 11:00 PM IST

Jabalpur High Court Verdict: एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया- "याचिकाकर्ता की तरफ से सीआरपीसी की धारा 167 के तहत जमानत के लिए ट्रायल कोर्ट में कोई आवेदन पेश नहीं किया है. एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते निर्देश जारी किए हैं कि सुनवाई के दौरान आरोपियों को व्यक्तिगत या वीडियों कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित करना सुनिश्चित किया जाए."

Jabalpur High Court Verdict
PFI संगठन के आरोपियों को जबलपुर हाईकोर्ट से झटका

जबलपुर। एनआईए की गिरफ्त में आए चरमपंथी इस्लामिक संगठन द पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के 19 कार्यकर्ताओं ने डिफाल्ट जमानत का लाभ दिए जाने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट जस्टिस डी के पालीवाल की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता की तरफ से सीआरपीसी की धारा 167 के तहत जमानत के लिए ट्रायल कोर्ट में कोई आवेदन पेश नहीं किया है. एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते निर्देश जारी किए हैं कि सुनवाई के दौरान आरोपियों को व्यक्तिगत या वीडियों कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित करना सुनिश्चित किया जाए.

याचिका में क्या कहा गया था: एनआईए के जांच घेरे में आए, अब्दुल जमील,मोहम्मद जावेद,अब्दुल खालिद सहित अन्य 19 की तरफ से याचिका दायर की गई थी. इसमें कहा गया था कि उन्हें प्रकरण की सुनवाई के दौरान विशेष जज के समक्ष भौतिक और तकनीकी माध्यम से उपस्थित नहीं किया जाता है. उनकी न्यायिक रिमांड की अवधि में लगातार बढोत्तरी की जा रही है. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया था कि उन्हें सीआरपीसी की धारा 167 के तहत डिफॉल्ट जमानत का लाभ प्रदान किया जाए.

सरकार की तरफ से पैरवी करते हुए उप महाधिवक्ता बी डी सिंह ने एकलपीठ को बताया कि आरोपियों के खिलाफ देशद्रोह सहित अन्य गंभीर आरोप हैं. वह साल 2047 तक भारतीय संविधान को समाप्त पर देश में सरिया कानून लागू करना चाहते है. आरोपियों द्वारा इस्लामिक कट्टरपंथ फैलाया जा रहा है और एनआईए ने आपत्तिजनक साहित्य व हथियार उनके पास से बरामद किए हैं.

उप अधिवक्ता ने एकलपीठ को बताया- धारा 167 के तहत 90 दिनों के अंदर चालान पेश नहीं करने पर आरोपियों को डिफॉल्ट जमानत का लाभ मिलने का कानूनी प्रावधान है. सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत तथा तकनीकि माध्यम से सुनवाई के दौरान उपस्थित करने पर आरोपी को इसका लाभ मिलने का कोई प्रावधान नहीं है. आरोपियों को सुविधा अनुसार सुनवाई के दौरान उपस्थित किया गया है. इसके अलावा सुनवाई के दौरान उनके अधिवक्ता ट्रायल कोर्ट में उपस्थित रहते थे. डिफॉल्ट जमानत के लिए उन्होने ट्रायल कोर्ट में कोई आवेदन पेश नहीं किया.

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सुनवाई के दौरान एकलपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ताओं की तरफ से ट्रायल कोर्ट में कोई आवेदन पेश नहीं किया गया था. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि प्रदेश की सभी जेल में वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध है. जेल अधीक्षक जिस तरफ से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे है और विशेष न्यायाधीश मामले को निपटा रहे है, यह संतोषजनक नहीं है. विशेष न्यायाधीश ने आरोपियों को किन्ह कारणों से पेश नहीं किया. इसकी जानकारी नहीं दी गई.

सीआरपीसी में न्यायिक अभिरक्षा के दौरान व्यक्तिगत और भौतिक रूप से सुनवाई के दौरान अभियुक्त की उपस्थिति मान्यता प्राप्त है. जेल अधीक्षक सुनवाई के दौरान अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष जरूर उपस्थित करें. इस संबंध में एकलपीठ ने जेल महानिक्षिक को पत्र लिखने के निर्देश जारी किए हैं. इसके अलावा हाईकोर्ट के प्रिंसिपल रजिस्ट्रार न्यायिक को आदेश जारी किए हैं कि सीआरपीसी की धारा 167 (2 )बी के परिपालन के संबंध में हाईकोर्ट से निर्देश प्राप्त कर प्रदेश के अन्य न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट को पत्र जारी करें.

जबलपुर। एनआईए की गिरफ्त में आए चरमपंथी इस्लामिक संगठन द पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के 19 कार्यकर्ताओं ने डिफाल्ट जमानत का लाभ दिए जाने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट जस्टिस डी के पालीवाल की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता की तरफ से सीआरपीसी की धारा 167 के तहत जमानत के लिए ट्रायल कोर्ट में कोई आवेदन पेश नहीं किया है. एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते निर्देश जारी किए हैं कि सुनवाई के दौरान आरोपियों को व्यक्तिगत या वीडियों कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित करना सुनिश्चित किया जाए.

याचिका में क्या कहा गया था: एनआईए के जांच घेरे में आए, अब्दुल जमील,मोहम्मद जावेद,अब्दुल खालिद सहित अन्य 19 की तरफ से याचिका दायर की गई थी. इसमें कहा गया था कि उन्हें प्रकरण की सुनवाई के दौरान विशेष जज के समक्ष भौतिक और तकनीकी माध्यम से उपस्थित नहीं किया जाता है. उनकी न्यायिक रिमांड की अवधि में लगातार बढोत्तरी की जा रही है. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया था कि उन्हें सीआरपीसी की धारा 167 के तहत डिफॉल्ट जमानत का लाभ प्रदान किया जाए.

सरकार की तरफ से पैरवी करते हुए उप महाधिवक्ता बी डी सिंह ने एकलपीठ को बताया कि आरोपियों के खिलाफ देशद्रोह सहित अन्य गंभीर आरोप हैं. वह साल 2047 तक भारतीय संविधान को समाप्त पर देश में सरिया कानून लागू करना चाहते है. आरोपियों द्वारा इस्लामिक कट्टरपंथ फैलाया जा रहा है और एनआईए ने आपत्तिजनक साहित्य व हथियार उनके पास से बरामद किए हैं.

उप अधिवक्ता ने एकलपीठ को बताया- धारा 167 के तहत 90 दिनों के अंदर चालान पेश नहीं करने पर आरोपियों को डिफॉल्ट जमानत का लाभ मिलने का कानूनी प्रावधान है. सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत तथा तकनीकि माध्यम से सुनवाई के दौरान उपस्थित करने पर आरोपी को इसका लाभ मिलने का कोई प्रावधान नहीं है. आरोपियों को सुविधा अनुसार सुनवाई के दौरान उपस्थित किया गया है. इसके अलावा सुनवाई के दौरान उनके अधिवक्ता ट्रायल कोर्ट में उपस्थित रहते थे. डिफॉल्ट जमानत के लिए उन्होने ट्रायल कोर्ट में कोई आवेदन पेश नहीं किया.

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सुनवाई के दौरान एकलपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ताओं की तरफ से ट्रायल कोर्ट में कोई आवेदन पेश नहीं किया गया था. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि प्रदेश की सभी जेल में वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध है. जेल अधीक्षक जिस तरफ से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे है और विशेष न्यायाधीश मामले को निपटा रहे है, यह संतोषजनक नहीं है. विशेष न्यायाधीश ने आरोपियों को किन्ह कारणों से पेश नहीं किया. इसकी जानकारी नहीं दी गई.

सीआरपीसी में न्यायिक अभिरक्षा के दौरान व्यक्तिगत और भौतिक रूप से सुनवाई के दौरान अभियुक्त की उपस्थिति मान्यता प्राप्त है. जेल अधीक्षक सुनवाई के दौरान अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष जरूर उपस्थित करें. इस संबंध में एकलपीठ ने जेल महानिक्षिक को पत्र लिखने के निर्देश जारी किए हैं. इसके अलावा हाईकोर्ट के प्रिंसिपल रजिस्ट्रार न्यायिक को आदेश जारी किए हैं कि सीआरपीसी की धारा 167 (2 )बी के परिपालन के संबंध में हाईकोर्ट से निर्देश प्राप्त कर प्रदेश के अन्य न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट को पत्र जारी करें.

Last Updated : Oct 13, 2023, 11:00 PM IST
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